संत कबीरदास जी का जीवन परिचय | Kabir Das biography in hindi.

कबीरदास जी का जीवन परिचय | Kabir das biography in hindi. Class 11.


Kabiradas biography in hindi.

Kabir das biography in hindi. भारतीय इतिहास में ऐसे कई महान संत, कवि, लेखक हुए जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी । 14वी शताब्दी में जन्मे संत कबीरदास जी भी उनमें से एक थे ।  उन्होंने छुआछूत एवं मूर्ति पूजा का घोर विरोध किया । उन्होंने अपनी अपनी साहित्यिक कृतियों जैसे दोहे आदि के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों एवं भेदभाव पर करारा प्रहार किया ।

Kabir das महान संत थे जिन्होंने समाज सुधार पर जोर दिया । उन्होंने पाखण्डवाद एवं अंधविश्वास का विरोध किया । उन्होंने अपने दोहे के माध्यम से सामाजिक चेतना का कार्य किया । उनका विचार थे कि आध्यात्मिक ज्ञान व चेतना के लिए सतगुरु की शरण में जाना चाहिए । तो Bio4hindi में जानते है संत कबीरदास का जीवन परिचय । Kabir das biography in hindi.

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संत कबीरदास का जीवन परिचय । Kabiradas biography in hindi.

संत कबीर दास जी का जन्म विक्रम संवत 1455 में एवं ( सन 1398 ) में ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि के दिन काशी (वाराणसी) में एक दलित परिवार नीरू एवं नीमा के घर  हुआ था। इनके पिता नीरू जी की मृत्यु बचपन मे हो गई जिसे कबीर दास को बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ा । दलित या शूद्र परिवार में होने कारण उन्हें अनेको मुश्किलों का सामना करना पड़ा । 

कबीरदास के जन्म पर इतिहासकारो में मतभेद है । कुछ इतिहासकार मानते है कि रामानंद जी के आशीर्वाद से एक ब्राह्मण विधवा के, गर्भ से उत्पन्न हुये, फिर उस विधवा ने उन्हें लहरतारा ताल के पास फेंक आई । उन्हें वहां से नीरू नाम का जुलाहा अपने घर ले आया और इनका पालन पोषण किया । कबीर दास जी के शब्दों में कबीर दास जी ने लिखा है

काशी में प्रकट भए, रामानंद चैताय । 

कबीर दास जी की रचना में उनके जन्म का उल्लेख इस प्रकार है :-

पहले दर्शन मगहर पायो, पूनी  कहीं बसे आई। 

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि काशी में रहने से पहले उन्होंने मगर देखा था वह गांव तो वाराणसी के निकट है जहां पर कबीर दास जी का मकरबा भी है। 

कबीर दास जी के माता पिता एवं गुरु का क्या नाम था ?

Kabir Das की माँ नीमा और पिता नीरू जी गरीब थे, दो वक्त का खाना भी इनके पास में नहीं था । इनका जीवन यापन बहुत कठिन था। 

शिक्षा - ऐसा माना जाता है कि इन्हीं बचपन से ही नहीं तो किसी प्रकार के खेल में रुचि थी उन नहीं पढ़ने की इच्छा होती थी । परिवार की दयनीय स्थिति होने के कारण इनकी किताबी शिक्षा नहीं हो पाई । परंतु ये ज्ञानीऔर आध्यात्मिक व्यक्ति थे। ऐसा माना जाता है कि कबीर दास जी अपने मुख से दोहे को बोलते थे और उनके शिष्य कमाल और उनकी शिष्या लोई और कमाली दोहे को लिखने का काम किया करते थे। इसका कई बार कबीर दास जी ने अपने दोहे में जिक्र किया है। कबीर दास जी की शिक्षा के प्रति कबीर दास जी ने अपने दोहे में इस प्रकार रचना की -

मसि कागद छुओ नहीं, कमला गही नहीं हाथ। 
पोथी पढ़ि पढ़ि ने जग मुआ, पंडित भया न कोई।  
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। 

कबीरदास का पारिवारिक सांसारिक जीवन | Kabir das family.

