जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय कक्षा 12 | Jaishankar prasad biography in hindi.
Jaishankar prasad biography in hindi. हिंदी साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, छायावाद के मुख्य स्तम्भ जयशंकर प्रसाद का नाम हिंदी साहित्य जगत के लिए वास्तव में किसी प्रसाद से कम नहीं है। Jaishankar prasad के कहानी, नाटक, कविता आदि अनेक विधाओं पर साहित्य सृजन कर साहित्य जगत को अनमोल योगदान दिया। गद्य और पद्य दोनों विधाओं पर आपका विशेष अधिकार था।
कामायनी आपकी कालजयी रचना है जो पाठक के दिलों दिमाग पर इस कदर छा जाती है कि उसके किरदार जहन से निकलते ही नहीं। ऐसे विख्यात साहित्यकार जिन्होंने अनेक संघर्षों को पार करते हुए अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को एक नई पहचान दी ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी श्री जयशंकर प्रसाद की जीवनी प्रस्तुत कर रहे है। तो चलिए Boi4hindi में जानते है - Jaishankar prasad biography in hindi. Class 12th -
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जय शंकर प्रसाद का जन्म और परिचय कक्षा 12 | Jaishankar prasad biography in hindi
जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल 10, संवत् 1946 वि० ( 30 जनवरी 1889 ई० दिन-गुरुवार ) को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहु' के नाम से विख्यात थे।
आपके पिता श्री बाबू देवी प्रसाद एक दयालु और कृपालु इंसान थे, तथा गरीबों और दीन दुखियों को दान देने में सदैव तत्पर रहते थे। आपकी माता जी का नाम मुन्नी बाई था। जब जयशंकर प्रसाद मात्र 11 वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था।
15 वर्ष की आयु में आपकी माताजी भी आपको छोड़कर हमेशा के लिए इस दुनिया से से विदा हो गई। नियति को इतने में भी संतोष नहीं हुआ और 17 वर्ष की आयु में आपके बड़े भाई शंभू रत्न का निधन हो गया और आप पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा ।
अब घर की सारी जिम्मेदारी आपके ऊपर आ गई। घर में भाभी तथा उनके बच्चे भी थे। फिर भी जयशंकर प्रसाद ने बड़े साहस से इन सभी मुसीबतों का सामना किया और सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों का वहन किया।
जयशंकर प्रसाद को तीन - तीन विवाह करने पड़े। पहला विवाह विध्वंसनीदेवी के साथ 1908 में हुआ था।किंतु इनकी पहली पत्नी को क्षय रोग हो गया और उनकी मृत्यु हो गई। और फिर उनका दूसरा विवाह 1917 में सरस्वती देवी से हुआ किंतु वह भी इसी रोग के कारण ही जल्द ही चल बसी। अब Jaishankar prasad की इच्छा विवाह करने की नहीं थी किंतु उन्हें अपनी भाभी के लिए तीसरा विवाह कमला देवी के साथ करना पड़ा और उनसे उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम रखा गया रतन शंकर प्रसाद । इनके बाद उनकी गृहस्थी सफल रही ।
जयशंकर प्रसाद की भाषाशैली । Jaishankar prasad ki bhasha shaili -
जयशंकर प्रसाद ने अपने लेखन की शुरुआत ब्रजभाषा मे की लेकिन बाद में ये खड़ी बोली में लिखने लगे। जयशंकर प्रसाद की भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा गम्भीर है। इनकी भाषा में चुलबुलाहट और मुहावरों की कलाबाजियाँ बिल्कुल नहीं हैं। इनका लेखन वाकई में गम्भीर था एवं उनका शब्द चयन भी अनूठा संगम था ।
जयशंकर प्रसाद की भाषाशैली छायावाद की ओर अग्रसर है । उनकी सुंदर शब्दों के साथ साथ आकर्षक भाषा रही थी । उनकी रचनाओं के शब्द भावों की अभिव्यंजना करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। मधुपता, कोमलता और संगीतमयता जयशंकर प्रसाद की भाषाशैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इनके साथ ही साथ Jaishankar prasad की भाषा में चित्रात्मकता, प्रवाहशीलता और पात्रानुकूलता जैसे गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रसाद गुण से युक्त है।
जय शंकर प्रसाद की शिक्षा और साहित्य | jaishankar prasad education.
घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 'कलाधर' के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर 'रसमय सिद्ध' को दिखाया था। जयशंकर प्रसाद की प्रारंभिक पढ़ाई वाराणसी में ही हुई, उन्होंने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन घर पर रहकर ही किया ।
उनके प्रारंभिक शिक्षक मोहिनी लाल गुप्त थे। जिनकी प्रेरणा से वह संस्कृत में पारंगत हो गये। घरेलू माहौल के कारण साहित्य और कला के प्रति जयशंकर प्रसाद को शुरू से ही गहरी रुचि थी और कहा जाता है कि मात्र नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 'कलाधर' के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर 'रसमय सिद्ध' को दिखाया था।
जय शंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ । jaishankar prasad ki pramukh rachnayen.
जयशंकर प्रसाद जी एक श्रेष्ठ कवि, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार और आलोचक थे। आपकी रचनाओं का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत था और साहित्य की हर विधा पर लेखन कर आपने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। Jaishankar prasad प्रमुख रचनाएं निम्न प्रकार हैं -
जयशंकर प्रसाद के उपन्यास । Jaishankar prasad ke upnyas.
