रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय । Ravindra nath tagore biography in hindi.
Ravindra nath tagore biography in hindi. रविंद्र नाथ ठाकुर टैगोर कवि, साहित्यकार, तत्व ज्ञानी, गीतकार, संगीतकार, चित्रकार और दर्शन शास्त्री जाने कितनी ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी। एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता श्री रविंद्र नाथ टैगोर ( Ravindra nath tagore ) । भारत और बांग्लादेश दोनों में राष्ट्रीय गान को प्रदान करने वाले इस महान युग दृष्टा को भारतीय इतिहास क्या समूचा विश्व जगत भी इस अशेष कृति को अपनी स्मृति में सदैव जीवंत रखेगा।
Ravindra nath tagore biography और उनकी कविताओं के बारे में लिखते हुए आचार्य शिशिर कुमार घोष ने संकेत किया कि" उन्हें आश्चर्य गुण तथा प्रायः स्व विरोधी तत्व इतनी अधिक थे कि उनकी कृतियों और घटनाओं में भेदभाव के ढेर में उलझ कर कोई भी जीवनी कार उस रविंद्रनाथ को ढूंढता ही रह जाएगा जिन्होंने उस नव जागृति के भित्ति प्रस्तर स्थापन किया जिस पर आज भारत खड़ा है । वह इसीलिए कि उनका तथा उनकी असंख्य रचनाओं का जड़ जहां एक तरफ वेद उपनिषद पुराण तक जाते हैं तथा दूसरी ओर पश्चिम ज्ञान और साहित्य की अनमोल रत्न को भी उन्होंने जाना और पाया है उनसे रस सींचने के लिए।
उनकी रचनाओं ने साहित्य को सामान्य मान को असामान्य दर्जा अवश्य दिलाया है लेकिन कभी वह विद्वता की प्रकाशिका नहीं बनी । जो उनके अनमोल शब्दों को गाने के लिए ही बने हैं उनके भाषण के लिए प्रयोग करना उनकी कृति का विरोध है और यही कारण था कि उनके गीतों में आम आदमी अपनी हर अवस्था प्रत्येक वेदना तथा सफलता की प्रतिच्छवि पाता है तब भी और आज भी।
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रवीन्द्रनाथ का जन्म एवं जीवन परिचय । Ravindra nath tagore biography in hindi.
रवींद्रनाथ ठाकुर ( Ravindra nath tagore ) का जन्म 7 मई 1861 में जोड़ासाँको के ठाकुर परिवार में हुआ था यानी इनका जन्म कलकत्ते में हुआ था। इनके पिता का नाम देवेंद्र ठाकुर तथा माता का नाम शारदा देवी था। ब्रह्म समाज के प्रमुख इनके पिता देवेंद्र ठाकुर के चौदहवीं संतान के रूप में इनका जन्म हुआ। देवेंद्र जी के पिताजी यानी रविंद्र नाथ टैगोर के दादाजी प्रिंस द्वारिका नाथ ठाकुर मात्र धनशाली व्यक्ति ही नहीं उनकी प्रतिष्ठा और ख्याति भी ईष्याजनक थी।
राजा राममोहन राय जैसे उनके खास मित्र थे वैसे ही रानी विक्टोरिया भी उन्हें भलीभांति जानती थी और इनके परिवार की गिनती सबसे धनी परिवारों में से होती थी । रवींद्रनाथ ठाकुर और उनके सभी भाई बहन उनके पिता देवेंद्र नाथ ठाकुर के आदर्श अनुसार सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों की तरह पले बढ़े । रविंद्र नाथ ठाकुर सबसे छोटे थे इसी कारण इन्हें अपने मां का अधिक प्यार प्राप्त नहीं हुआ ।
इनकी माता का देहांत बहुत कम उम्र की आयु में हो गया था । जब उनकी माताजी जीवित थी तभी भी एक विशाल परिवार इनकी देखरेख में सदा व्यस्त रहती थी पर उनके बड़े भाई बहनों का प्यार दुलार काफी मात्रा में प्राप्त था। कविता लेखन, गीत रचना में भी उनके कार्यों को प्रोत्साहित करने का सहारा उनके भाई बहनों के द्वारा प्राप्त हुआ।