कबीर दास जी धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण मेहमान का आना जाना लगा रहता था। एक तो इनके घर में गरीबी और ऊपर से मेहमानों का आने जाने के कारण, अक्सर कबीर दास जी की पत्नी कबीर दास जी से झगड़ा किया करती थी। सत कबीर दास जी दोहे में इस प्रकार समझाया करते थे जैसे - सुनी अंधनी लोइ बंधीर,  इन मुडियम माही सरन कबीर । । 

जबकि कबीर दास जी के दूसरे दोहे से यह अंदाजा लगाया जाता है कि इनके पुत्र इनके विचार का विरोध करते थे वह दोहे में इस प्रकार -

बूढ़ा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल । 
शरीर का स्मरण छोडि के, घर ले आया माल।। 

कबीर दास जी लो शब्द का इस्तेमाल अपने दोहे में कंबल के रूप में करते थे वह इस प्रकार है। 

कहत कबीर सुनो रे लोइ। 
हरि बिन राखन हार न कोई।। 

कबीर दास जी के दूसरे दोहे में इस बात का अंदाज लगाया जा सकता है कि Kabirdas ji की पत्नी बाद में शिक्षा बनी जो दोहे में इस प्रकार है। 

नारी तो हमें भी करी, पाया नहीं विचार।
जब जाने तब परी हरि, नारी सदा विकार।। 

मूर्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए कबीर दास जी ने एक साथ लिखी -

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजौपहाड़ या ते तो चाकी भली, जासे पिसी खाये संसार। 

कबीरदास के गुरु का क्या नाम था ? Kabir das ke guru kaun the.

गुरु राम दास जी ने इन्हें गुरु दीक्षा देने के लिए मना कर दिया था। परंतु कबीर पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे । एक दिन वह गंगा घाट पर गिर पड़े तभी वहां से रामानंद जी स्नान करके जा रहे थे तो  उनका पैर कबीरदास जी पर  पड़ा और उनके मुख से अचानक राम - राम निकल गया । कबीर दास जी ने राम शब्द को ही गुरु मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया । लेकिन कुछ समय पश्चात इनके विचार अपने गुरु से मेल नहीं खाए और वे निर्गुण भक्ति में लग गए । 

Kabir das का विवाह - बनखेड़ी के बैरागी जी की कन्या लोरी के साथ हुआ । कबीर दास जी की दो संतान थी । एक लड़का कमाल और एक लड़की कमाली, कबीर जी का वर्णन ग्रंथों में इन्हें बाल ब्रह्मचारी भी माना जाता है । तो ऐसा भी कहा जाता है कि, ज्ञान प्राप्ति के बाद कबीर दास जी ने लोही को अपनी, शिष्या और अपने बच्चों को भी अपने शिष्य बना लिए होंगे  । 

कबीरदास की काव्य भाषा | kabir das ki bhasha.

अवधी, भोजपुरी पंचमेल, खिचड़ी सुधक्कड़ी, कबीर दास जी मूर्ति पूजा, मंदिर, मस्जिद आदि को नहीं मानते थे । ज्ञानमयी निर्गुण शाखा की  काव्य धारा के प्रवर्तक थे । कबीर दास जी अपनी बात को जिस प्रकार कहना चाहते थे, वह अपनी भाषा में कहते थे । भाषा भी कबीर दास जी के सामने मनो लाचार हो जाती थी। 

उनकी बात को टालने की भाषा के पास हिम्मत नहीं थी, इतनी भाषा शैली के धनी कबीर दास जी थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर जी को भाषा का डिक्टेटर कहा है उनके दोहे सार गंभीत है। श्यामसुंदर दास जी ने इनकी भाषा का निर्णय टेढ़ी खीर बताया है क्योंकि वह खिचड़ी भाषा है।  आचार्य शुक्ल जी के द्वारा कबीर जी की भाषा  सधूककड़ी कहा जाता है। 

कबीर दास जी का कृतित्व व व्यक्तित्व | kabir das ka krtitava.

बीर दास जी ने अपने पिता के पेशे को पुण्य का काम शुरू किया लेकिन सांसारिक कार्यों से उन्हें धीरे-धीरे वैराग्य सा होने लगा था कबीर दास जी के विचार अध्यक्ष वादी दर्शन से मिलते हैं लेकिन हम उन्हें अदिति बाती नहीं कह सकते हैं उन्होंने धर्म ग्रंथ को रखने के बजाय लोगों को प्रेम और विश्वास पर जोर दिया है। 

Kabir das ji संत विद्वत विचार के भक्ति काल के प्रमुख कवि थे। वे एक अच्छे समाज सुधारक थे । दोहे में जब भी हम देखते हैं कबीर दास जी का नाम प्रमुख रूप से सभी के लबों पे आता है। इनकी भाषा खड़ी होती है, ब्रज भाषा होती है लेकिन इनके दोहे में हिंदी की छवि झलकती है। 

Kabir das biography in hindi. 

