लोकदेवता बाबा रामदेव जी का परिचय | Lok devata Ramdev ji Biography.

लोकदेवता बाबा रामदेव जी का परिचय | Lok devata Ramdev ji Biography in hindi.


Lok devata Ramdev ji Biography in hindi.


Lok devata Ramdev ji Biography in hindi. भारत के संत और कवियों में बाबा रामदेव जी ( Baba Ramdev ji ) का महत्वपूर्ण स्थान है । भारत के दूसरे संतों और महापुरुषों की भांति ये भी माता के उदर में नौ मास तक रह कर इस धरा धाम पर आये । लेकिन कवियों ने इन्हें हवा में प्रकट होने वाली पौराणिक अवतार की पोटली बना दिया। इनकी आराधना स्थली राजस्थान के वर्तमान जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील के रामदेवरा ग्राम में है। जहां वर्ष भर लाखों रामदेव भक्तों का तांता लगा रहता है। रामदेव जी जब इस धरा धाम पर आये तब भारत में अराजकता की स्थिति बनी हुई थी। 

हिन्दू - मुस्लिम वैमन्य तो चरम सीमा पर था साथ में मनुवादियों के कारण समाज छिन भिन्न हो चुका था । समाज का सबसे बड़ा तबका भूखमरी वह घृणा का शिकार था । दलितों की स्थिति तो पशुओं से भी गई गुजरी थी । भूखमरी के कारण चारों ओर लुटखसोट मची हुई थी ।

ऐसे समय में Baba Ramdev ji का आगमन लोगों में नई उमंग ले कर आया। वे सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों का सबल सहारा बने। ऊंच निच की प्रवृत्ति को मिटाने के लिए अपने प्राणों तक, की प्रवाह नहीं की। एक राजपरिवार में पालन पोषण होने पर भी तत्कालीन व्यवस्था को दरकिनार करते हुए सारे मानव मात्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का संकल्प लिया तथा आजीवन उसे निभाया।

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बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म । Lok devata Ramdev ji Biography in hindi.

रामदेव जी महाराज का जन्म एक रहस्य बना हुआ है । छः सौ सत्तर साल पुरानी फैलाई गई पोपलीला अब लोगों के दिलो-दिमाग पर घर कर चुकी है ।वे आज भी सच्च मुच यह मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण जी, खुद बालक रुप धारण करके पालने में आ कर विराजमान हो गये । लेकिन वास्तविकता तो यह है कि कारण के बिना कार्य नहीं हो सकता। मानव का कारण रज तथा वीर्य है। रामदेव जी भी अन्य मानवों की भांति इस भूलोक पर आये । वास्तविकता तो यह है कि अजमाल जी के दो रानियां थी। 

एक रूणी गांव की थी । उससे विरमदेव जी का जन्म हुआ । अजमाल जी की छोटी रानी मैणांदे के कोई संतान नहीं थी, वह राव जी को अति प्रिय भी थी। संतान न होने से वह सदा दुःखी रहती थी । अजमाल जी उसके दुःख को देख नहीं सकते थे। अपना यह दुःख उन्होंने अपने सेवक सायर जी मेघवाल से सांझा किया।सरल हृदय के सायर जी ने अपने पुत्र को देने की पेशकश की। 

लेकिन कठोर जाति व्यवस्था के कारण वे उसे नाम सहित अपनाने में सक्षम नहीं थे। सो एक सोची-समझी रणनीति के तहत रामदेव जी को पालने में लाया गया तथा अवतारवाद का ढोंग रचा गया । हरजी भाटी ने भी अपनी रचना में कहा है -

  • दासी जाय संभालियो पींगों, सनमुख सूता खूंटी ताण ।
  • भैरूं दैत रो भय घणों, कोई बालक सुवाणगी आण ।।

और भी अनेक प्रमाण है लेकिन शब्द सीमा की बाध्यता के कारण इतना ही कहा जा सकता है कि रामदेव जी महाराज सायर जी जयपाल तथा मगनादे पंवार की संतान थे । लेकिन पालन पोषण अजमाल जी तंवर ने किया । 