शिशु काल में गृह शिक्षकों के अलावा उन्होंने कुश्ती के लिए भी उन्होंने शिक्षक प्राप्त हुए अर्थात उनकी आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। साहित्य का सच्चा पाठ उन्होंने अपने ईश्वर के बड़े बूढ़ों से प्राप्त किया। उनके अग्रज भाई दिव्जेंद्र नाथ ने उन्हें कालिदास की मेघदूत का पाठ कर सुनाया था और स्वच्छंद गति व छंदालकारों के अनुसरण आस्वाद लिया ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा । Ravindra nath tagore education -
विद्यालय सेंट जेवियर स्कूल में दाखिला तो उनका हुआ पर शीघ्र ही उनकी पढ़ाई छूट गई। उनकी शिक्षा घर पर ही हुई। उसके बाद विद्या अध्ययन का कार्य घर पर ही चलता रहा 12 वर्ष की आयु में ही उन्होंने जयदेव की रचना चंडीदास विद्यापति की पदावली पढी थी। उन्होंने बंकिम चंद्र जी की उपन्यास को भी पढ़ा ।
12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता देवेंद्र नाथ के साथ हिमालय भ्रमण को लेकर के उत्तर भारत की बहुत सी जगह में सैर किया । 1873 और 75 ईसवी के दौरान उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक हिमालय की छवि बारबार आते दिखाई देती है। बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए उनके ज्येष्ठ भ्राता सत्येन्द्र नाथ ने अहमदाबाद से इंग्लैंड भेज दिया । किंतु 1880 ई में शिक्षा पूरी किए बिना ही भारत लौट आए।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का कला, साहित्य के क्षेत्र में योगदान । Ravindra nath tagore ka yogdaan -
कवि रविंद्र नाथ टैगोर की प्रथम रचना 1873 के दौरान उनकी पहली प्रकाशित कविता हिमालय की छवि बार-बार आते दिखाई देती है। 12 वर्ष की उम्र में ही अपने पिता देवेंद्र नाथ जी के साथ हिमालय भ्रमण में अपने साथ उत्तर भारत की बहुत सी जगहों में सेर करवाया और कहा जाता है कि हिमालय की यात्रा के दौरान ही उन्होंने सर्वप्रथम कविता की रचना की । एक वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने एक सुंदर कविता की रचना कर प्रतिभा का परिचय दिया।
वैष्णव पदावली का तरुण टैगोर पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उसी समय भानु सिंह यानी भानुसिंहेर पदावली की रचना की । जिसका मुद्रण भारती पहली बार 1877 ई में हुआ। अगले वर्ष उनके भ्राता उन्हें अहमदाबाद ले गए और वहां से विलायत गए। वि देश प्रवास के दौरान उन्होंने संध्या संगीत नामक पुस्तक की रचना की उस पुस्तक में स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में धारा उनकी रचनाओं में कविताओं में काफी बदलाव नजर आया। उसके बाद रचना का क्रम इनके जीवन में लगातार बनते रहा उन्होंने अपने अनुभवों को अपने जीवन के हर एक पड़ाव को कविता, कहानी, लेखन, नाटक के माध्यम से पिरोया।
रविन्द्र नाथ टैगोर की पुस्तकों के नाम । Ravindra nath Tagore books -
उनकी प्रमुख रचनाए इस प्रकार है अंकुरण तथा पवम पस्फुटन, परिपक्वता का परिणाम, नैवेद्य के फूल, नीड और आकाश की कविताएं, संध्या संगीत, कडि ओ कोमल, शिशु, स्मरण, कणिका, गीतांजलि, सिंधु पारे, बलाका, स्वर्ग होते विदाई, उर्वशी, बाल्मीकि प्रतिभा, खाप छाडा, आकाश प्रदीप, नव जातक, उसके बाद, कर्म फल, बैंकुठेर खाता, राजर्षि, विसर्जन, राजा ओ रानी, प्रकृति परिषद, वसंत, फाल्गुनी, मुक्त धारा, नटीर पूजा, चित्र गंदा, नस्ट नीड, चोखेर बाल, योगायोग, घरे बाइरे, और शेषेर कविता, गल्पगुच्छ आदि। इसके उन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा में सृजन किया जैसे कविता, लघुकथा, कहानी, उपन्यास, निबंध एवं लेख । Ravindra nath tagore की पुस्तकें खरीदने के लिए टच करें
Geetanjli by ravindra nath tagore
रवीन्द्रनाथ टैगोर का इतिहास, जीवन यात्रा । Ravindranath Tagore history in hindi.