विचार -  इनका लेखन पूर्वजन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित है, उनका कहना है कि चाहे आप हिंदू हो या मुसलमान अपने अनुसार अलग-अलग जाप करते हो लेकिन सबका परमात्मा तो वह एक ही है । कबीर दास जी क्रांतिकारी पुरुष थे। 

कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएं । kabir das ji ki rachanaen.

Kabir das की रचना में अनुराग सागर, अमरमूल, अर्जनाम कबीरना, उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत दस भाषा, तीसाजंत्र, आरती कबीर कृत, अठपहरा, अक्षर खण्ड की रमैनी, अलिफ नामा, कबीर गोरख की गोष्टी, उग्र गीता, अक्षर भेद की रमैनी, कबीर और धर्मदास की गोष्टी, कबीर की साखियां, चौका पर की रमैनी, कबीर की वाणी, कबीर अष्टक, जन्म बोध, कर्मकांड की रमैनी, काया पंजी, चौतीसा कबीर का, छप्पय कबीर का, अगाध मंगल, कबीर दास जी की ऐसे अन्य रचनाएं देखने में आती है जिनमें से प्रमुख यह है जैसे -बीजक रमैनी, सबद, साखीया रचनाएं थी । 

साखीया - इसमे कबीरदास जी की शिक्षा और सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है। साखी एक संस्कृत शब्द का रूपांतर है । संस्कृत में भी  साखी लिखी गई है, इसे दोहे और सोरठा में लिखा गया है। 

सबद - कबीरदास जी की ये गैय पद में है, सर्वोत्तम घटनाओं में से एक है इसमें उन्होंने उपदेश, संगीत, प्रेम और अंतर्मन की साधना, का वर्णन बड़ी खूबसूरती से किया है। 

रमैनी - इसमें kabir das ने अपने कुछ दार्शनिक रहस्य वादी विचारों की व्याख्या चौपाई में लिखी गई है। इन्होंने अपने सभी रचनाएं चौपाई और  छंद में लिखी है। 

एच एच विल्सन के अनुसार कबीर जी के आठ ग्रंथ हैं। विषपजी, एच वेस्ट कोचं कबीर के 74 ग्रंथ की सूची प्रस्तुत की है। रामदास ने हिंदुत्व में 71 पुस्तकें गिनाई है । कबीर दास जी मुख्यतः रचना साखीया और पदों में ही हुई है। 

कबीर दास के 10 दोहे । Kabir das ke dohe.

कबीर दास जी के दोहे हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं । यदि हम इन के 1 दोहे को भी जीवन में उतारे तो अजीब सी शक्ति का महसूस करते हैं। 

एक दिन ऐसा होईगा, सबसे पड़े बिनोह। 
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होय।। 
झूठे को झूठा मिले, दूजा बंधे स्नेह ।
झूठे को सांचा मिले, तभी टूटे नेह ।। 

कबीरदास जी रूढ़िवादी व पाखण्ड पर विचार - कबीर दास जी माला पहनने वाले पंडित और मुल्लों पर तंत्र करते हुए कहते हैं। मन की माला फेरने का उपदेश देते हैं । दोहे में कहते हैं -

माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर । 
कर का मनका छोडी दे, मन का मनका फेर ।। 

Kabir das मस्जिद में अजान के वक्त मिला जोर से चिल्लाते हैं तब तभी दास जी कहते हैं कि क्या तुम्हारा खुदा कम सुनता है जो इतना जोर से चिल्लाते हो । दोहे में कहते हैं -

कांकरी, पाथरी, जोड़ी के मस्जिद लहि चूनाय । 
ता चढ़ी मुल्ला बाग दे, क्या बहरा है खुदा ।। 

कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु के बिना ब्रह्म ज्ञान नहीं होता है । उन्होंने गुरु की महत्ता को बड़े ही सुंदर तरीके से दोहे में व्यक्त किया है जैसे -

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। 
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।। 

कबीर दास जी ने सिर मुंडवा करके सन्यासी वेश धारण करने वाले पाखंडी ऊपर व्यंग किया है दोहे में जैसे -

केशन कहा बिगारिया, जो मुंडो सौ बार । 
मन को क्यों नहीं मुंडिए जा में विषय विकार ।। 

कबीर दास जी का कहना है कि ब्रह्म से ही जगत की उत्पत्ति हुई है इसीलिए ब्रह्म संसार में प्रधान है बाकी सब नाशवान और मिथ्या है दोहे में -

पानी हिते हिम भया, हिम तै गया बिलाई । 
जो कुछ भी सोई भया, अब कुछ कहा न जाई।। 

Kabiradas story in hindi.

