तुलसीदास का जीवन परिचय व प्रेमकथा । Tulsidas biography in hindi.
Tulsidas biography in hindi. हमारे देश में अनेकों ऐसे कवि हुए जिन्होंने ने अपनी कलम से न केवल भारतवर्ष बल्कि पूरे संसार को आलोकित किया । इन महान विभूतियों ने बचपन में बहुत कष्ट उठाये । युवा अवस्था में प्रेम में अंधे थे जब वे मोह प्रेम से दूर हटे या यूं कहें कि सांसारिक वासनाओ से मुक्त हुए तो साक्षात ईश दर्शन हो गए ।
जी हां इन महान कवियों में कालिदास के अलावा तुलसीदास भी हुए । जिन्होंने पत्नी की फटकार सुनकर अपनी गृहस्थी त्याग दी । और वनखड़ो में जाकर ईश की भक्ति में लीन हो गए इतने कि कई ग्रन्थों की रचना कर डाली । तो चलिए Boi4hindi में जानते है तुलसीदास का जीवन परिचय । Tulsidas biography in hindi -
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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय । Tulsidas biography in hindi.
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1554 में सावन शुक्ला सप्तमी को, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर में हुआ था। हमें बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि उन महा कवि के जन्म का विवाद ग्रस्त विवरण है, अभी तक सही प्रशिक्षण के बाद भी, सभी इसी निष्कर्ष पर पहुंच पाए हैं कि हम मूल गोसाईं चरित के तथ्यों के आधार पर डॉक्टर पितांबर दत्त वल्लभ वालों और श्याम सुंदर दास तथा किसी जनश्रुति वर्ग के आधार पर मान सम्यक तिथि 1554 का ही समर्थन करते हैं गोसाई चरित्र की निम्न पंक्ति में भी यही उल्लेख हमें देखने को मिलता है जैसे:-
पन्द्रह सौ चौवन विषै, कालंदी के तीर ।
सावन शुक्ला सप्तमी तुलसी धरउ शरीर ।।
माता पिता - इनकी माता का नाम हुलसी था। और पिता का नाम आत्माराम था । कुछ विद्वानो ने इनके पिता का नाम श्रीधर बताया ।
तुलसीदास का प्रारंभिक जीवन । Tulsidas early age life -
Tulsidas के जन्म के लोगों के अनेक विचार - इस प्रकार जब इनका जन्म हुआ तब यह रोए नहीं, और इनके मुख से पहले राम ही निकला, इसीलिए इनका नाम राम बोला रखा गया। इनके जन्म से ही 32 दांत थे। इसीलिए लोगों ने इन्हें अपशकुनी समझने लगे, और इन्हें घर से निकालने की सोचने लगे।
इनके जन्म के दूसरे दिन ही इनकी माता का देहांत हो गया था । तब तुलसीदास जी ने संयास ले लिया था। और अपनी दासी मुनिया को कुछ रुपए पैसे देकर उनकी सांस, चुनिया देवी के पास तुलसीदास जी को हरिपुर भेज दिया था। वहां उनका बहुत अच्छा लालन-पालन हुआ, फिर चुनिया देवी का 5 साल बाद अंत काल हो गया। उसके बाद तुलसीदास जी अनाथ हो गए थे । और वह इधर उधर भटकने लगे थे।
तुलसीदास जी के गुरु | tulsidas ke guru -
तुलसीदास जी की मुलाकात नरहरी दास जी से हुई और नरहरी दास जी तुलसीदास जी को अपने साथ वृंदावन आश्रम में ले आए थे। फिर रामानंद जी मठवासी के आदेश पर नरहरी दास जी ने इन्हें अपना लिया । और रामबोला को अपने आश्रम में शरण दी।
वहां आश्रम में 1961 में तुलसीदास जी का जनेऊ संस्कार कराया गया । तब से इनका नाम राम बोला की जगह तुलसीदास जी रखा गया। तुलसीदास जी के जन्म संस्कार के समय तुलसीदास जी ने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जिसे देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए थे। तुलसीदास जी बचपन से ही तेज बुद्धि वाले थे। एक बार जो पढ़ लेते वह तुरंत याद हो जाता था। नरहरी दास जी ने तुलसीदास जी को राम कथा सुनाई, लेकिन इन्हें समझ नहीं आई और यह वहां से काशी घाट आ गए। वहां से फिर गंगा घाट पर ठहरे ।
वहां उनकी मुलाकात शेष सनातन जी से हुई। वहां उन्होंने वेद शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया, तुलसीदास जी ने संस्कृत व्याख्या सहित 4 वेदों का ज्ञान लिया और 6 वेदांग का अध्ययन किया । इन्होंने शास्त्रों वेदों के प्रसिद्ध गुरु शेष सनातन जिसे हिंदी साहित्य और दर्शनशास्त्र का भी अध्ययन किया इन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई 16 से 17 वर्ष तक रखी ।, 15 वर्ष तक तुलसीदास जी वहाँ रहे उसके बाद यह राजापुर लौट आए।