इसलिए अजमल नंदन कहने में भी कोई आपत्ती नहीं होनी चाहिए । जैसे कृष्ण जी वासुदेव व देवकी की संतान होते हुए भी नंद तथा यशोदा के पुत्र कहलाये । लेकिन वासुदेव व देवकी को जो स्थान मिला वह सायर जी तथा मगनादे को नहीं मिल सका क्योंकि यहां उनकी मेघवाल जाति आडे आ गई । इसलिए रामदेव जी के असली माता पिता गुमनाम हो गये तथा मेघवाल  से राजपूत हो गये ।


बाबा रामदेव जी का जन्म स्थान । Baba ramdev birthday place -

रामदेव जी के जन्म स्थान के विषय में भी भ्रान्तियां कम नहीं है । विद्वानों ने अपनी बुद्धि अनुसार अलग-अलग स्थानों का वर्णन किया है। मुख्य रूप से छः स्थानों का नाम देखने में आया है । 1. दिल्ली, 2. ग्वालियर, 3. तंवरावाटी, 4. पोकरण, 5. रामदेवरा, 6. उंण्डू काश्मीर लेकिन नैणसी जी की ख्यात " मारवाड़ रा परगना री विगत " तथा मालाणी का संक्षिप्त इतिहास में डा. नंदकिशोर शर्मा ने स्पष्ट रूप से उंण्डू काश्मीर को ही रामदेव जी की जन्मस्थली माना है जो सत्य भी है। हाल ही में बीस करोड़ रुपए की लागत से जन्मभूमि उंण्डू काश्मीर में बना भव्य मंदिर इस का जीता जागता सबूत है।


बाबा रामदेव जी की जन्म तिथि । Baba ramdev jayanti -

रामदेव जी की जन्म तिथि को लेकर भी एक मत नहीं है। बिकानेर के प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीदत्त बारहट ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया, वि .सं. 1462, गोकुलदास जी ने चैत्र मास शुक्ल पक्ष पांचम वि. सं.1407 माना है। डा. सोनाराम विश्नोई ने रामदेव जी के भाव प्रमाण को आधार मानकर चैत्र शुक्ल पक्ष पांचम वि.सं. 1409 माना है। भाव प्रमाण में कहा गया है,

  • संवत चतुरदस साल नवैं,  श्री मुख आप जगायो ।
  • भणै रामदेव चेत सुद पांचवें, अजमल घर मैं आयो ।। 

लेकिन यह तिथि अवतारवाद की पोषक है वास्तव में जब वे पालने में आए उस समय उनकी अवस्था सात माह की थी। यानी चैत्र मास से सात मास पिछे जांऐ तो भाद्र मास वि. सं. 1408 आता है। किसी कवि ने कहा भी है कि 

  • भादुड़ री दूज न, जद चंदों करह प्रकाश ।
  • रामदेव बण आविया, पूरी सब की आस ।

अतः मेरे शोध के अनुसार जन्म तिथि भादव मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया वि.सं. 1408 है ।


बाबा रामदेव जी का परिवार । Baba Ramdev ji family -

अगर जन्म का परिवार माने तो ये जयपाल ऋषि परंपरा में भोजराज जी के पुत्र सायर जी जयपाल के पुत्र थे । माता मगनादे थी । डालीबाई तथा मूंजो जी इनके ताया अड़सी जी के बच्चे थे । अड़सी जी की मृत्यु के बाद उनका पालन पोषण सायर जी ने ही किया । रामदेव जी भी डालीबाई को सगी बहन जैसी ही मानते थे । लेकिन रामदेव जी तो अवतारवाद के द्वारा तंवरो में मिल गये थे। 

सो तंवर वंश ही इनका परिवार माना गया। पोषक परिवार में पिता अजमाल जी, माता मैणादे, बड़े भाई विरमदेव जी तथा चचेरी बहिनें, लाछा तथा सुगनादे थी । लेकिन राजपूत समाज की कुरीति बहु - विवाह की प्रथा से रामदेव जी भी अछूते नहीं रह सके । उनकी बहियों के अनुसार रामदेव जी ने तीन शादियां की । प्रथम शादी नागौर परगने के गांव बासावाणी के दहिया ठाकुर संग्रामसीं की बेटी तारांदे के साथ हुई।

