भगवान महावीर का जीवन परिचय । Bhagwan Mahaveer biography in hindi.
Bhagwan Mahaveer biography in hindi. भारत भूमि एक ऐसी भूमि है जहां समय - समय पर विभिन्न सभ्यता और संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ। रत्न प्रसूता भारत मां ने वीर सपूतों के साथ-साथ अनेक ऋषि-मुनियों, संत महात्माओं को उत्पन्न किया जिन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से विश्व क्षितिज में भारत मां को गर्व से ऊपर उठाया।
भारतीय संस्कृति की दो मुख्य धाराएं हैं - वैदिक संस्कृति और समण संस्कृति । दोनों ही संस्कृतियों ने अपनी उज्जवल भावधारा से जनमानस को निर्मल किया है । समण संस्कृति एक प्राचीन और वैज्ञानिक संस्कृति है । यह विश्व के प्राचीन धर्म जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करती है।
जैन दर्शन में आत्मा को अजर अमर कहा गया है। उनके अनुसार प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की सामर्थ्य होती है लेकिन उसके लिए सतत पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है । जीव अपने पुरुषार्थ के द्वारा ही कर्मों के बंधन से मुक्त होकर सिद्ध हो सकता है अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। वर्तमान में भी 24वें तीर्थंकर Bhagwan Mahaveer का शासन चल रहा है। तो चलिए Bio4hindi में जानते है - Bhagwan Mahaveer biography in hindi.
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जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जीवन परिचय । Bhagwan Mahavir biography in hindi.
● नाम - महावीर
● माता - त्रिशला
● पिता - सिद्धार्थ
● नगर - क्षत्रियकुंड
● वंश - इक्ष्वाकु
● गोत्र - काश्यप
● चिह्न - सिंह
● वर्ण - सुवर्ण
● शरीर की ऊंचाई - सात हाथ
● कुमार काल - तीस वर्ष
● छद्रस्थ काल - बारह वर्ष, छह मास, पन्द्रह दिन
● कुल दोक्षा पर्याय - बयालीस वर्ष
● आयुष्य - बहत्तर वर्ष।
भगवान महावीर का परिवार । Bhagavan Mahaveer family -
● गणधर 11
● केवलज्ञानो 700
● मन: पर्यवज्ञानी - 500
● अवधिज्ञानी - 1300
● वैक्रिय लब्धिधारी - 700
● चतुर्दश पूर्वी - 300
● चर्चावादी - 400
● साधु - 14000
● साध्वी - 36000
● श्रावक - 1,59,000
● श्राविका - 3,18,000
भगवान महावीर जन्म और नामकरण संस्कार । Bhagwan mahaveer jayanti.
वर्तमान चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद आपके 27 पूर्वभवों का वर्णन प्राप्त होता है। आपका 27वां भव महावीर के रूप में हुआ। भगवान महावीर का जन्म चौथे आरे के अंत में हुआ। वह इस अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर थे।
महावीर का जीव ऋषभदत्त की पत्नी देवानंदा के गर्भ में अवतरित हुआ तथा 83 वीं रात्रि को हरिणगमेषी देव द्वारा उसके गर्भ का संहरण करके माता त्रिशला की कुक्षी में स्थानांतरित कर दिया गया। बालक के गर्भ में आते ही रानी त्रिशला ने 14 शुभ स्वप्न देखें। स्वप्न पाठकों ने इन स्वप्नों को अत्यंत शुभ मंगलमय बताया। अत्यंत हर्षोल्लासमय वातावरण में बालक का जन्म हुआ।
Bhagwan Mahaveer का जन्म विदेशी जनपद के क्षत्रिय कुंड नामक ग्राम में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, विक्रम पूर्व 542 और ईसा पूर्व 599 हुआ। आपके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम रानी त्रिशला था। आपकी बड़े भाई का नाम नंदीवर्धन और बहन का नाम सुदर्शना था। आपके नाना महाराज केक और मामा का नाम चेटक था । आपका गोत्र काश्यप था। आपका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ।
आपका जन्म भी अन्य शिशु के समान एक छोटे से सामान्य बालक के रूप में हुआ। जिस समय बालक का जन्म हुआ। वह युग दास प्रथा का युग था। उनकी जन्म की खुशी का समाचार देने वाली दासी को राजा ने दासता से मुक्त कर दिया और यही नहीं बंदीगृह से सभी बंदियों को भी मुक्त कर दिया गया। बालक ने जन्म के साथ ही मानो दास प्रथा के उन्मूलन का सूत्रपात किया। बालक के गर्भ में आते ही राज्य में धन-धान्य, सोना चांदी, मुक्तामणि आदि की खूब वृद्धि हुई इसीलिए उनका नाम वर्धमान रखा गया।