9 दिसंबर 1883 ई मैं रविंद्र नाथ टैगोर ने शादी कर ली टैगोर परिवार जमीन दारी में कर्मरत अधिकारी की कन्या मृणालिनी के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ। इसके 6 महीने बाद ही उनकी भावी और तरुण कवि जीवन की प्रेरणा स्वरूपिणी कादंबरी देवी ने आत्महत्या कर चल बसी। इससे रविंद्र नाथ को जो धक्का पहुंचा वह उनके व्यक्तित्व जीवन के लिए तो वेदना का कारण बनी। उनकी कविताओं की व्याप्ति तथा गंभीरता के लिए भी शायद इस आघात की आवश्यकता थी।
Ravindra nath tagore ने कुछ समय तक ब्रह्म समाज के सचिव के रूप में काम किया। उन्होंने हिंदू धर्म के कट्टर प्रवक्ताओं के विरोध में अपनी लेखनी को धारण किया । इसी समय कोलकता में प्रबुद्ध महिलाओं का गठन सखी समाज ने उन्हें अभिनय के लिए पुरुष वर्ग विवर्जित एक नाटक लिखने के लिए अनुरोध किया और नाट्य नृत्य नाट्य में मायार खेला की रचना की । टैगोर जी को जमीन दारी का कार्यभार संभालने के लिए भी शहर से काफी दूर तक गांव में जाना पड़ता था और उस यात्रा के दौरान उनको नाव का प्रयोग करना पड़ता था तो उन्होंने उस समय एक विशेष पुस्तक की रचना की जिसका नाम था सोनार तरी।
रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा शांति निकेतन की स्थापना । Ravindra nath tagore Shanti niketan
मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा के पक्ष में उन्होंने अचूक तर्क देते हुए शिक्षा हेरफेर जैसे महत्वपूर्ण निबंध की रचना की। तदोपरांत यूरोपीय प्रशासकों और आदर्श हीनता को भी नहीं बख्शा । इस तरह इन्होंने अपने जीवन में लगातार रचना के माध्यम से अपने अनुभवों को जग जाहिर किया। टैगोर ने अंधविश्वास देश व कुसंस्कार पर भी प्रहार किया। नवचेतना नवजागरण की आवश्यकता की ओर इशारा भी किया । शांतिनिकेतन में अपनी शिक्षा पीठ की स्थापना की।
शांतिनिकेतन की स्थापना के बाद 1902 में उनकी पत्नी का देहांत हो जाता है और मात्र हीन शिशु की नजर में उन्होंने शिशु नामक और स्मरण नामक दो पुस्तकों की रचना करते हैं । उनका व्यक्तिगत जीवन बड़ा ही दुखद रहा। उनकी पत्नि के निधन के बाद उनकी पुत्री चल बसी और उसके 4 वर्ष के भीतर ही 1907 में उनका कनिष्ठ पुत्र का भी निधन हो गया । शांति निकेतन के संचालन में उन्हें अत्यधिक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा कई प्रतिभाशाली अध्यापक विद्यालय छोड़ कर चले गए । इनमें से सर्वश्रेष्ठ सतीश चंद्र राय का निधन हो गया । विद्यालय को कहीं और ले जाना पड़ा।
Ravindra nath tagore biography in hindi.