कबीर दास की कहानी । Kabir das story in hindi -

कबीर दास जी कवि और समाज सुधारक थे । उन्होंने यज्ञोपवित्र को बेमतलब बताया । कबीर दास जी पाखंडी को धर्म के नाम पर दाग और पाखंडवाद तथा स्वार्थ पूर्ति की निजी दुकानदारों को ललकार ता हुआ हर शब्द दिखाई पढ़ता था । 

इन्होंने असत्य और अन्याय की पोल खोली थी । कबीर दास जी का सत्य अनुभव अंधविश्वासीयों में बारूद की गोलियों के प्रभाव सा था । कबीर दास जी के बोले गए शब्द लोगों के परिधान पर चोट करते थे और इनके दिल के खोट  को बाहर निकालते थे । इसीलिए कुछ रूढ़ीवादी उनकी सत्यनिष्ठा की निंदा भी करते थे। मस्त मौला लापरवाह फकीर के व्यक्तित्व के धनी थे। कबीर दास जी ने लोगों को पत्थर पूजने की बजाएजग में स्वतंत्र भक्ति का रास्ता दिखाया है। कबीर दास जी के नाम पर आज भी कबीर मठ, कबीर पंथ, देश देश में स्थापित हमें देखने को मिलते है । 

Kabir das जी को दूसरे संतो के द्वारा दी गई व उनके उपयोग में आने वाली वस्तुएं आज भी हमें मठ में देखने को मिलती है जैसे - खड़ाऊ, सिलाई मशीन और रुद्रा की माला भी मिली जो रामानंद गुरु जी के द्वारा कबीर दास जी को दी गई थी । तथा जंग रहित त्रिशूल और उनके इस्तेमाल में आने वाली अन्य वस्तुएं भी हमें कबीर मठ में उपलब्ध दिखाई देती है। 

Kabir das का ऐतिहासिक कुआं -

ऐसा कहा जाता है कि कबीर मठ में एक कुआं है जिसकी पानी को कबीर दास जी की साधना से अमृत रस मित्र के साथ मिला हुआ माना जाता है । दक्षिण भारत के महान पंडित सर्वानंद जी के द्वारा पहली बार यह अनुमान लगाया गया था कि वह वहां कबीरदास जी से बहस करने आए थे और प्यासे हो गए उन्होंने पानी पिया और सामान्य अंदाज से कबीर का पता पूछा तो उन्होंने ने दोहे के रूप में उनका बताया -

कबीर का शिखर पर, सिलहिली गाल। 
पाव ना टिकाई पीपील का, पंडित लड़े बाल।। 

सर्वानंद जी कबीर जी से बहस करने गए थे लेकिन उन्होंने बहस करना स्वीकार नहीं किया और सर्वानंद को लिखित रूप में अपनी हार स्वीकार की शर्मा ने वापस अपने घर आए और हार की स्वीकृति को अपने मां को दिखाया और अचानक उन्होंने कहा कि उनका लिखा हुआ उल्टा हो चुका था वह इस सच्चाई से बेहद प्रभावित हुए और वापस दे काशी के कबीर मठ में कबीरदास जी के अनुयाई बने कबीर से इस तरह प्रभावित हुए थे कि अपने पूरे जीवन पर उन्होंने कभी कोई किताब नहीं छुई बाद में सर्वानंद आचार्य श्रुति गोयल साहब की तरह प्रसिद्ध हुए कबीर के बाद वे कबीर मठ के प्रमुख बने। 

कबीर सिद्ध पीठ कैसे पहुंचे ?

सिद्ध पीठ कबीर चौरा मठ मूल घड़ी वाराणसी के रूप में जाना जाने वाला भारत के प्रसिद्ध सांस्कृतिक शहर में स्थित है वहां कोई भी हवाई मार्ग रेल मार्ग या सड़क मार्ग से पहुंच सकता है यह मठ वाराणसी हवाई अड्डे से 18 किलोमीटर वाराणसी रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।  काशी नरेश यहां क्षमा मांगने आए थे ।

कहा जाता है एक बार काशी नरेश राजा वीर देव सिंह जूदेव अपना राजस्थान छोड़ने के दौरान माफी मांगने के लिए अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ आए थे । कहानी का विवरण कुछ इस प्रकार है कि काशी नरेश ने कबीर दास जी की बहुत प्रशंसा सुनी और सभी संतो को अपने राज में आमंत्रित किया । तब कबीर दास जी राजा के यहां अपनी एक छोटी सी पानी के बोतल के साथ पहुंचे । उन्होंने उस छोटी बोतल का सारा पानी उनके पैरों पर डाल दिया ।

Kabir das biography in hindi. 

