मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय । Madan Mohan Malaviya biography in Hindi.
Madan Mohan Malaviya biography in Hindi. महामना मदन मोहन मालवीय जी एक आदर्श पुरुष थे । उन्होंने पत्रकारिता, समाज सुधार, वकालत के रूप में भारत माँ की सेवा की । उन्होंने शिक्षा को बहुत अधिक महत्व दिया । उन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता कहा गया है ।
Madan Mohan Malaviya एक महान व्यक्तित्व के धनी थे । उन्हें महामना की उपाधि दी गई । उनकी मृत्यु के बाद उनके नाम से कई नगर बसाया गया । आज की युवा पीढ़ी के आदर्श व्यक्तित्व के रूप मालवीय जी सदैव स्मरणीय है । मातृभूमि के लिए किए गए उनके कार्यो एवं योगदान उनकी महानता को दर्शाता है ।
एक वकील के रूप मदन मोहन मालवीय जी ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजी कानूनों से बचाने का भरसक प्रयास किए । एक वकील के रूप में मालवीय जी भारतीयों को फाँसी से बचाकर एक स्वतंत्रता सेनानी का परिचय दिया । वे मातृभमि के रक्षक थे तो चलिए जानते है - मदन मोहन मालवीय जी का जीवन परिचय । Madan Mohan Malaviya biography in Hindi.
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मदनमोहन मालवीय जी का जीवन परिचय । Madan Mohan Malaviya biography in Hindi.
मदन मोहन मालवीय जी का जन्म - 25 दिसम्बर 1861मे इलाहाबाद में ब्राह्मण परिवार में हुआ था । इनके पिता पंडित बैजनाथ जी और माता मीना देवी जी था। जाति इनकी चतुर्वेदी ब्राह्मणी धर्म हिंदू था। मालवीय जी 5वी सन्तान थी, वे सब बच्चों में एक अनोखे लडके थे । मालवीय जी के अलावा 5 भाई और दो बहन भी थी। वास्तव में इनके पूर्वज मूल रूप से मालवीय मध्यप्रदेश के संस्कृत के विद्वान थे। इसलिए इन्हें मालवीय कहा जाता था।
Madan Mohan Malaviya के पिता संस्कृत के विद्वान कथावाचक थे वह श्रीमद् भागवत की कहानियों को पढ़ा करते थे । इसी पद्धति, कारण मालवीय जी भी उनकी पिता की तरह ही कथावाचक बनना चाहते थे। उनके सबसे छोटे पुत्र गोविंद मालवीय जी भी स्वतंत्र सेनानी थे और पार्लियामेंट के सदस्य भी थे । अभी उनके पोते की पत्नी श्रीमती सरस्वती मालवीय उनकी पुत्री के साथ इलाहाबाद में रहती है।
मदन मोहन मालवीय का विवाह । Madan Mohan Malaviya marriage.
16 वर्ष की उम्र में मदन मोहन मालवीय जी का विवाह मिर्जापुर की कुंदन देवी के साथ 1878 में हुआ । इनकी पांच बेटियाँ और 5 पुत्र थे। रमाकांत मुकुंद राधाकांत गोविंद पुत्रियां रामा और मालती थे।
मदन मोहन मालवीय की शिक्षा | Madan Mohan Malaviya education.
Madan Mohan Malaviya की 5 वर्ष की उम्र में ही शिक्षा प्रारंभ हुई । इन्हे महाजन स्कूल में भेजा गया । उन्होंने कविताएं लिखना शुरू की यही कविताएं बाद में कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई । उन्होंने एक उपनाम मकरंद के नाम से कविताएं लिखी । जिन्हें बाद में हरिश्चंद्र चंद्रिका पत्रिका में 1883 से 84 के दौरान प्रकाशित किया गया था । इसके अलावा उनके समय काल में धार्मिक विषयों पर उनके लेख हिंदी पत्रिका में प्रकाशित हुए।
वर्ष 1879 में उन्होंने इलाहाबाद में विश्वविद्यालय मुरई सेंटर कॉलेज से अपना मैट्रिक परीक्षा पास की बीवी कोलकाता विश्वविद्यालय में B.A. करने चले गए इनकी पर विजिट स्थिति ठीक नहीं होने के कारण श्री हरि सन कॉलेज के प्रधानाचार्य ने उन्हें मासिक छात्रवृत्ति के साथ मदद की। उसके बाद धार्मिक विद्यालय गए । वहां हरादेव जी की देखरेख में इनकी शिक्षा दीक्षा हुई । वहीं से इनके जीवन में हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति पर प्रभाव पड़ा ।
1866 में शासकीय हाईस्कूल में दाखिला हुआ । 1879 में मदर सेंटर कॉलेज इलाहाबाद में मैट्रिक पास की। 1884 में कोलकाता विश्वविद्यालय से B.A. पास किया। 1891 में एलएलबी की पढ़ाई शुरू की । 40 ₹ मासिक वेतन में में शिक्षक की नौकरी की, आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इनकी M.A. की पढ़ाई अधूरी रह गई ।
भाषा - मालवीय जी मुख्य रूप से हिंदी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते थे।
मदन मोहन मालवीय को महामना की उपाधि किसने दी । Madan Mohan Malaviya ki upadhi.
