संत गोविंददास जी महाराज । Sant govind Das ji maharaj biography in hindi.

संत गोविंददास जी महाराज की जीवनी । Sant govind das ji maharaj biography in hindi.


Sant govind dasji maharaj biography in hindi.


Sant govind das ji maharaj biography in hindi. हमारे देश साधु संतों की भूमि है । ऐसे कई संत हुए जिन्होंने अपनी तपस्या के बल पर एक मिसाल कायम की । उन में से सन्त गोविंद दास भी एक है । Sant Govind Das ji  एक संत के साथ-साथ सच्चे समाज-सुधारक और मार्गदर्शक थे । विशाल देह के स्वामी महाराज गोविंद दास जी ऐसे वटवृक्ष थे जिनकी छाया में सुख ही सुख था। 

जब भी मन मे कोई प्रश्न उठता या उलझन होती तो महाराज के पास जाकर अपनी बात का समाधान पाते बिलकुल परिवार के बुजुर्ग की भांति सबका मार्गदर्शन करते थे । ऐसे युग पुरुष विरले ही होते हैं जो केवल समाज को देते ही हैं बदले में उनको अपने लिए कुछ नहीं चाहिए । तो चलिए जानते है संत गोविंद दास जी का जीवन परिचय ।  Sant govind das ji maharaj biography in hindi.

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Sant govind Das ji maharaj biography in hindi.

श्री गोविंद दास जी महाराज का जन्म 1957 में ग्राम खाचरियावास नरूका की ढाणी में हुआ जोकि सीकर जिले की दातारामगढ़ तहसील में स्थित है! इनके पिताजी का नाम श्री मेघ सिंह पुत्र श्री ओनाड सिंह (नरूका कच्छावा) एवं माता का नाम श्रीमती राज कंवर पुत्री श्री भंवर सिंह चौहान और इनका ननिहाल भिवानी हरियाणा में स्थित है यह आठ भाई बहन थे सबसे बड़े भाई श्री धन सिंह उनसे छोटे हनुमान सिंह मोहन सिंह और उसके बाद में गोविंद दास जी महाराज का जन्म हुआ इनसे छोटे भाई श्री रघुवीर सिंह जगदीश सिंह और इनकी 2 बहने तारा कंवर व शारदा कंवर थी । बचपन से ही प्रभु भक्ति की ओर झुकाव था किसान परिवार में पैदा हुए श्री गोविंद दास जी महाराज 1972 में पढ़ाई छोड़ कर कुंआ सीचने लगे।

संत गोविंद दास जी महाराज की शिक्षा -

Sant Govind das ji की प्रारम्भिक शिक्षा पास के ग्राम रामजीपूरा में सरकारी स्कूल में हुई तत्पश्चात मिडल क्लास तक ये खाचरियावास में पढ़े उसके बाद मेट्रिक की शिक्षा रामगढ़ में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की!1972 में युवा गोविंद ने पढ़ाई छोड़ कर खेती बाड़ी के काम में लग गए ।

मेहनत करने में कोई भी इनकी बराबरी नहीं कर सकता था इतनी मेहनत के बावजूद भी उनके चेहरे पर थकान का आभास नहीं दिखाई देता था । और सदैव प्रभु के गुणगान में लीन रहते !

सन 1975 की बात है जब महाराज जी फ़ौज में भर्ती होने के लिए अजमेर गए । अजमेर में भर्ती होने में असफल रहे तो जोधपुर भर्ती होने गए, पर कहते है कि भाग्य में पहले से सब नियत रहता है इनकी जरूरत फ़ौज से ज्यादा अंधकार में डूबे समाज को थी ।

संत गोविंद दास महाराज का प्रारम्भिक जीवन 

जोधपुर में भर्ती नहीं होने पर जब ये लौट रहे थे तो बीच में एक ढाबे पर रुके, ढाबे वाले से प्रार्थना की कि मुझे भी नोकरी पर रख लो लेकिन ढाबे वाले ने कहा कि मेरे इतनी कमाई नहीं है कि में आपको तनख्वाह दे सकूँ, तब महाराज ने कहा कि मुझे केवल 1 वक्त का खाना दे दीजिए मैं आपके बर्तन धों दूंगा ।