कम मात्रा का पानी देर तक जमीन पर बहना शुरू हो गया। पुरा राज्य पानी से भर उठा, इसलिए कबीर से इसके बारे में पूछा गया उन्होंने कहा कि एक भक्त जो जगन्नाथपुरी में खाना बनाते समय झोपड़ी में आग लग गई । जो पानी गिराया था वह उसकी झोपड़ी को आग से बचाने के लिए था । आग बहुत भयानक थी इसलिए छोटे बोतल से और पानी की जरूरत हो गई थी। लेकिन राजा और उसके अनुयाई इस बात को नहीं मानते और वह सच्चाई जानना चाहते थे । 

उनका विचार था कि आग उड़ीसा में लगी और पानी यहां डाला जा रहा है काशी में । राजा ने अपने 1 अनुयायियों को इसकी छानबीन के लिए वहां भेजा । अनुयाई वहां से आया और बताया कि कबीर ने जो कहा था बिल्कुल सत्य था । इस बात के लिए राजा बहुत शर्मिंदा हुए और तय किया कि वह माफी मांगने के लिए अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ जाएंगे । अगर वह माफी नहीं देते हैं तो वहां आत्महत्या कर लेंगे उन्हें वहां माफी मिली और उस समय से राजा कबीर मठ से हमेशा के लिए जुड़ गए। 

कबीर दास जी का कहना था कि कर्मों के आधार पर हमें गति मिलती है। गांव में रहने के आधार पर नहीं, कुछ लोगों का कहना था कि काशी या वाराणसी में मरने से इंसान को स्वर्ग मिलता है। बाकी दूसरे जगह मरने से नरक मिलता है, इसीलिए कबीर दास जी वाराणसी से मगहर आ गए थे। वहांबीर दास जी ने अपना अंतिम समय मगहर में ही व्यतीत किया। लोगों की अवधारणा को दूर करने के लिए ही वे वहां गांव में रहे और वही उनका लंबी बीमारी के चलते देहांत हुआ। 


कबीर की मृत्यु कब और कहा हुई थी । kabir das death.

कबीर दास जी की मृत्यु 1575 विक्रमी सन् 1518 में काशी के घाट के निकट मगहर में हुई । वही इन का (मकबरा) समाधि  बनी हुई हैं। यह स्थान एक विश्व प्रसिद्ध शांति और ऊर्जा की जगह है समाधि कबीर दास जी की वही बनी हुई है जहां अक्सर करके कबीर दास जी साधना किया करते थे। सभी संतो के लिए यहां समाधि से साधना तक की यात्रा पूरी हो चुकी होती है । इस स्थान पर आज भी संत लोग अत्यधिक ऊर्जा के बहाव को महसूस करते हैं ,और कबीर दास जी के मौजूद का एहसास करते हैं । कबीर दास जी की मृत्यु के बाद कबीर दास जी का शरीर हमसे बिछड़ा है ,लेकिन उनकी यादें उनकी दोहे सब हमारे जहन में, दुनिया के इतिहास में आज भी मौजूद हैं ।

Kabir das biography in hindi. 

Kabir das की मृत्यु के पश्चात इन के शव पर भी कई विवाद हुए । हिंदू और मुस्लिम अपने अपने तरीके से इनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे । तभी अचानक से शव पे से चादर हट, गई और वहां फूलों का ढेर हो गया । उस घर में से आधे फूल मुसलमान ले गए और आधे हिंदू ले आए। फिर उन्होंने अपने अपने तरीके से उनका अंतिम संस्कार किया। इनकी मृत्यु के लिए भी मतभेद सुनने में आते हैं इतिहास कारों का कहना है 1448 में इनकी मृत्यु हुई । कुछ लोग का कहना है 1575 के अंत में हुई ।

अंत में निष्कर्ष के रूप में इन क्रांतिकारी संत की वाणी के दोहो में से हम एक भी गुण अपने जीवन में उतार कर समाज का वह अपना भला कर सकते हैं । और लोगों को एक नई जीवनशैली के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं । इनके दोहे से प्रभावित लोग निम्न है दादू दयाल जी, सूरदास जी, दरिया नाथ जी, धर्मदास जी, सैन भाई आदि कबीर पंथ ( Kabir Panth ) की साधना करते हैं । रविंद्र नाथ ठाकुर जी के ब्रह्म समाज के विचारों से मेल खाने के कारण कबीर वाणी को अंग्रेजी में प्रस्तुत कर आजीवन कबीर जी से प्रभावित रहे। 

नाम शिवा सिहंल आबूरोड राजस्थान,

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