गांधी जी ने मदन मोहन मालवीय जी को महामना की उपाधि दी। पंडित जवाहरलाल नेहरू मालवीय जी को अपना बड़ा भाई मानते थे । भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन इनके निस्वार्थ काम के कारण इन्हें कर्म योगी का टाइटल भी दिया था । नेहरू जी का कहना था कि यह एक महान आत्मा है, जिन्होंने नवीन भारत के राष्ट्र की नींव रखी है ।
- गांधीजी ने इन्हें, मेकर्स ऑफ इंडिया कहा था।
- इनके नाम का एक डाक टिकट भी जारी किया गया।
- उन्हें धर्मात्मा भिखारियों के राजकुमार जैसे भी संबोधन मिले हैं । 2014 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से मालवीय जी को नवाजा गया ।
- ब्रिटिश सरकार को इस बात के लिए मनाना न्यायालय में देवनागरी लिपि का उपयोग किया जाए जिसमें मालवीय जी की बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है ।
- मालवीय जी कट्टर हिंदूवादी थे । और गौ हत्या के विरोधी थे, उन्होंने 1922 में लाहौर और 1931 में कानपुर में एकता पर प्रसिद्ध और ओजस्वी भाषण भी दिया था।
मदन मोहन मालवीय के भाषण । Madan mohan malviya speech.
मालवीय जी ने 1886 में अपने एक भाषण में कहा था कि मैं 50 वर्षों से कांग्रेस के साथ हूं, संभव है मैं अधिक दिन और नहीं जीयूगा । अपने मन में मैं यह कसक लेकर मरू कि भारत आज भी पराधीन है, किंतु फिर भी मैं यहां आशा करता हूं कि मैं इस भारत को स्वतंत्र देख सकूंगा। अपने भाषण में मालवीय जी ने एक निराशा में आशा भारत की स्वतंत्रता के प्रति जोड़ कर रखी थी।
मदन मोहन मालवीय जी का योगदान । Madan mohan malviya ka yogdaan. -
मदन मोहन मालवीय जी की एक राजनेता एवं स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जीवन की शुरुआत हुई। 1886 में कोलकाता में, दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में इनको भाषण बोलने का मौका दिया गया । इनके भाषण से कई लोग प्रभावित हुए और प्रतापगढ जिले के महाराज राजपाल जी भी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपने साहित्यिक समाचार पत्र हिंदुस्तान का संपादक बना दिया । मालवीय जी ने 1887 में नौकरी छोड़ कर संपादक का काम शुरू कर दिया था।
लॉ की पढ़ाई करते करते 1889 में वो इंग्लिश डैली के लिए काम कर रहे थे, इनके अलावा संपादक के रूप में अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया । 1889 से 1924 हिंदुस्तान पेपर बंद हो जाने से बचाने के लिए, महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें एमआर, जयकार, लाला लाजपत राय और घनश्याम दास बिरला ने इनका सहयोग किया 1936 में उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स का हिंदी एडिशनलड निकालना शुरू किया, जिसका नाम हिंदुस्तान रखा गया।
Madan Mohan Malaviya biography in Hindi.
Madan Mohan Malviya ने ढाई साल तक प्रबंध कार्य संभाला। फिर इलाहाबाद में एलएलबी की पढ़ाई शुरू की, 1891 में जिला न्यायालय की प्रैक्टिस शुरू की । 1893 में प्रगति के लिए कदम बढ़ाए।
1907 में अभ्युदय नामक हिंदी पत्रिका शुरुआत की। 1909 मे मालवीय जी पहली बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1909 में मालवीय जी ने लीडर नाम के इंग्लिश पेपर की शुरुआत की थी जिसमें उन्होंने 1911 तक संपादक का काम देखा 1911 से 1919 तब उन्होंने हिंदी पेपर मर्यादा की शुरुआत की।
मदन मोहन मालवीय की उपलब्धियां । Madan Mohan Malaviya ki upalabdhiyan.