दूसरी शादी तनोट के पाऊ भाटी गोत्र के पर्वतसीं की पुत्री नैतलदे के साथ हुई । तीसरी शादी अमर कोट के सोडा वंश में कुंवरपाल की पुत्री कलुकंवर से हुई । लेकिन लोक साहित्य में नेतलदे ही सोडा दलसिंह की पुत्री के नाम से विख्यात हुई । जो गलत है । नैतलदे से सादो जी, देवराज जी तथा एक पुत्री चांदकंवर जी हुई । कलुकंवर से मेहराज, भीवों, बांको, गजराज, तथा जेतो जी नाम के पांच पुत्र हुए । यानी कुल मिलाकर सात पुत्र तथा एक पुत्री के पिता बने। वर्तमान में देवराज जी के वंशज भोमसिंह जी राव कमेटी के माध्यम से समाधी की व्यवस्था संभाले हुए हैं।

Lok devata Ramdev ji.


डालीबाई तथा रामदेव का संबंध | Dalibai and Baba Ramdev ji -

अक्सर कथा वाचक कहते हैं कि डालीबाई रामदेव जी को वन में घोड़े चराते समय एक पेड़ की डाली पर मिली । इसलिए इसका नाम डालीबाई पड़ा । तथा उत्पत्ति की कथा भी अजीबोगरीब कहते हैं। कि भंवर ऋषि ( भृंगी) की तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र ने अपनी एक अप्सरा को भेजा । अप्सरा के रूप लावण्य को देख कर ऋषि का पारा ( वीर्य ) निकल गया। वह पारा ऋषि ने एक पत्ते पर रख दिया । समय पाकर वह पारा नौ महीने बाद एक कन्या में परिणित हो गया । लेकिन यह सब गप्प के सिवाय कुछ नहीं है। 

वास्तव में अड़सी जी तथा सायर जी दो भाई थे। सायर जी के तो रामदेव जी पैदा हुए । अड़सी जी के डालीबाई तथा मुंजो जी नामक दो संतानें हुई । रामदेव जी तो अवतारवाद के शिकार होकर तंवर राजपूतों में मिल गये। लेकिन अड़सी जी की मृत्यु के बाद सायर जी ने ही डालीबाई का पालन पोषण किया । सगे ताऊ की बेटी होने के कारण ही वह रामदेव जी को अति प्रिय थी । रही बात समाधी की तो डालीबाई ने रामदेव जी के साथ ही समाधी क्यों ली ? इसका कारण यह है कि वह रामदेव जी की परम भक्त थी वह रामदेव जी को अपने से पहले इस संसार से विदा होते हुए नहीं सकती थी । 

इसलिए उसने रामदेव जी से पहले समाधी लेने का विचार किया। दूसरा कारण यह था कि अगर वह बाद में समाधी लेती तो उसे वहां रामदेव जी के नजदीक समाधी कौन लेने देता । आज भी रामदेव जी के वंशजों की समाधी, परिसर में लगती है लेकिन एक भी डालीबाई के परिवार की वहां समाधी नहीं लगी। अतः डालीबाई ने रामदेव जी से एक दिन पहले भाद्र मास शुक्ल पक्ष की दशमी वि.सं. 1442 को समाधी ली।आज डालीबाई की समाधी की व्यवस्था मुंजा जी के वंशज जयपाल संभाले हुए हैं।


बाबा रामदेव जी के गुरु तथा शिक्षा । Baba ramdev ji ke Guru -

रामदेव जी के द्वारा रचित चौबीस प्रमाण तथा अन्य सभी साक्ष्यों से यह विदित होता है । कि रामदेव जी के प्राथमिक गुरु बाली नाथ हि थे । रामदेव जी की संकलित वाणियों से ऐसा लगता है कि उनको किसी विशेष गुरु से विधिवत शिक्षा नहीं मिली थी । बाद  में उनका झुकाव इस्लाम के सूफी संप्रदाय के निजारी पंथ से हो गया था । तथा शम्स तबरेज ( गुसाईं जी ) की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने लगे।