इसके बाद इतिहास में बंग बंग का आंदोलन व स्वदेशी आंदोलन के साथ और पूर्ण रूप से जुड़े हुए रहे और उन्होंने जन-गण मन गीत के कारण जनप्रिय भी बने। सन् 1901 में उन्होंने गीतांजलि की रचना की जिससे उन्हें देश के को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से विभूषित किया गया । अगले वर्ष उनकी पच्चीसवीं सालगिरह पर उनकी आत्मजीवनी जीवनस्मृति का प्रकाशन हुआ । कलकत्ते की कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने जन गण मन की रचना की जिससे आज हमारे मन में उभरती भी भारत की छवि का परिचय मिलता है।
गीतांजलि पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। उन्हें अंतरराष्ट्रीय संबंध में भाषण देने के लिए अमेरिका गए और उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए चयन किया गया । गांधीजी से टैगोर की पहली प्रत्यक्ष मुलाकात शांतिनिकेतन में हुई। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पक्ष तथा जातिवाद की आलोचना की। जलियांवाला बाग का कांड में लाखों निर्दोषों की हत्या को देख कर उन्होंने अपनी नाइट की उपाधि का त्याग किया। भारत अंग्रेजी सरकार ने उन्हें नाइट की उपाधि दी थी उसका उन्होंने त्याग कर दिया जब जलियांवाला बाग का हत्याकांड हुआ।
शांतिनिकेतन को विश्वविद्यालय बनाने के लिए अर्थ संग्रह करना चाहते थे लेकिन अमेरिका में भी उनका इतना असर प्रभावशाली नहीं रहा हालांकि जर्मनी और स्विट्जरलैंड और फ्रांस में उन्होंने काफी अभ्यर्थना हुई। गांधीजी और टैगोर जी की शांतिनिकेतन में काफी चर्चा हुई और एक निबंध के माध्यम से उन्होंने अपने संवाद को दर्शाया। मध्य यूरोप में भ्रमण के बाद जब घर लौट रहे थे तो अशांति की आग बुझी नहीं थी दंगे और मार पीट कारण स्वामी श्रद्धानंद और जैसे महात्मा भी मारे गए थे।
Ravindra nath tagore चित्र शिल्पी के रूप में भी अपने आप को प्रकाशित प्रतिष्ठित किया फ्रांस जर्मनी में उनके अंकन प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तथा बर्लिन में भी उनके वार्तालाप को आइंस्टाइन के साथ हुआ उनकी रूस देश के भ्रमण की डायरी को पढ़कर पता चलता है कि रूस यात्रा को क्यों तीर्थ यात्रा कहा था । सतहर वर्ष की आयु में भी उन्होंने अपनी सालगिरह मनाई और राजनीतिक मानचित्र को काफी बदल दिया था । टैगोर जी का स्वास्थ्य गिरने के कारण उन्होंने शांतिनिकेतन में अधिक ध्यान न दें पाए और इधर विश्वयुद्ध विश्व युद्ध आरंभ होने के कारण देश विपदा आ चुकी थी । शांतिनिकेतन में उन्होंने विपत्तियों से नाराजगी व्यक्त की। टैगोर जी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने डी लिट की उपाधि देकर सम्मानित किया गया ।
रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार । Rabindranath tagore nobel prize
रविन्द्र नाथ टैगोर कला व साहित्य के लिए जाने जाते थे । उन्होंने अनेकों साहित्यिक कृतियों के साथ साथ चित्रकारी की थी । उन्होंने राष्ट्रगान ( जनगण मन अधिनायक जय हो ) की रचना की । उनकी प्रतिभा को देखते हुए अनेको पुरस्कार मिले । साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार लेने वाले पहले व्यक्ति थे । यह पुरस्कार सन 1913 में में दिया । इस पुरस्कार को साहित्य के क्षेत्र में लेने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे । इनसे पहले थियोडोर रूजवेल्ट को दिया गया था ।
Ravindra nath tagore को ये पुरस्कार उनकी साहित्यिक कृति कविता-संग्रह गीतांजलि के लिए दिया गया था । गीतांजलि कविता संग्रह सबसे सबसे अच्छा संग्रह था। इस संग्रह को उन्होंने अंग्रेजी भाषा में भी व्यक्त किया था जो पश्चिमी सभ्यता का भाग था । टैगोर को नोबेल पुरस्कार उनकी सुंदर काव्य रचना एवं गहन संवेदनशील के कारण प्रदान किया गया था । वही वर्ष 1954 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया । इसके अलावा भी अनेको पुरस्कार मिले ।
रविन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु कब हुई थी । Ravindra nath togore death -
27 जुलाई 1941 को उनकी अंतिम छोटी सी कविता के माध्यम अपना एक सच्चा परिचय रखा । जीवन के अंतिम पड़ाव के 4 सालों में अस्वस्थ रहे । लगातार बीमार रहते हुए सन 1937 में बेहोशी की हालात में कोमा में चले गए । आखिर में लम्बी पीड़ा के चलते 7 अगस्त 1941 इस महान सूर्य का अस्त हो गया।
तो मित्रों उम्मीद करते है आज की महान कवि, साहित्यकार, चित्रकार के बारे में जानकारी Ravindra nath tagore biography in hindi. आपको अच्छी लगी होगी ।। हेमलता गोलछा ।।