Bhagwan Mahaveer की बाल्यावस्था
जन्म से ही तीन ज्ञान के धनी बालक महावीर का आभामंडल अत्यंत पवित्र था। उस समय समाज में अनेक बुराइयों ने सर उठा रखा था। जिन्हें दो करने में आपने अत्यंत परिश्रम किया। आपको वर्धमान, सन्मति, महावीर, ज्ञात पुत्र आदि कई नामों से संबोधित किया जाता है।
आप बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे। जब आपको विद्या अध्ययन हेतु भेजा गया तो इंद्रदेव ने सोचा जो स्वयं तीन ज्ञान के धनी हैं उन्हें कौन पढ़ा सकता है और वह वेश बदलकर कलाचार्य के पास आए और कुछ प्रश्न पूछे जिनका उत्तर गुरु के पास भी नहीं था लेकिन वर्धमान ने उन प्रश्नों का उत्तर बड़ी सहजता से दे दिया। यह देख कर कलाचार्य ने उन्हें पुनः राज महल में भेज दिया। बाल कीड़ा के समय आपकी वीरता, कुशलता और बुद्धिमता का परिचय सहज ही मिलता है।
महावीर स्वामी की युवावस्था एवं विवाह ।
राजकुमार वर्धमान के युवा होते ही राजा सिद्धार्थ उनके विवाह की तैयारियां करनी लगे। वर्धमान का मन विवाह करने का नहीं था लेकिन माता पिता की आज्ञा को मानते हुए वे विवाह के लिए राजी हो गए। उनका विवाह बसंतपुर के राजा समरवीर की पुत्री यशोदा ( श्वेतांबर मान्यता) से कर दिया गया। आपकी पुत्री का नाम प्रियदर्शना और जमाई का नाम जमाली था।
भगवान महावीर का वैराग्य । Bhagwan Mahaveer ka vairagya -
महावीर आरंभ से ही विरक्त थे। माता पिता के स्नेह को देखते हुए उन्होंने गर्भ में ही प्रतिज्ञा कर ली थी कि वे माता पिता के जीवित रहते दीक्षा नहीं लेंगे। जब आप 28 वर्ष के हुए तब माता - पिता का देहांत हो गया। आप दीक्षा लेना चाहते थे। आपने बड़े भाई नंदीवर्धन से दीक्षा की अनुमति मांगी लेकिन नंदीवर्धन ने कहा कि अभी तो मैं माता-पिता की मृत्यु के शोक से उभरा भी नहीं हूं और तुम दीक्षा की बात कह रहे हो यह संभव नहीं है। भाई की आज्ञा मानकर आपने दो वर्ष गृहस्थावास में बिताए लेकिन इन दो वर्षो में आपने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत, रात्रिभोजन का त्याग, सचित्त का त्याग कर लिया और बेले बेले का तप करने लगे। आप धरती पर सोते। छह काय के जीवों की विराधना नहीं करते। आदि अनेक प्रकार से तप:चर्या करते।
दो साल व्यतीत होने पर तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण कर ली। मृगसर कृष्णा दशमी के दिन विजय मुहुर्त और चतुर्थ प्रहर में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपने पंचमुष्टि लुंचन किया तथा सिद्धों की साक्षी से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के समय आपके पास सिर्फ एक देवदुष्य वस्त्र था। इन्द्र भगवान ने आपके केशो को क्षीरसागर में प्रवाहित कर दिया। इस प्रकार राज कुमार वर्धमान मुनि बन गए।
Bhagwan Mahaveer का साधना काल और उपसर्ग ।
क्षमा और सहनशीलता के पर्याय भगवान महावीर का साढ़े 12 वर्ष, एक पक्ष का साधना काल जिजीविषा से परिपूर्ण था। दीक्षा के साथ ही ग्वालों के उपसर्ग से शुरू हुए कष्ट केवल्य प्राप्ति पर्यंत चले। स्वशरीरासक्ति को छोड़ आत्म चिंतन में लीन महावीर पर्णकुटी की सुरक्षा का चिंतन भला कैसे करते ? ऐसे में तापसों का विरोध एवं कुलपति द्वारा मीठी उलाहना से भगवान ने स्वयं को और अधिक नियमों में आबद्ध कर लिया। शूलपाणी यक्ष मंदिर में संगम द्वारा दिए गए मारणांतिक कष्टों में भी वे अडोल रहे।
इतना ही नहीं सर्पराज चंड कौशिक की क्रोध ज्वाला को भगवान ने क्षमा रुपी अमृत जल से शांत कर दिया। एक ओर अनार्य देशों के कष्ट कर्मनिर्जरा में सहायक बने वहीं दूसरी ओर भगवान ने अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, संवर, निर्जरा आदि को अपना धर्म परिवार बताकर धर्म चक्रवर्ती की परिभाषा के संबंध में सामुद्रिक के संदेह को दूर किया।