महाराज ने 3 साल तक ढाबे में काम किया। काम करते करते उनकी उंगलियों से खून गिरने लगता था । एक दिन कोई पुलिस अधिकारी आए और इनकी हालत देखकर ढाबे के मालिक को फटकार लगाई की आप एक लड़के के साथ एसा व्यवहार कैसे कर सकते हैं तब महाराज ने कहा कि इनकी कोई गलती नहीं मेरे लिए कोई और काम है तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हुँ ।

तब उनके साथ महाराज चले गए और उनके खेतों पर खेती बाड़ी का काम करने लगे । पास में ही एक आश्रम था । गुरु विश्वभरनाथ जी का जहाँ पर साल में 1- 2 बार पुलिस अधिकारी के पिता जाते आते रहते थे । काफी समय बाद एक दिन बातों ही बातों में गुरुवर विश्वभरनाथ जी ने अधिकारी के पिता जी से कहा कि आप भगवान को कहां ढूंढ रहे हैं । भगवान तो आपके खेतों में काम कर रहे हैं । सुबह सुबह उस गोविंद के दर्शन कर लिया करो तो मान लेना कि भगवान के दर्शन हो गए ।

तब पुलिस अधिकारी के पिताजी आए और आकर कहा कि गोविंद आज से तू काम नहीं करेगा केवल खेतों में रखवाली कर सकता है और उनके चरणों में झुक गए । कहते है कि महाराज गन्ने के खेतों में जब तब 10 आदमियों के बराबर अकेले काम नहीं करते तब तक खाना नहीं खाते थे । जब जोधपुर भर्ती से आ रहे थे तो वे मेडता रुके जहाँ पर मध्यकाल में कृष्ण भक्त मीराबाई ने कृष्ण भक्ति की सरिता बहाई थी । मीराबाई के मंदिर में श्री गोविंद दास जी ने प्रभु के सामने प्रार्थना की और कहा कि हे दीनदयाल आप मुझे अपनी सेना में शामिल कर लो। ईश्वर संकेत मिला इनको तो वही पर अपनी पढ़ाई की सारी अंकतालिका और अन्य कागजात जला डाले ।

और वही से महाराज दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गए और दिल्ली में उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगे एक युवा लड़के की मेहनत और ईमानदारी से  प्रेस मालिक भी बहुत प्रभावित हुआ और प्रेस का सारा कामकाज युवा गोविंद को सोंप दिया ।

एक रोज़ गोविंद चाय पीने पास की थड़ी पर गया तो वहां पर कुछ मजदूर आपस में बातें कर रहे थे कि प्रेस मालिक का इस लड़के पर बड़ा विश्वास है । प्रेस मालिक इसकी हर बात मानता है । जब ये बात महाराज के कानो में पड़ी तो उसी दिन अपने प्रेस मालिक को चाबी सौंप दी और दिल्ली रेल्वे स्टेशन पहुंच गए ।

रात्रि में वहीं स्टेशन पर ही सो गए । यहां इनको स्वपन में एक बालक के रूप में प्रभु के दर्शन हुए और बालक ने उनको कहा कि हे गोविंद तू क्यूँ भटक रहा हैं तू मेरी तरफ कदम बढ़ा । मैं तेरा कब से इंतजार कर रहा हूँ मैं तुम्हें मिल जाऊँगा तू कदम तो बढ़ा । इसके बाद ये खातोंली आए और जिस अधिकारी के साथ आए थे उनसे कहा कि मैं यही पर 2 माह तक भ्रमण करूंगा तथा 10 माह तक साधु महात्माओं के साथ सत्संग करूंगा ।

महाराज को अपने उस गुरु की तलाश थी जिनके दर्शन उनको स्वपन में हुए अधिकारी से भी गोविंद ने यही कहा कि साहब में मेरे  गुरु की खोज भी उसी दौरान करूंगा जब आपके यहां आऊंगा ।