तुलसीदास जी व रत्नावली की प्रेम कहानी । Tulsidas love story in hindi -
Tulsidas का बचपन बहुत कठिन अवस्था में बीता लेकिन उनकी तेजस्वी बुद्धि ने उन सब को भुला दिया था। परिवार के सब लोग मर चुके थे । गांव वालों ने उनका बहुत आदर किया । और तुलसीदास जी ने उन सबका श्राद्ध किया और वह वहीं रहने लगे । और वह लोगों को राम कथा सुनाने लगे, एक दिन पड़ोसी के गांव से बंधु, दीनानाथ पाठक ब्राह्मण जी उनकी कथा सुनने वहां आए और वह बहुत प्रभावित हुए । फिर उन्होंने अपनी बेटी रत्नावली के विवाह का तुलसीदास जी के आगे प्रस्ताव रखा। तुलसीदास जी की सहमति से रत्नावली के साथ विवाह तय हुआ।
Tulsidas का विवाह 29 वर्ष की आयु में इनका व्यवस्था राजापुर के निकट यमुना नदी के किनारे 1583 में रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ। लेकिन इनका गोला नहीं हुआ था। इनका जीवन चक्र कुछ इस प्रकार चला तुलसीदास जी अपनी पत्नी के मोह - प्रेम में इस प्रकार अंधे हुए थे कि उसे एक पलभर भी छोड़ना नहीं चाहते थे।
कहा जाता है कि शादी के बाद पहले सावन को रत्नावली मायके चली गई । भोले भाले युवक तुलसी के साथ यह 30 दिन को गुजरना काफी मुश्किल था । क्योंकि वे रत्नावली से बेपनाह मुहब्बत करते थे । वे उनके प्रेम में इस कदर अंधे थे कि उन्हें रत्नावली के शिवाय कुछ नजर नही आता था । मगर कुछ सामाजिक रीति रिवाजों के अनुसार चलना ही पड़ता है ।
आखिर कार सावन की बड़ी तीज के दिन उन्हें अपने ससुराल अपनी प्रिय से मिलने के लिए जाना ही पड़ा । मगर उस दिन वर्षा के कारण अनेको परेशानियों से सामना करना पड़ा । आखिर में उनका प्रेम उनको खीचकर ले गया अपनी प्रिय रत्नावली के पास ... ।
जब तुलसीदास जी को पत्नी दिखाई नहीं दी तो वे रातों-रात भयंकर आंधी तूफान और बारिश में यमुना नदी तेज उफान से चल रही थी । फिर भी वे वहां पैदल यमुना नदी में एक लकड़ी के सहारे चलते रत्नावली के घर पहुंच गए। रत्नावली के कक्ष दूसरी मंजिल पर था । और उनके निचे की तरफ एक बड़ा पेड़ था पेड़ पर एक रस्सी जैसी कुछ लटकी हुई थी । उन्हें आकाशीय बिजली के उजाले से उन्हें रस्सी नजर आई उन्होंने उसी के सहारे वे रत्नावली के कक्ष में पहुंच गए।
रत्नावली ने पूछा तुम इस वक़्त कैसे आ गए । अब तो काफी रात्रिकाल हो चुका है । तो उन्होंने हस्ते हुए कहा प्रिय तेरे बिना कैसे रह सकता हूँ । नदी से नाव पर बैठकर और यहाँ तो तुमने रस्सी लटका रखी थी । रत्नावली ने नीचे तो काला सर्प लटक रहा था जो क्रोध में आग बबूला हो रहा था ।
देखकर वह पल भर के लिए सन रह गई और बोली तुलसी तुम प्रेम में इतने अंधे थे कि उन्हें तैरती लाश भी लकड़ी दिखाई दे रही थी । और पेड़ पर लटका सांप भी रस्सी दिखाई दे रहा था। यह सब रत्नावली ( Ratnavali ) को अच्छा नहीं लगा, तब उन्होंने एक ही बात तुलसीदासजी से कहीं की !! मेरी देह से तुम्हें इतना मोह, अगर इतनी भक्ति तुमने भगवान की भक्ति में लगा दी होती तो तुम्हें इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता । और भगवान के दर्शन हो जाते हैं एक दोहे के रूप में समझाया है,
अस्थि धर्म नए देह यह तासु ऐसी प्रीत
नेकू जो होती राम से तो, कहे भाव मीत ।।
तुलसीदास जी के एक पुत्र था जिसका नाम तारक था। गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी पत्नी की इस बात से बड़े प्रभावित हुए, पत्नी की इस फटकार से उन्हें बड़ा आधात पहुचा । उनका प्रेम तार तार हो चुका था और वे उसी क्षण घर संसार छोड़कर सन्यास ले लिया। कहा जाता है कि उस रात को वे अपने ससुराल में रुके जरूर थे मगर उनके मन में प्रियप्रेम नहीं था । अलसुबह वनखड़ो के लिए निकल पड़े थे ।
तुलसीदास को गोस्वामी क्यो कहा जाता है ?