Madan Mohan Malaviya ji ने एलएलबी करने के बाद 1891 में इलाहाबाद में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में उन्होंने प्रैक्टिस शुरू कर दी । उनको जीवन में चार बार क्रमशः 1919 और 1918, 1903 1937 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए । और भी प्रेसिडेंट मालवीय जी ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किए, इसी के साथ 1916 में नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा प्रस्तावित लखनऊ एक्ट का उन्होंने विरोध भी किया था। 1911 में पूरी तरह से खुद को शिक्षा के क्षेत्र में सम्मिलित करने के लिए 1911 में मालवीय जी ने न्यायाधीश की प्रैक्टिस छोड़कर देश की सेवा में लग गए ।
सन 1922 में हुआ चोरा चोरी काण्ड के बाद 1924 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में उन्होंने 177 क्रांतिकारियों को, सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी तब मालवीय जी 156 लोगों को निर्दोष साबित कर फांसी से बचा सके थे ।
सन 1800 में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना करने वाली एक ब्रिटिश महिला अधिकारी कार्यकर्ता समाजवादी थियोसॉफिस्ट वक्ता और लेखक एनी बेसेंट ने अप्रैल 1911 में मदन मोहन मालवीय जी से मुलाकात की इन दोनों ने मिलकर ही वाराणसी में एक हिंदू विश्वविद्यालय स्थापित करने का विचार किया, इस तरह वह आने वाले विश्वविद्यालय के हिस्से के रूप में सेंट्रल हिंदू कॉलेज को भी शामिल करने के लिए भारत सरकार को सिफारिश भेजने और अन्य औपचारिकता पूरी करने लगे।
इस तरह 1916 में पार्लियामेंट्री, लेजिसलेटिव दी, बी. एच. यू. एक्ट, 1915 में पारित होने के बाद एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई । जहां पर मदन मोहन मालवीय जी 1939 तक विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने रहे।
सन 1912 में यह एंपीरियल लेजिसलेटिव के सदस्य भी बने जिसे 1919 में सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल में परिवर्तन कर दिया गया। इसलिए मालवीय जी भी सदस्यता 1926 तक बनी रहे। मालवीय जी ने 1928 में साइमन कमीशन का विरोध किया 30 मई 1932 को इन्होंने जवाहरलाल नेहरू और लाला लाजपत राय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर एक घोषणा पत्र प्रकाशित करके उन्होंने देशवासियों से स्वदेशी खरीदें आंदोलन का ध्यान केंद्रित करने का लोगों से आग्रह किया।
Madan Mohan Malaviya biography in Hindi.
1931 में इन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में सेकंड राउंड टेबल में भाग लिया उसके बाद 1932 में दिल्ली में आयोजित कांग्रेस के सत्र की अध्यक्षता भी की हाला की खिलाफत आंदोलन में मालवीय जी ने कांग्रेस को भागीदारी का विरोध किया लेकिन उन्होंने असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
25 अप्रैल 1932 को मालवीय जी और डॉक्टर अंबेडकर के मध्य पूना एक्ट एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। इसमें अलग मतदाताओं के निर्माण के बजाय प्रांतीय विधायकको में सामान्य मतदाओ में निराश वर्गों के लिए आरक्षित सीटें प्रदान की, इसके बाद कांग्रेस के भीतर उनके मतभेद बढ़ जाने के कारण वह कांग्रेस से अलग हो गए ।1939 में उन्होंने माधव श्री हरि के आने के साथ मिलकर कांग्रेस नेशनलिन पार्टी की स्थापना की, उस समय पार्टी मैं इलेक्शन में सेंट्रल लेजिसलेटिव में 12 सीटें जीती थी 1937 में इन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया था।
मालवीय जी ने स्काउट की स्थापना भी मदन मोहन मालवीय न्यायमूर्ति, विवियन बोस, पंडित हृदयनाथ, कुंजरू, गिरजा शंकर वाजपेई, एनी बेसेंट और जार्ज अरुणदले जी के संयुक्त प्रयास से शुरू हुई,1913 में स्काउट में भारतीयों को प्रवेश मिलने लगा ।
1915 में सप्ताहिक पत्रिका को हिंदी दैनिक समाचार में प्रकाशित हुई, मालवीयजी ने 21वे अधिवेशन में विश्वविद्यालय का विचार प्रस्तुत किया । 1915 में विश्वविद्यालय अधिवेशन पास हुआ । 4 फरवरी 1916 को विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। 1919 से 1939 तक काशी विश्व विधालय के कुलपति भी रहे हैं।
मदन मोहन मालवीय जी की विरासत । Madan Mohan malviya ji ki virasat.