Govind das ji द्वारा गुरु की खोज । Guru ki khoj -

अपने स्वप्न में आए गुरु की खोज में कई दिन बीत गए पर स्वप्न साकार नहीं हुआ तो महाराज जी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बुढ़ाना गांव के जंगल में तपस्या करने लगे । तब एक दिन गुरु विश्वभरनाथ जी ने गोविंद दास जी के पास समाचार भेजा और अपने आश्रम बुलाया। गुरु जी माला लेकर अपने गोविंद का स्वागत करने के लिए तैयार थे । जब गोविंद दास जी आश्रम पहुंचे तो लोगों ने कहा कि कौन है ये तब गुरुजी बोले मेरा गोविंद आया है । इस प्रकार वह एक दिन ही रुके, दूसरे दिन गुरु जी बोले हैं । गोविंद तू मेरी तू तेरी मातृभूमि में जाकर उसका उद्धार कर ध्यान रखना तू वहां पर जाकर कोई उपदेश मत देना झाँड़ा झपट्टा डोरा ताबीज कुछ कुछ मत करना केवल मानव प्राणी को सही रास्ता नेक कार्य भाईचारा, प्रेम, प्रभु से जुड़ने के लिए अखंड कीर्तन करना प्रभु तेरी मनोकामना पूर्ण करें जा और गोविंद जी ने अपनी मातृभूमि नरूका की ढाणी में प्रभु का कीर्तन प्रारंभ किया ।

दूसरे दिन रामजी पुरा में हरी चर्चा की तीसरे दिन भामु की ढाणी में हरी चर्चा बाद में आप रामकुंड चले गए । करीब 12 महीने वहां पर हरी चर्चा की और आप कदमाँ जी जो कि रुलाना के पास खाचरियावास से 3 किलोमीटर दूर है । यहां पर आप राम धुन और मंदिर के कार्य में लगे रहे लोग आप हो आप कीर्तन में भाग लेने के लिए आते गए और रामधुनी चालू हो गई । शिव मंदिर यज्ञशाला धर्मशाला काफी काम भी साथ-साथ चलता रहा । लोग वालंटियर होकर कार्य करने लगे रामधुनी 24 घंटे चलना भी एक अपने आप में मिसाल है लोग अपने आप वॉलिंटियर आते दूरदराज गांव ढाणी आदि से दूर-दराज के गांव से हर जाति के स्त्री पुरुष आने लगे । 

औरतें दिन की ड्यूटी और आदमी रात्रि की ड्यूटी लगाने लगे । आप आसन पर बैठकर केवल प्रसाद देकर ही आशीर्वाद देते और कोई फालतू उपदेश नहीं केवल यही कहते की राम का नाम ही सबका कल्याण कर सकता है । और मेरे पास राम नाम के अलावा कुछ नहीं । जो भी गोविंद जी की शरण में आए दारु में नशा लड़ाई झगड़ा सब आप हो आप बंद हो जाता था । किसी से भेदभाव नहीं सबको आप हंस कर यही कहते थे प्रेम से रहो भगवान राम को याद करो आपका सारा कार्य पूर्ण होगा । इस दौरान आप उत्तर प्रदेश में लशाना चले गए वहां पर काफी समय आप रहकर आप नरूका की ढाणी में रामधुनी चालू कि सारा कार्य करके  अपने आप  होता रहता ये गोविंद दास जी का चमत्कार ही था। ग्राम वासियों के आग्रह से बाज्यावास ग्राम  के ठाकुर साहब से पूछा कि आपके पूर्वजों के खंडहर पड़े महल खण्डहर पड़े है!

किसी समय से वहां पर गणेश प्रतिमा विराजमान थी ।  गणेश मंदिर के बारे में सबकी सहमति लेकर एक ऊंची पहाड़ी पर भव्य मंदिर का कार्य चालू किया । ग्राम वासियों ने रामधनी यहां पर भी चालू कर दी सत्संग भवन यात्रियों के लिए रात्रि को ठहरने का भवन भंडारा के लिए मकान पहाड़ी पर जाने आने का रास्ता और डबल दो मंजिला गणेश जी रिद्धि सिद्धि का मंदिर बनाया । इसमें कई दानदाता आप हो आप आकर भारी संख्या में योगदान देकर मंदिर कार्य को सफल बनाया यहां पर भी रामधुनी चल रही है । जिस गांव को कोई जानता नहीं था उसको उन्होंने एक पावन तीर्थ स्थल में बदल दिया ।