Tulsidas लोगों को राम कथा सुनाने लगे। राम के दर्शन में इधर-उधर भटकने लगे, कभी चित्रकूट पर जाते, तो कभी राम घाट पर राम भक्ति में लीन हुए । उठते बैठते हर समय राम नाम काहि स्मरण करने लगे।
इस घटना के बाद उन्हें गोस्वामी कहा जाने लगा । गोस्वामी का अर्थ सभी इंद्रियों को जीतने वाला महामानव को कहा जाता है । सन्यासी जीवन धारण करने बाद Goswami tulsidas सांसारिक मोह माया एवं भोग विलास भी ऊपर उठ चुके थे । सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुके थे । वे जिनेंद्रिय कहलाये । इनका लगाव, उनका प्रेम केवल ईश के प्रति था इसलिए उन्हें गोस्वामी तुलसीदास कहा जाने लगा ।
तुलसीदास जी की तीर्थ यात्राएं । Tulsidas journey -
तुलसीदास जी ने संपूर्ण भारत में तीर्थ यात्रा की, तुलसीदास जी बद्रीनाथ द्वारका, पुरी, हिमालय और रामेश्वरम में लोगों के बीच जाते वहां लोगों में रामकथा का गुणगान करते थे। अपना ज्यादा समय तुलसीदास जी चित्रकूट काशी अयोध्या में ही बिताया परंतु आखिरी समय में वे काशी में ही रहे । 1628 में वे फिर काशी गए वहां उन्हें लिखने की प्रेरणा प्रह्लाद घाट की पीढ़ी से मिली।
तुलसीदास द्वारा रामचरित मानस की रचना । Ramayan writing by Tulsidas
तब उन्होंने, चित्रकूट के 80 घाट पर उन्होंने 1508 में श्री रामचरितमानस की रचना आरंभ किया ।उस दिन भगवान रामचंद्र जी के जन्म नक्षत्र जो समय राम भगवान का था । वही समय उन्होंने रामचरितमानस की रचना में तय किया और लिखना शुरू किया । tulsidas का कहना है कि रामचरित मानस महा ग्रंथ लिखने में उनको हनुमान जी का मार्ग दर्शन मिला । तुलसीदास जी ने अपनी चौपाई में इस बात का उल्लेख किया है हनुमान जी की कई बार मुलाकात तुलसीदास जी से हुई से ही । रामचरितमानस की रचना में उन्हें 2 साल 7 माह 27 दिन का समय लगा । रामचरितमानस के दोहे और रचना लिखने में तुलसीदास जी के बारे में हम जितना लिखे उतना कम है। हम जन्मे भी नहीं थे, तब इनका जन्म हुआ था । इनके बारे में कहीं से कहीं सुनी बातें ही हम कह सकते हैं । इनकी जयंती पर हम पुष्प समर्पित करने याद कर सकते हैं।
तुलसीदास जी ने वाराणसीय में हनुमान जी के लिए संकट मोचन मंदिर भी स्थापित किया तुलसीदास जी का कहना है की हनुमान जी के आशीर्वाद से ही उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए । तुलसीदास जी ने हनुमान जी के अलावा पार्वती जी और शिव जी के दर्शन का भी वर्णन किया है।
तुलसीदास को श्री राम दर्शन | tulsidas ko shri ram ke darshan. -
Tulsidas को हनुमान जी का आशीष व राम जी की अटूट भक्ति के कारण चित्रकूट के अस्सी घाट पर राम जी के दर्शन हुए । एक बार तुलसीदास जी कदमबरी पेड़ की परिक्रमा करने निकले तो उन्होंने एक घोड़े की पीठ पर दो राजकुमारों को बैठा देखा लेकिन उस समय वह उनको पहचान नहीं सके, थोड़े समय पश्चात उन्हें पता चला कि वह हनुमान जी की पीठ थी । वो राम और लक्ष्मण थे। तब तुलसीदास जी बहुत दुखी हुए इन सभी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने अपनी रचना गीतावली में किया है।
जब अगली सुबह तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे तब श्री राम जी और लक्ष्मण जी ने उन्हें फिर दर्शन दिए और श्री राम जी ने तुलसीदास जी से कहा कि तिलक करो लेकिन तुलसीदास जी उनके दिव्य दर्शन से अभिभूत हो गए थे और तिलक करना भूल गए थे। भगवान श्री रामचंद्र जी ने चंदन ले अपने हाथों से तुलसीदास जी के माथे पे तिलक लगाया। तुलसीदास जी के जीवन का यह एक सुखद पल था । इस घटना के वर्णन के लिए यह दोहा बहुत प्रसिद्ध है।
चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर ।
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर ।।
तुलसीदास की रचनाएं । Tulsidas ki rachanaen -
चित्रकूट के इस चमत्कार के बारे में विनय, पत्रिका में बताया गया है और वहां भी श्री राम जी का धन्यवाद किया गया है । और विनय पत्रिका की पूर्ण होने के बाद विनय पत्रिका में श्री रामचंद्र जी ने अपने हस्ताक्षर किये। तुलसीदास जी की रचनाएं -
तुलसीदास जी ने अपनी समस्त रचना 2 भाषाओं में लिखिए पहली अवधी और दूसरी ब्रजभाषा में,
1. अवधी भाषा में - रामचरितमानस, रामलला नहथू, बरबाई रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न ।
2. बृज भाषा में - गीतावली, कृष्ण गीतावली, साहित्य रतन, दोहावली, वैराग्य संदीपनी, विनय पत्रिका।
इनके साथ ये चार रखना भी बहुत मशहूर है हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टकम, हनुमान बहुलक और तुलसी सत्साई। और भी कई रचनाएं लिखी है जैसे झूलना, रोला रामायण, करखा रामायण, कुंडलियां रामायण, बरवै रामायण, छप्पई रामायण, कली धर्माधर्म निरूपण, छंदावली, दोहावली कवितावली, साररूपेणा ब्राह्मणाए।
- रामचरितमानस महाकाव्य, एक चौपाई और दोहा छंद भी है ।
- कवितावली एक मुक्तक काव्य है जो ब्रज भाषा में लिखा गया है।
- दोहावली भी मुक्तक काव्य है जो ब्रज भाषा में लिखा है
- गीतावली एक गीतिकाव्य है जो ब्रज भाषा में लिखा है।
- रामलला नहथू, लोकगीत शैली पर आधारित है।
- रामाज्ञा प्रश्न ज्योति विषयक आधारित ग्रंथ है।
- जानकी मंगल और पार्वती मंगल यह दोनों ही प्रबंध काव्य है।
- बरवै रामायण मुक्तक काव्य है।
- कृष्ण गीतावली गीतिकाव्य है।
इनकी रचनाओं में महान कवि तुलसीदास जी की प्रतिभा, से ना केवल समाज और भारत ही नहीं ,बल्कि सारा संसार आलोकित हो रहा है । तुलसीदास जी भक्ति काल में राम मार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। काव्यगत विशेषताओं में तुलसीदास जी ने संबंध में बाद में भक्ति भाव की चेष्टा आदर्शों का भाषावाद का निर्गुण और सगुण प्रसंग व काव्य का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। तुलसीदास जी के हिंदी, काव्यों में अलंकार, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, का समन्वय दिखाई देता है।
तुलसीदास जी की मृत्यु | Tulsidas death -
कहने सुनने में आता है कि तुलसीदास जी की मृत्यु किसी बीमारी के चलते हुए हुई थी इनके जीवन के अंतिम क्षण अस्सी घाट पर ही गुजरे थे यह में सुनने में आता है कि उन्होंने अपनी अंतिम रचना अंतिम समय में विनय पत्रिका लिखी थी और इस पर श्री रामचंद्र जी के भी हस्ताक्षर हैं जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी पीड़ा को कम करने के लिए तुलसीदास जी ने काशी के गंगा घाट पर हनुमान जी की स्तुति की जो हनुमान बहुलक नाम से प्रसिद्ध है।
विनय पत्रिका पूरी करने के बाद 1623 ईसवी ( संवत 1680 ) में, गंगा घाट पर तुलसी छोड़ियो शरीर ।तुलसीदास जी का गमन हो गया था । तुलसीदास जी ने अपने जीवन की यात्रा 112 वर्ष तक की तय की थी।
लेखक - शिवा सिहंल आबूरोड राजस्थान