आपके 10 महा स्वप्नों में जैन धर्म का भविष्य निहित था। मात्र एक मुहूर्त की नींद आपकी निद्राविजय को उजागर करती है वही नंद और बहुला के घर में बासी भात लेकर तथा साथ ही साथ बैर का ओदन और कुल्माष आदि के प्रयोग से स्वाद पर विजय प्राप्त की। संपूर्ण साधना काल में मात्र 350 दिन भोजन करना क्षुधा विजय का अनुपमेय में उदाहरण है।
नौका विहार और नौका पार आपके साधना काल की विलक्षण घटनाएं है। करुणा के महासागर महावीर अच्छंदक के उपकार के लिए स्वयं गांव से बाहर चले गए। चंदनबाला का उद्धार नारी जाति पर महनीय उपकार रहा। आपकी ध्यान साधना तपस्या का प्रभाव फांसी के फंदे को भी निरुपाय कर गया। इस प्रकार घोर कष्टों को समभाव से सहन करते हुए केवल्यत्व को प्राप्त किया।
Bhagwan Mahaveer का सर्वज्ञता काल ( केवल ज्ञान )
अनेकानेक उपसर्गों एवं परीषहों और कष्टों को सहन करते हुए भगवान महावीर ने ध्यान और तपस्या के द्वारा अपनी आत्मा को भावित किया। इस प्रकार विचरण करते हुए आप ऋजुबालिका नदी के किनारे श्यामा गाथा पति के खेत में साल वृक्ष के की नीचे ध्यान में आरुढ़ हो गए।
बेले की तपस्या, गोदोहिका आसन, वैशाख शुक्ला दशमी के दिन के अंतिम प्रहर में आपने शुभ भावों में क्षपक श्रेणी का आरोहण किया। आप और आपने सभी जाति कर्मों का क्षय कर केवल ज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त किया और सर्वज्ञता को प्राप्त किया। अब सभी मूर्त अमूर्त पदार्थों को आप देखने लगे। सर्वज्ञता काल में आपके द्वारा अनेक दीक्षाएं हुई। जिसमें गणधरों से लेकर चांडाल की दीक्षा भी हुई । इस प्रकार आपने धर्म-कर्म और जाति को महत्व नहीं दिया।
Bhagwan Mahaveer swami के उपदेश ।
महावीर अहिंसा के पुजारी, उत्कृष्ट साधक और महान क्रान्तिकारी थे। आपने जातिवाद को दूर करने का प्रयास किया, दास प्रथा को हिंसात्मक माना और पशु बलि का विरोध किया। धर्म को जनसाधारण तक लाने में आपने विशेष भूमिका निभाई।
आपने विभिन्न क्षेत्रों में चातुर्मास करते हुए धर्म का प्रचार प्रसार किया और बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप 29 वर्ष 6 महीने 15 दिन तक पूरे भूमंडल परिभ्रमण करते हुए लाखों लोगों को मार्गदर्शन दिया ।
भगवान महावीर की शिक्षाएं । Jain lord bhagwan Mahaveer teaching.
आपने पंचयाम धर्म का प्रतिपादन करते हुए पांच महाव्रतों की स्थापना की।
- अहिंसा - आपने कहा सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। इसलिए छोटे से छोटे जीव को भी अभयदान देना चाहिए। आपका नारा था जिओ और जीने दो ।
- सत्य - हमेशा सच बोलना चाहिए । झूठ हमेशा हारता है।
- अस्तेय - चौरी नहीं करना। किसी की भी वस्तु को बिना पूछे लेना चोरी है।
- अपरिग्रह - आवश्यकता एवं मर्यादा से अधिक संग्रह करना परिग्रह कहलाता है।
- ब्रह्मचर्य - स्व पति /पत्नी संतोष । भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य को महान तप बताया।
स्याद्वाद, आत्मवाद, समतावाद, आत्मकर्तृत्ववाद आदि ए आपके मुख्य सिद्धांत है।
भगवान महावीर के गण और गणधर -
Bhagwan Mahaveer के शासन काल में सर्व प्रथम गौतम, इन्द्रभूति आदि 11 गणधर दीक्षित हुए। वे सब ब्राह्मण जाति के थे । और प्रभु से अपनी शंकाओं का समाधान पाकर इन्होंने दीक्षा ग्रहण की।
भगवान महावीर का निर्वाण । Bhagwan mahaveer ka nirvan -
भगवान महावीर की मुक्ति का समय निकट आ रहा था।यह जानते हुए कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भगवान ने अंतिम अनशन किया तथा कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन अर्ध रात्रि में आप इस नश्वर शरीर को त्याग कर सदा सदा के लिए मोक्ष पधारे। सिद्ध, मुक्त हो गए।
Bhagwan Mahaveer की आयु एवं चातुर्मास
भगवान् महावीर की कुल आयु बहत्तर वर्ष थी। इसमें उन्होंने तीस वर्ष गृहवास में तथा बारह वर्ष तेरह पक्ष छद्मस्थावस्था में तथा लगभग तीस वर्ष केवली पर्याय मे बिताये।
● जन्म - ईसा पूर्व 599
● दीक्षा - ईसा पूर्व 569
● केवल ज्ञान - ईसा पूर्व 557
● निर्वाण - ईसा पूर्व 526
भगवान् ने छद्मस्थ व केवली पर्याय में कुल 42 चातुमांस किये। भगवान ने सर्वाधिक चौदह चातुर्मास राजगृह व उसके उपनगर नालंदा में किये।। मीना दुगड़ कोलकाता ।।