एक समय ऐसा भी आया कि गांव में पानी के लिए त्राहि त्राहि मची थी । Govind das ji ने ये काम भी अपने हाथों में लिया और नई ट्यूबल खुदवाना, नई पाइप लाइन डलवाना और उसके लिए खुद पूरा खर्चा वहन करके अलग से बिजली की लाइन लाना ये सब महाराज ने किया ताकि गांव का कोई भी प्राणी प्यासा नहीं रहे। और गणेश मंदिर की भव्यता देखते ही बनती हैं । बहुत ऊंचाई पर भव्य मंदिर का निर्माण महाराज श्री की ही देन हैं । बाज्यावास में महाराज लगभग 5-6 साल रहे सभी ग्रामीण उनका बहुत सम्मान करते थे रात दिन 24 घंटे रामधुनी चलती थी ।

ये भी इस ज़माने में अपने आप में बहुत बड़ी बात है । फिर आपको सीकर जिले में ही बाज्यावास के नजदीक काटिया के भक्तों ने प्रार्थना की कि हमारे  ग्राम को दर्शन देकर उद्धार कीजिए सब का मान कर गोविंद जी कांटिया जो जीण माता से खाचरियावास की रोड पर बसा हुआ एक पहाड़ी की तलहटी में एक गांव है वहां आकर पहाड़ी पर सत्संग सत्संग भवन और कुछ मकान बनाकर आपने यहां के लोगों को भी हरि कीर्तन से जुड़ने का मौका दिया ।

संत गोविंद दास जी का देवलोक गमन ।

 रात दिन हरि कीर्तन नर नारी यहां पर भी जुड़ते गए कुछ समय बाद वह गोगावास  ग्राम जो दाता से खाटू श्याम जी रोड पर करीब 7 किलोमीटर दूर सती माता का पुराना मंदिर है।  वहां के बिड में रोड किनारे ग्राम वासियों के आग्रह पर आपने बीड़ में आकर रामधुनी चालू कि आपकी बहुत भारी हार्दिक इच्छा की यहां की जगह खूब है । रोड का भी अच्छा साधन है दाता खाटू श्याम यात्रियों की सुविधा के लिहाज से यहां पर कच्छावा शेखावत उनकी माता जमवाय माता का बड़ा मंदिर यहां पर बनाने की इच्छा थी लेकिन परमपिता परमेश्वर की  मर्जी के आगे किसकी चलती हैं ? अचानक दिनांक 12 11 2014 को सुबह मस्तिष्क की बीमारी के कारण बेहोश हो गए । 

आपको हाथों-हाथ जयपुर सवाई मानसिंह हॉस्पिटल ले गए । सभी भक्तों और प्रशासन ने एकजुट होकर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे और सभी डॉक्टरों की टीम इलाज के लिए जुट गए लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ और गोविंद जी 12 11 2014 को कोमा में चले गए । दिनांक 25/ 11/ 2015  तक कोई सुधार नहीं हुआ तो गोगावास से नरूका की ढाणी परिवार अपने पैतृक भूमि जहां पर आपने राम धुन मंदिर बना रखा था । वहां से तारीख 22/ 11/ 2016 को नरूका की ढाणी ले आए यहां पर सभी भक्तगण सारी ढाणी वाले परिवार में आपकी सेवा की जो कि एक मिसाल कायम की है । आज तक किसी परिवार में अपने माता पिता भाई बंधु किसी को सेवा किसी की सेवा मैंने अपने 40 साल की उम्र में मैंने नहीं देखी । भगत जी महाराज केवल खुल कर बोल नहीं पाते थे खाना पीना दूध दलिया फलों का रस केवल नलची द्वारा ही देते थे ।

