भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय । Bharatendu Harishchandra biography in hindi.
Bharatendu Harishchandra biography in hindi. हिंदी साहित्य का आधुनिक युग भारतेंदु हरिश्चंद्र से ही प्रारंभ होता है । आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश में व्याप्त समस्याओं जैसे निर्धनता, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण के चित्रण को ही अपनी लेखनी की विषय वस्तु बनाया। जिस समय भारतेंदु ने साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया था उनकी आयु अत्यंत कम थी । सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय वे केवल 7 वर्ष के थे।
Bharatendu Harishchandra biography in hindi. पढ़कर नव लेखको/ साहित्यकारों को प्रेरणा मिलती है । उनके व्यक्तित्व, उनकी भाषा शैली एवं उनकी रचनाओं को पढ़कर एक अदभुत साहित्य की ललक मिलती है । जिस प्रकार से उस युग मे साहित्य का विकास हुआ । हिंदी साहित्य को एक नई दिशा मिली तो Bio4hindi में चलिए जानते है writer Bharatendu Harishchandra biography in hindi -
Read Also
◆ नरेंद्र मोदी का जीवन परिचय । Narendra modi biography in hindi.
◆ जवाहर लाल नेहरू जीवन परिचय । Jawaharlal nehru biography in hindi.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय । Bharatendu Harishchandra biography in hindi.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को वाराणसी उत्तरप्रदेश के एक सुप्रसिद्ध परिवार में हुआ था । उनकी माता का नाम पार्वती देवी और उनके पिता का नाम गोपाल चंद्र था । वे गिरिधरदास उपनाम से ब्रज भाषा में कविता लिखते थे । उनके ग्रंथों में विलक्षण काव्य कौशल दिखलाई देता है । जरासंध उनका महाकाव्य है । इस प्रकार साहित्यिक परंपरा को निभाते हुए भारतेंदु ने साहित्य में अपनी प्रतिभा दिखाई । भारतेन्दु प्रतिभा संपन्न थे औऱ इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी । उन्हें पहचान दिलाने के उद्देश्य से 1880 में काशी के विद्वानों ने सामाजिक मीटिंग में उन्हें “भारतेंदु” की उपाधि दी थी।
दुर्भाग्यवश जब वह 5 वर्ष के थे, तभी वह मां की ममता से वंचित हो गए । कुछ वर्ष बाद पिता भी उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए । एक शिक्षक उनके घर पर हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाने के लिए आया करते थे और उर्दू वे एक मौलवी साहब से पढ़ते थे । स्वतंत्र प्रकृति के बालक होने के कारण उनका नियमित रूप से लिखना पढ़ना जारी नहीं रह सका । 13 वर्ष की आयु में मनुदेवी नामक कन्या से उनका विवाह हुआ ।
वे वाराणसी के चौधरी परिवार के भी सदस्य थे, जो अग्रवाल समुदाय से संबंधित था । उनके पूर्वज बंगाल के ज़मींदार थे। उनके एक बेटी भी है। उन्होंने अग्रवाल समुदाय के विशाल इतिहास को भी लिखा है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बताया कि सन 1865 में जब वे सिर्फ 15 के थे, तब ओड़िसा में पुरी के जगन्नाथ मंदिर अपने परिवार के साथ गये थे, इस यात्रा के समय वे बंगाल के पुनर्जागरण काल से बहुत प्रभावित हुए और तभी उन्होंने सामाजिक, एतिहासिक और पौराणिक नाटकों और हिंदी उपन्यासों की रचना करने का निर्णय लिया था।
सुप्रसिद्ध साहित्यिक आलोचक श्री राम विलास शर्मा ने भी उन्हें हिन्दी साहित्य का सर्वाधिक प्रभावशाली और आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक और नायक बताया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का समुचित उपयोग किया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताएं । Bharatendu Harishchandra poet's. -
Bharatendu Harishchandra की छोटी बड़ी लगभग 68 काव्य रचनाएं उपलब्ध है | उन्होंने लगभग 17 नाटकों की रचना की तथा इतिहास, पुरातत्व आदि पर ग्रन्थ लिखे | जीवनी और उपन्यास लेखन में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया | भारतेंदु की रचनाओं की संख्या इतनी अधिक है जिससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा, लगन और उनके अध्यवसाय के प्रति श्रद्धा से नत मस्तक हो जाते हैं । अपने 16-17 वर्ष के साहित्यिक जीवन में उन्होंने हिंदी साहित्य की युगांतर कारिणी रचनाओं का सृजन किया । अपनी रचनाओं द्वारा साहित्य के प्रत्येक अंग को छूने का सफल प्रयास किया है ।
लेखन विधा-
नाटक, काव्यकृतियां, अनुवाद, निबंध संग्रह ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक कौन कौन से हैं |Bharatendu Harishchandra ke natak -
हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ - Bharatendu Harishchandra से माना जाता है। उन्होंने 1868 में बंगाली नाटक "विद्यासुंदर" का हिंदी भाषा में अनुवाद किया था। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किन्तु नियमित रूप से उन्होंने खड़ी बोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया।
भारतेंदु हरिशचंद्र ने एक कलाकार की भूमिका में थिएटर में प्रवेश किया था और अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर शीघ्र ही वे निर्देशक, प्रबंधक और रंगकर्मी का दायित्व निभाने लगे । उन्होंने थिएटर का उपयोग जनता की राय लेने के लिए किया था। उनके मुख्य नाटक इस प्रकार है –
• वैदिकी हिंसा हिंसा ना भवति (1873)
• भारत दुर्दशा (1875)
• नील देवी (1881)
• अंधेर नगरी (1881) (आधुनिक हिंदी नाटको में यह सबसे प्रसिद्ध नाटक है। जिसका रूपांतर भारत में अनेक से भाषाओ में भी किया गया है।)
प्रमुख काव्य रचनाएं – Bharatendu Harishchandra kavya rachanye
• भगत सर्वज्ञ
• प्रेम मलिका (1872)
• प्रेम माधुरी (1875)
• प्रेम तरंग (1877), प्रेम प्रलाप, प्रेम फुलवारी (1883) और प्रेम सरोवर
• होली
• मधु मुकुल
• राग संग्रह
• वर्षा विनोद
• विनय प्रेम पचास्सा
• फूलो का गुच्छा
• चन्द्रावली ( 1876) और कृष्णा चरित्र ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की पत्रिकाएं । Bharatendu Harishchandra magize -
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी Bharatendu Harishchandra ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने "कवि वचन सुधा" पत्रिका का सन 1868 में संपादन किया था । सन 1874 में उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से देश के नागरिकों को स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करते हुए 'स्वदेशी अपनाओ' का नारा दिया था। हरिशचंद्र ने 'हरिश्चंद्र चन्द्रिका' और 'बाल वोधिनी' में भी भारतीय लोगो को स्वदेशी वस्तुओ का उपयोग करने की अपील की थी ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की भाषा शैली क्या है | Bharatendu Harishchandra bhasha shaili -
वह एक युग-दृष्टा और युग-सृष्टा के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में अवतीर्ण हुए जिससे भाषा और साहित्य दोनों ही प्रभावित हुए । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार "भारतेन्दु ने जिस प्रकार गद्य की भाषा का स्वरूप स्थिर करके उसे देश काल के अनुसार नए नए विषयों की ओर लगाया उसी प्रकार कविता की धारा को भी नए क्षेत्रों की ओर मोड़ा। इस नए रंग में सबसे ऊंचा स्वर देश भक्ति की वाणी का था ।" नीलदेवी, भारत दुर्दशा आदि नाटकों में आई हुई कविताओं में देश की दशा की मार्मिक व्यंजना की गई है । उनकी कविताओं में देश की अतीत गौरव-गाथा का वर्णन, वर्तमान अधोगति तथा भविष्य की चिन्ता आदि उत्कट देश प्रेम संबंधी भाव हैं ।
Bharatendu Harishchandra ने गद्य साहित्य के निर्माण के लिए सबसे पहले खड़ी बोली को अपनाया और उसका परिष्कार किया इसके अतिरिक्त उन्होंने जिन विदेशी शब्दों को अपनाया, उन पर हिंदी की छाप लगा दी । वह अपनी भाषा की प्रकृति को भली-भांति पहचानते थे । उनकी भाषा के दो रूप हैं खड़ी बोली और ब्रजभाषा । हिंदी शब्दों का बाहुल्य होने के साथ - साथ उनमें फारसी, अरबी, अंग्रेजी और संस्कृत के शब्द भी मिलते हैं पर सभी हिंदी के सांचे में ढले हुए ।
भारतेंदु की शैली का आदर्श उनके नाटकों में प्राप्त होता है । जिसमें पात्रों के कथोपकथन में स्वाभाविकता और सजीवता आ गई है । वे व्यंगात्मक शैली के जन्मदाता हैं । सामाजिक कुरीतियों और पाखंडों का खंडन करने के लिए उन्होंने इस शैली का सहारा लिया । उनकी शैली सरल, सरल प्रसाद, माधुर्य और ओज गुणों से युक्त थी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का व्यक्तित्व ।
भारतेंदु का व्यक्तित्व हिंदी साहित्य में एक अनोखा व्यक्तित्व है । भारतेंदु ने 5 वर्ष की अवस्था में यह दोहा रच कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था :-लै ब्योंड़ा ठाड़े भये श्री अनिरुद्ध सुजान ।
वाणांसुर की सैन को हनन लगे भगवान ।।
भारतेन्दु के शैशव काल का यह दोहा जहाँ उनकी काव्य कला की सहज प्रतिभा का परिचय देता है, वहाँ यह बात भी स्पष्ट कर देता है कि उन्हें हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं का अच्छा ज्ञान था ।
उनकी वाणी में कोमलता, स्वर में माधुर्य, और व्यवहार में शिष्टता, भारतेंदु का जीवन हास्य और विनोद का जीवन था ।