बाबा रामदेव जी के 24 प्रमाण । Baba ramdev ji ke 24 praman in hindi -

Baba ramdev ji ने लिखित में कोई रचना नहीं लिखी । उनकी रचनाएं चौबीस प्रमाण के नाम से जानी जाती है। जो की मौखिक रूप से एक दूसरे तक छः सौ वर्षों तक चलती रही । अनेक शब्द घटे तथा जुड़े भी। 1970 में पहली बार इनका संकलन करके स्वामी गोकुलदास जी महाराज ने प्रकाशन करवाया । जिनका नाम इस प्रकार से है -

1. गुरू प्रमाण, 2. इण्ड प्रमाण, 3. मूलारम्भ प्रमाण, 4. माया प्रमाण, 5. निकलंग प्रमाण, 6. निजार प्रमाण, 7. बुद्ध प्रमाण, 8. ज्ञान प्रमाण, 9. भाव प्रमाण, 10. भक्ति प्रमाण, 11. लछ प्रमाण, 12. साखी प्रमाण, 13. नेम प्रमाण, 14. महापद प्रमाण, 15. निज प्रमाण, 16. अलख प्रमाण, 17. अभे प्रमाण, 18. अगम प्रमाण, 19. मेंहदी प्रमाण, 20. मेघड़ी प्रमाण, 21. अन्न प्रमाण, 22. योग प्रमाण, 23. महिमा प्रमाण व 24. अवतार प्रमाण आदि ।

बाद में तो बाढ़ सी आ गई । सभी संकलनों में प्रमाणों के नामों तथा पाठ में काफी भेद पाया जाता है । जहां तक भाषा की बात है सभी संकलनों में भेद है । अनुमान प्रमाण के अनुसार रामदेव जी की भाषा प्राचीन मारवाड़ी ही रही होगी । जिसका इन संकलनों में अभाव दिखाई  देता है ।


बाबा रामदेव जी के जनकल्याणकारी कार्य । Baba ramdev ji ke Karya -

1. राक्षस के भय से मुक्ति -

लोक धारणा तो यह है कि रामदेव जी ने भैरव के वध के लिए अवतार लिया था । लेकिन ऐसा नहीं है । भैरव एक महेश्वरी बनिया था । अपार धन-संपत्ति होने से वह तत्कालीन व्यवस्था के आंखों का कांटा बन गया था । उसकी सम्पत्ति लूट ली गई तथा उसको यातना दे कर मानव से दानव बना दिया । घृणा की आग में वह उत्पाद मचाने लगा । रामदेव जी ने उसे सही दिशा दे कर सद्मार्ग पर लगा दिया ।


2. पोकरण गांव की पुनर्स्थापना -

भैरव के त्रास के कारण लोग पोकरण से पलायन कर गए थे । रामदेव जी ने भैरव को अपना धर्म प्रचारक बनाकर सिंध की तरफ भेज दिया था । लोगों ने सुख की सांस ली तथा दोबारा वहां बसने लगे ।


3. रामदेवरा ग्राम की स्थापना -

अजमाल जी तथा विरमदेव जी ने, रामदेव जी की सलाह के बिना लाछा बाई की शादी खेड़ में हम्मीर राठौड़ से तय कर दी थी । तथा दहेज में पोकरण भी दे दिया । इससे दोनों भाइयों में अनबन हो गई । विरमदेव ने विरमदेवरा तथा रामदेव जी ने रामदेवरा ग्राम की स्थापना की ।


4. रामसरोवर तालाब का निर्माण -

जनता की पानी की समस्या को हल करने के लिए रामदेव जी ने तालाब का निर्माण करवाया।जिसको आज भक्त गंगा के समान पवित्र मानकर उसमें स्नान करते हैं। तथा अनेक रोगों के निवारण का दावा भी करते हैं।


5. अच्छुतोदार -

रामदेव जी पहले ऐसे संत कवि हैं जिन्होंने जाति पाती पर सबसे कठोर प्रहार किया । तथा कुंडा पंथ की स्थापना करके सभी जातियों को एक पात्र में खाना खिलाने का काम किया। 