1. Madan mohan malaviya के नाम पर कई शहरों में नगरो का नामकरण किया गया है जैसे इलाहाबाद, लखनऊ, दिल्ली, भोपाल और जयपुर आदि ।
2. माललवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जयपुर और मदन मोहन इंजीनियर कॉलेज गोरखपुर में, उनके नाम पर मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी स्थापित की गई। उत्तर प्रदेश में भी नामांकन किया गया ।
3. हरिद्वार में हर की पेडी आरती भी इनके द्वारा ही शुरू की गई, जो आज भी चल रही है।
बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में असेंबली हॉल में मुख्य द्वार पर और पोर्च के बाहर मालवीय जी की, अर्ध प्रतिमा है।
4. इन प्रतिमा का उद्घाटन 25 दिसंबर 1971 को पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती पर किया गया था।
जयपुर में उनके नाम पर मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी स्थित है। अनेक संस्थाओ को भी उनका नाम दिया गया।
5. डाक विभाग ने उनके सम्मान में 1961, 2011 में डाक टिकट जारी किया गया।
6. महा मना का चित्र संसद के सेंट्रल हॉल में लगाया गया।
7. 2008 में दिल्ली में दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर मालवीय स्मृति भवन के नाम से महा मना का राष्ट्रीय स्मारक भी बनाया गया है।
8. 22 जनवरी 2016 में उनके नाम पर महा मना एक्सप्रेस रेलगाड़ी भी चलाई गई।
9. छात्रावास में भी नाम मालवीय भवन रखा गया जिसने आईआईटी खड़कपुर आईआईटी रुड़की या सहारनपुर परिसर बिरला प्रौद्योगिकी विज्ञान संस्था में पलानी तथा हैदराबाद परिता सम्मानित है।
संसद में लगे मदन मोहन मालवीय जी के तेल चित्र का विमोचन 19 दिसंबर 1957 को डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने किया था।
10. 2011 देश के तत्काल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने मदन मोहन मालवीय जी की 150वीं वर्षगांठ पर बी एच यू में उनके नाम पर एक स्कॉलरशिप और शैक्षिक अवार्ड के रूप में ही मालवीय स्टेडीज सेंटर स्थापित करने की घोषणा की।
मदन मोहन मालवीय की मृत्यु कब हुई थी | Madan Mohan Malaviya dealth.
जीवन के अंतिम पड़ाव में वह 12 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश वाराणसी में इस दुनिया से अलविदा हो गए । जब भारत स्वतंत्र नहीं था परंतु भारत की स्वतंत्रता निश्चित हो चुकी थी। आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने मालवीय जी की मृत्यु के समय लिखा था । एक महान आत्मा ने हमें छोड़ दिया है, उनका नाम और कार्य, भविष्य की पीढ़ी को प्रेरित करेगा और संदेश देगा कि उस महान व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। राष्ट्र के लिए की गई सेवा और कार्य को हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते उनकी मृत्यु से उत्पन्न वैक्यूम को हम भर नहीं सकते, क्योंकि वही एक देश के सच्चे देशभक्त और सच्चे नागरिक थे । और भारत को वंदे मातरम कह गए । सब के दिलों में देश प्रेम और एकता का सूत्र जोड़ गए।
अंत में हमें इनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि इंसान को कभी भी हताश नहीं होना चाहिए । सतत प्रयत्न करते रहना चाहिए दीन दुखियों की सहायता करना एवं राष्ट्र हित के लिए जान जोखिम में डालना भी कोई बड़ी बात नहीं है । देश की एकता अखंडता ही जीवन का मुख्य लक्ष्य हो। महामना मालवीय जी ने अपना जीवन काल 25 दिसंबर 1861 से लेकर 12 नवंबर 1946 काशी विश्व हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही । इस युग में आदर्श पुरुष व भारत के पहले और अंतिम महामना के रूप में सम्मानित व्यक्ति थे। madan mohan malviya ji को नमन करते हैं ।
नाम शिवा सिहंल आबूरोड राजस्थान