• कंकाल 1929
• तितली 1934
• इरावती 1938, आदि उपन्यास जयशंकर प्रसाद की लेखनी का ही प्रसाद हैं।
जयशंकर प्रसाद के काव्य संग्रह । Jaishankar prasad ke kavy sangrah/ kavita
• प्रेम पथिक 1909,
• करुणालय 1913
• महाराणा का महत्व 1914
• चित्र आधार 1918
• झरना 1918
• आँसू 1924
• लहर 1934
• कामायनी 1936, आदि जयशंकर प्रसाद के अतुल्य काव्य संग्रह हैं।
जयशंकर प्रसाद के कहानी संग्रह । Jaishankar prasad kahani sngrah.
• छाया 1912
• प्रतिध्वनि 1926
• आकाशदीप 1929
• आंधी 1931
• इंद्रजाल 1936, आदि कहानी संग्रह जयशंकर प्रसाद की अमुल्य देन है।
जयशंकर प्रसाद के नाटक । Jaishankar prasad ke natak.
• सज्जन 1910
• कल्याणी 1912
• प्रश्चित 1914
• राज्यश्री 1915
• विशाख 1921
• अजातशत्रु 1922
• जन्मेजय का नाग यज्ञ 1926,
• कामना 1927
• स्कन्दगुप्त 1928
• चन्द्रगुप्त 1931 आदि नाटक आपकी लेखन शैली के सुंदर उदाहरण है।
जय शंकर प्रसाद के काव्य की विशेषताएं । Jaishankar prasad ke kavya ki visheshataen.
आपके साहित्य में भाव पक्ष और कला पक्ष का बेजोड़ संगम है। एक ओर काव्य प्रेम झलकता है वहीं दूसरी ओर कला की दृष्टि से भी आप पूर्ण रूप से सक्षम है। जयशंकर प्रसाद जी का काव्य प्रेम सौंदर्य और करुणा से भरा हुआ है। नारी और प्रकृति का समायोजन आपकी रचनाओं में मिलता है।
उन्होंने नारी जीवन को प्रेरणारूप प्रदान किया है, तो प्रकृति की सुकुमारता, जीवन के प्रति विश्वास और नारी जागरण का संदेश जयशंकर प्रसाद जी ने ही दिया है। उनकी रचनाएं यथार्थ के धरातल पर खरी उतरती है।जयशंकर प्रसाद ने अपनी आरंभिक रचनाओं में बृज भाषा का प्रयोग किया लेकिन फिर खड़ी बोली का प्रयोग किया।
आपकी भाषा में तत्सम शब्दों का बाहुल्य देखने को मिलता है। तो छायावादी भाषा में ओज गुणों की प्रधानता भी है, आपकी रचनाएँ भावपूर्ण और रस युक्त है।
छायावादी कवि होने के नाते देसी अलंकारों के साथ विदेशी अलंकारों का मानवीकरण, विशेषण के साथ छंदो की प्रधानता भी इनके काव्य में देखने को मिलती है। आपकी रचनाओं में गीतात्मक शैली और मात्रिक छंद का खुलकर प्रयोग हुआ है।
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रसिद्ध नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने छायावाद में अपना अमूल्य योगदान देकर उसे एक महत्वपूर्ण स्थान पर पहुंचाने का कार्य किया है । उनके काव्य रचनाओं में ऐसा चमत्कार देखने को मिलता है ।
खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। काव्यक्षेत्र में प्रसाद काकालजयी ग्रंथ 'कामायनी' है। मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित खड़ी बोली का यह अद्वितीय महाकाव्य मानवता को जीताने का संदेश देता है।
उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का जीता-जागता उदाहरण है। सुमित्रानन्दन पंत इसे 'हिंदी में ताजमहल के समान' मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसका कोई सानी नहीं है। यही कारण है कि जयशंकर प्रसाद को 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
बीती विभावरी जाग री !
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
जैसी रचनाएं आज भी जन जन की जबान पर है। प्रेम, सौन्दर्य, देश-प्रेम, रहस्यानुभूति, दर्शन, प्रकृति चित्रण और धर्म आदि विभिन्न विषयों का समावेश आपकी रचनाओं में स्पष्ट देखने को मिलता है। शैली और भाषा की असाधारणता आपकी अपनी विशेषता है।
प्रसाद जी के काव्य साहित्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति की गरिमा और भव्यता बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत हुई है। आपके नाटक तथा रचनाएँ भारतीय जीवन मूल्यों को बड़ी शालीनता से प्रस्तुत करती हैं।आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान से ओतप्रोत है। प्रसाद जी ने प्रकृति के विविध पक्षों का बड़ा सजीव वर्णन किया है।
जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी । Jay shankar prasad death -
अपनी ज्ञान रश्मियों से जग को प्रकाशित करने वाला यह महा सूर्य 5 नवम्बर, सन् 1937 को सदा सदा के लिए अस्त हो गया लेकिन अपनी साहित्य संपदा के रूप में आज भी जन जन के मन में व्याप्त है। उनके देहांत के बाद सन 1940 में उनका उपन्यास इरावती का प्रकाशन किया गया । इन उपन्यास पर वर्तमान समाज के बारे में लिखा गया ।
Jaishankar prasad हमारे देश के गौरवशाली अतीत का जीवित वातावरण प्रस्तुत करने वाले महान कवि थे। उनकी बहुत सी कहानियाँ में आदि से अंत तक भारतीय संस्कृति एवं आदर्शो पर खरी उतरती है । जयशंकर प्रसाद एक ऐसे कवि हुए जिन्होंने हिन्दी भाषा को समृद्ध किया । इस महान कवि को शत शत नमन .. ।। मीना दुगड़ कोलकाता ।।