रामदेव जी के पर्चे ( चमत्कार) | Baba ramdev ji ke Parche / chamtkar -

लोगों का आम विश्वास है कि रामदेव जी ने अपने जीवन काल में अनेक लोगों के कष्ट खत्म किए तथा बाद में भी अनेकों का दुःख निवारण किया। यहां तक कि मृतकों को भी जीवनदान दिया। लोगों में जो मुख्य पर्चे प्रचलित है वे इस प्रकार से है -

1. माता मेणादे के चुल्हे पर रखे दूध के उफान को रोकना ।

2. सवारथिया खाती को सांप डसने से हुई मृत्यु पर जीवन दान देना ।

3. बोयते बणिये की जहाज समुद्र में तैराना ।

4. नैतलदे की पंगुता दूर करना ।

5. सालियों की मजाक स्वरूप मृत बिल्ली को जीवित करना ।

6.  सुगणादे के पुत्र अमरसिंह ( भाणु ) को जीवनदान ।

7. विरमदेव की गाय के मृत बछड़े को जीवनदान ।

8.  हरजी भाटी को तीन सौ तीन वर्ष बाद दर्शन देना ।

9.  मेवाड़ के दल्ला सेठ के कटे सिर को जोड़ना तथा डाकू को अंधा करना ।

10. धेनदास के पुत्र को जीवनदान ।

11.  गोगुंदा के जरगा जी को पर्चा  ।

12. रूपां तथा रावल मल्लिनाथ को पर्चा ।

13.  गुजरात के जैसल तोरल को पर्चा ।


इस प्रकार से देखें तो रामदेव जी का जीवन चमत्कारों से भरा हुआ पड़ा है।हर कार्य के पिछे कोई ना कोई। कारण होता है। भक्त लोग हर एक कार्य में चमत्कार खोज ही लेते हैं। अगर जीवनदान देते तो अपने सबसे प्रिय भक्त हरजी भाटी को पुष्कर के तालाब में डुबोने से बचा लेते । धैनदास तथा हरिदास जीवन भर अंधे रहे। हां कुछ स्वार्थी लोगों ने चमत्कार के नाम पर लोगों को खूब लुटा है ।


प्राप्त प्रमाणों ( भजनों) के आधार पर मूल्यांकन | Baba Ramdev ji bhajan -

1. गुरु का महत्व - रामदेव जी ने गुरु को बहुत ही महान माना है। उनके अनुसार गुरु बिना भगवत प्राप्ति असंभव है। लेकिन साथ में यह भी शर्त रखी है कि गुरु ज्ञानी होना चाहिए । अगर अज्ञानी होगा तो वह और बंधनों में डाल देगा।

2.  निजार धर्म का गुणगान - रामदेव जी ने निजार धर्म के विषय में कहा है कि केवल इसी में उदार हो सकता है ।

3.  निर्गुण ईश्वर में विश्वास - रामदेव जी कबीर की भांति निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे ।

4.  नारी के प्रति दृष्टिकोण - रामदेव जी नारी के समानता के हिमायती थे। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,

किरोड़ कन्या धर्म परणावै, देवे दान अपार है।

पीरथी री परकमा कीजै, तो ही रानी निज धर्म अधिकार है ।।


5.  अंतिम जनसंदेश - रामदेव जी ने अपने अंतिम संदेश में कहा है कि, हमेशा पाप कर्म से दूर रहना । मरते हुए जीवों पर दया बनाये रखना । तथा भूखे प्रणियों को अन्न का दान देना ।

  • पाप थी कर्म दूर रेवणो, धर्म अपनों निज ध्यान।
  • जीव मरतां पर दया राखियो, भूखां न देणो अन्न दान ।।


बाबा रामदेव जी की समाधी ( मृत्यु ) । Baba ramdev ji ki samadhi / Death -

रामदेव जी की समाधी को लेकर भी एक मत नहीं है । लेकिन फिर भी शोध ग्रन्थों तथा बहि भाटों के रिकॉर्ड के अनुसार रामदेव जी महाराज ने भाद्र मास शुक्ल पक्ष एकादशी वि.सं. 1442 को  जीवित समाधी ले ली। लेकिन यह विचारणीय बात है कि उन्होंने चौंतीस वर्ष की अल्पायु में समाधी क्यों लेनी पड़ी। यह तो शोध का विषय है कि समाधी ले ली या दे दी गई ।