भारतेन्दु जी ने अल्पायु में ही अप्रतिम साहित्य की रचना की । वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, सजग पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे । इसके अलावा Bharatendu Harishchandra एक राइटर, कवि, संपादक, निबंधकार के साथ साथ कुशल वक्ता भी थे ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की विशेषताएं ।
भारतेंदु युग में नवयुग का श्रीगणेश हुआ था । इस युग का महत्व तो समाज का यथार्थ चित्रण कर देश भक्ति की भावना जागृत करना था । काव्य के विषय भी नवीन थे । भारतेंदु युग के कवियों में अधिकांश ब्रज भाषा के कवि हैं । और सबका राष्ट्रभाषा हिंदी की उन्नति और उसके प्रचार - प्रसार की ओर लक्ष्य उन्मुख रहा । इस युग के कवियों ने "हिंदी, हिंदू , हिंदुस्तान" का नारा बुलंद किया । अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी आदि भाषाओं से घृणा नहीं अपितु भारतेंदु आदि ने इन भाषाओं से नवीन ज्ञान, नई बातों को ग्रहण करने तथा अपनी भाषा में अनुवाद करने की बात कही । भारतेंदु जी ने तो देश की सर्वांगीण उन्नति का कारण भाषा को ही माना है।निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल |
देश को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त करने की भावना, जनमानस में राष्ट्र के प्रति प्रेम जागृत करने का प्रयास इस युग के कवियों ने किया । भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जनमानस को सतत संघर्ष, त्याग और बलिदान की ओर अग्रसर कर भारत की स्वतंत्रता में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने अनुभव किया कि पश्चिम के कुछ देश काल कवलित हुए तथा अपनी दुर्दशा देखने को नहीं रहे किन्तु भारत अभी जीवंत है -
हाय पंचनद, हा पानीपत, अजहुं रहे तुम धरनि विराजत
हाय चित्तौर निलज तू भारी अजहुं खरो भारतहि मंझारी ।
इनके भय कपत संसारा, सब जग इनको तेज पसारा ।
इनके तनिकह भौंह हिलाए, थर थर कंपत नृप मय पाए ।
प्रबोधिनी के छंदों में भी स्वर्णिम अतीत के प्रति सुन्दर आकर्षण का भाव निहित है -
कह गए विक्रम भोज राम बलि कर्ण युधिष्ठिर
चंद्रगुप्त चाणक्य कहाँ नासे करिकै थिर।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्य में स्थान -
Bharatendu harishchandra 6 जनवरी 1885 ई. में 35 वर्ष की अल्पायु में ही इनका निधन हो गया। भाषा के क्षेत्र में भारतेंदु खड़ी बोली और ब्रज भाषा के उन्नायक हैं । खड़ी बोली को प्रतिष्ठित कर उन्होंने उसे साहित्यिक गद्य का रूप दिया । सत्य है हिंदी का कोई भी कवि इतनी समस्याओं को एक साथ लेकर साहित्य सेवा में संलग्न नहीं हुआ ।अतः उनका योगदान सर्वोपरि है । उनकी कला का प्रकाशन साहित्य के संधि काल में हुआ । समाज सुधार की ओर भी उनकी प्रवृत्ति गई है । उन्होंने अपने साहित्य में सभी विधाओं का प्रयोग सफलतापूर्वक किया है। अतः हिंदी के लिए उनका योगदान सर्वोपरि है और वह आधुनिक युग के साहित्यकारों में सर्वप्रथम और सर्वोच्च हैं । वर्ष 1983 से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा हिंदी भाषा के विकास के लिए भारतेंदु हरिशचंद्र अवार्ड दिया जा रहा है ।
भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक साहित्यकारों के प्रेरणास्रोत -
भारतेंदु का ध्यान अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य के सुधार और निर्माण की ओर अग्रसर रहा । उनके समकालीन कवियों बद्रीनारायण चौधरी प्रेमधन, प्रताप नारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त, राधाचरण गोस्वामी आदि अनेक साहित्यकारों ने उनसे प्रेरणा प्राप्त कर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की ।
वर्तमान साहित्य की दशा और दिशा भी भारतेंदु हरिश्चंद्र के साहित्य से प्रेरणा लेकर निर्धारित की जानी चाहिए, ताकि रचनाकार समकालीन समस्याओं के प्रति जनमानस का, प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कर सकें और देश के विकास में योगदान दे सकें। इस दृष्टि से भारतेंदु जी एक प्रेरणादाई व्यक्तित्व हैं । आपकी स्मृति को सादर वंदन। सुमित्रानंदन पंत जी की पंक्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं -
भारतेन्दु कर गये, भारती की वीणा निर्माण ।
किया अमर स्पर्शों में, जिसका बहु विधि स्वर संधान।
तो उम्मीद करते आज की जानकारी Bharatendu Harishchandra biography in hindi. आपको अच्छी लगी होगी । आप अपने विचार हमारे कमेंट बॉक्स में लिखें ।। डॉ. दीप्ति गौड़ ( शिक्षाविद् एवम् कवयित्री ) ।।
हिंदी साहित्य को महिमा मंडित करने वाले भारतेंदु जी को नमन।
जवाब देंहटाएं