 एक दो बार तो नलची निकाल दी थी Sant Govind Das ji Maharaj से कोई भी मिलने आता तो देखकर मुस्कान उनके होंठो पर थिरक जाती और अपने हाथों से आए हुए भक्तों को स्वयं प्रसाद देते और अपना हाथ भक्तों के सिर पर रखकर आशीर्वाद देते आए हुए लोगों को बखूबी पहचान जाते मैं स्वयं उनकी सेवा में हर सप्ताह हनुमान जी मास्टर जी के साथ शाम से लेकर सुबह तक रहता था मेरा प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि महाराज त्रिकालदर्शी थे उनको कई चीजों का आभास पहले से ही हो जाता था ।

एक समय ऐसा भी आया कि महाराज हमे छोड़ कर देवलोक सिधार गए और जब ये खबर सुनी तो मैं आवाक रह गया मानो अनाथ हो गया । सब कुछ छीन लिया गया हो महाराज की आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी दिनाँक 24 1 2017 रात्रि 10:15 बजे महाराज ने अपनी देह त्याग कर उस विराट सत्ता में विलीन हो गए ।

उनके अंतिम संस्कार में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा जिसने भी य़ह दुखद समाचार सुना उनके नयन अपने गुरुदेव के जाने से सजल हो गए । लोग सुधि भूल गए उस दिन बरसात की नन्ही बूंदे बरस रहीं थीं ऐसा लगा कि महाराज के जाने से प्रकृति भी आँसू बहाते हुए महाराज को अंतिम विदा दे रहीं हैं महाराज के चमत्कार 

सन्त गोविंद दास जी के चमत्कार -

Sant Govind Das ji कभी चमत्कार की बात स्वयं नहीं किया करते थे पर लोगों के साथ बहुत सी चमत्कार पूर्ण बाते घटी एक बार  की बात है जब महाराज अपने गुरु से आज्ञा लेकर अपनी मातृभूमि राजस्थान में आए और राम कुंड पर आकर रहने लगे कुछ महिलाओं ने कहा दोपहर के समय जब वो एक वृक्ष के नीचे आराम कर रहीं थीं कि अगर सच्चा साधु है तो अभी हमे गर्मागर्म खीर खिलाये तो माने । 

महाराज दूर थे थोड़ी देर बाद अपनी कमंडल को माँज के पानी की बावड़ी में डुबोया और महिलाओं के पास आकर सबको गर्म खीर का प्रसाद दिया । इस घटना से महिलाये भी आश्चर्य चकित रह गई । एसे ही एक बार पत्थरों से भरी ट्रॉली पलट गई पर उस पर बैठे आदमी ट्रॉली के नीचे दब कर भी एक खरोंच तक नहीं आई ।

इसी प्रकार मैं ( लेखक ) नई मोटरबाइक लाया चलाना ज्यादा नहीं जानता था मैं मेरी पत्नि और मेरा बेटा आयुष बाइक से महाराज से मिलने गणेश मंदिर जा रहे थे । पर रास्ते मे बाइक से हम तीनों गिर गए महाराज तो मंदिर में थे हम बाइक खड़ी करके मंदिर में गए जाकर महाराज को जैसे ही धोक दी तो दूर बैठे महाराज ने कहा कि लगी तो नहीं मेने कहा कैसे तो महाराज ने कहा कि अभी थोड़ी देर पहले तुम तीनों गिर गए थे ना ये सुनकर में आश्चर्य में पड़ गया कि इतनी दूर से महाराज को कैसे पता चला कि मैं बच्चे और पत्नि सहित बाइक से गिर गया था ।

एक बार मेरे पिता जी श्री ओंकार मल जी खाचरियावास से अपने एक मित्र के साथ आ रहे थे दोनों को भूख लगी सोच रहे थे कि अभी कोई खाने को देदे तो कितना अच्छा हो । इतने में ना जाने कहा से महाराज आए और दोनों को चूरमा देकर चले गए । महाराज छोटे से बर्तन में रखा प्रसाद हज़ारों लोगों को दे देते थे पर कभी कम नहीं पड़ता था । महाराज आठों सिद्धि व नौ निधि की जीती जागती मिसाल थे । ऐसे महान संत Govind das ji को शत शत नमन .... ।

लेखक - महावीर प्रसाद वैष्णव बाज्यावास जिला सीकर राजस्थान ।

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