रामदेवरा में मेले की शुरुआत | Ramdevara maila -

रामदेवरा में बाबा के भाद्र मास तथा माघ मास में दो मेले लगते हैं । जहां देश विदेश से लाखों लोग प्रति वर्ष समाधी के दर्शन करने पहुंचते हैं । मुख्य मेला तो भाद्र मास की द्वितीया से एकादशी तक ही लगता है। इस मेले की शुरुआत रामदेव जी के वंशज तो Lok devata baba ramdev ji के द्वारा ही शुरू की मानते हैं। वे कहते कि रामदेव जी ने बहुत समय पहले ही भाद्र मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी को समाधी लेने का विचार बना लिया था। इसलिए उन्होंने द्वितीया से अष्टमी तक का सप्ताहिक संत समागम रखा । 


लेकिन किसी कारण वश वह अष्टमी को समाधी नहीं ले सके । तथा दो दिन बाद दशमी का कार्यक्रम बना। लेकिन दशमी को डालीबाई के समाधी लेने के कारण अगले दिन एकादशी को समाधी ली। अतः उसी उपलक्ष में प्रति वर्ष द्वितीया से एकादशी तक मेरा लगता है । लेकिन वास्तविकता तो यह है कि यह उनके जन्म दिवस से समाधी दिवस तक मनाया जाने वाला उत्सव है । संत - समागम वाली बात का खंडन तो इस बात से हो जाता है कि डालीबाई को सूचना उसी समय मिलती है जब वह बाछड़ों को चरा रही होती है। उसी समय वह बछड़ों को वहां छोड़कर समाधी स्थल पर पहुंचती है । 

तथा रामदेव जी को उल्हाना देते हुए कहती है कि आपने समाधी की बात पहले क्यों नहीं बताई। इतना बड़ा संत समागम हो और डालीबाई को पता न चले यह तो असंभव है। यह तो काल के गाल में गई बात है । मेले का आगाज तो बहुत बाद में हुआ है। भव्य मेला तो गंगा सिंह जी के 1939 में समाधी स्थल बनाने के बाद शुरू हुआ है।पहले लोग जब मिश्रित अन्न चढ़ाते थे तब तक तो मेघवाल समाज का अधिकार था लेकिन जैसे ही नगदी तथा बहुमूल्य सामग्री आने लगी वहां तंवरो ने अधिकार जमा लिया है। मेले की वजह से वहां निश्चित ही विकास हुआ है। तथा हर वर्ग को काम मिला है।


मुख्य बिंदु

1. जन्म -    भाद्र मास शुक्ल पक्ष द्वितीया वि.सं.1408

2. औरस माता पिता - मगनादे पंवार एवं सायर जी जयपाल ।

3. पोषक माता पिता - मैणादे तथा अजमाल जी तंवर ।

4. जन्म स्थान - बाड़मेर जिले के शिव तहसील का उंण्डू काश्मीर गांव ।

5. रचनाएं - चौबीस प्रमाण के नाम से मशहूर ।

6. रामदेव जी को प्रसिद्ध करने वाला मुख्य भक्त - जोधपुर जिले के ओसियां तहसील के बैठवासणिया गांव का हरजी भाटी ।

7. समाधी - भाद्र शुक्ल पक्ष एकादशी वि.सं.1442 में वर्तमान जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील के रामदेवरा ग्राम में ।

8. रामदेव जी के घोड़े का नाम - भजनों में प्राप्त साक्ष्य से रामदेव जी के घोड़े का नाम लीलोड़ो ( लीलो) था ।

उम्मीद करते आज की जानकारी Lok devara Baba ramdev ji biography in hindi. आपको अच्छी लगी होगी । आप बाबा के भक्त हैं तो कमेंट बॉक्स में Jay baba ri जरूर लिखे ।।  पृथ्वीसिंह दिरावरिया मेघवंशी, V.P.O भट्टूकलां हरियाणा ।।


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