चाणक्य कौन थे संक्षिप्त परिचय । Chanakya biography in hindi.
Chanakya biography in hindi. आचार्य विष्णुगुप्त, कौटिल्य, वात्स्यायन, द्रमिल आदि कई नामों से अलंकृत चाणक्य त्रिवेदज्ञ, शास्त्र पारंगत, मंत्र विद्या विशेषज्ञ, निति निपुण राजनीतिज्ञ तथा प्रगाढ कूटनीतिज्ञ होने के साथ ही विविध विधाओं के महापंडित व दार्शनिक भी थे । उन्होनें अपनी प्रखर प्रतिभा, स्वाभिमान, कर्मठता, ईमानदारी, साहस तथा देशभक्ति जैसे उन्नत चारित्रिक गुणों का सदुपयोग जनकल्याण तथा अखंड भारत के निर्माण जैसे उल्लेखनीय कार्यो में किया ।
भारत को एक साम्राज्य में संगठित करने का श्रेय यदि किसी को जाता है, तो वह चाणक्य ( Chankya ) ही हैं । उन्होने जीवनपर्यंत पद और प्रतिष्ठा से निर्लिप्त रहकर राष्ट्र को एक सुदृढ आधार पर खड़ा किया । चाणक्य न सिर्फ एक महान गुरु ही थे बल्कि एक महान रचनाकार भी थे । उन्होंंने अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा चाणक्य नीति जैसी पुस्तकों की रचना की । चाणक्य का अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति का महान ग्रंथ है । उनका व्यक्तित्व किसी भी देश या काल में अनुकरणीय है ।
नंद वंश का विनाश एवं मौर्य वंश की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही जाता है । चाणक्य इतिहास का ऐसा पात्र है जिसके ऊपर किसी भी विघ्न-बाधा का असर ही नही पड़ा । जयशंकर प्रसाद जी के साहित्य में वह गगन सा गंभीर समुद्र सा विशाल, धरती सा क्षमाशील है । उसके शब्दकोश में असंभव शब्द है ही नहीं । तो चलिए जानते है चाणक्य का जीवन परिचय । Chankya biography in hindi.
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चाणक्य कौन थे संक्षिप्त परिचय । Chanakya biography in hindi.
आचार्य चाणक्य ( Acharya Chanakya ) का जन्म 325 ई० पू० में हुआ था । कुछ विद्वानों का मत है कि आचार्य कौटिल्य का जन्म 400 ई0पू0 हुआ था । उनका जन्म- स्थान भी विवादास्पद विषय रहा है । कुछ विद्वान उनका जन्म-स्थान गांधार क्षेत्र स्थित तक्षशिला तथा कुछ मगध अर्थात बिहार मानते हैं । बौद्ध, जैन साहित्य तथा अन्य श्रोतों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि कौटिल्य की जन्मभूमि तक्षशिला ( जो अब रावलपिंडी पाकिस्तान के गोला क्षेत्र में ) थी ।
जैन ग्रंथ अनुसार कौटिल्य के पिता का नाम चणक एवं माता का नाम चणेश्वरी था । ये माता-पिता की प्रथम संतान थे । जन्मोपरांत प्रसव पीड़ा से इनकी माता का असामयिक निधन हो गया था । चाणक्य के पिता चणक एक गरीब द्रविड़ ब्राह्मण थे । वे मगध के सीमावर्ती नगर में रहते थे । चाणक्य में जन्मजात नेतृत्वकर्ता के गुण मौजूद थे । वे अपने हम-उम्र साथियों से सबसे अधिक बुद्धिमान एवं तार्किक थे ।
आचार्य चाणक्य की कहानी । Acharya Chanakya story in hindi.
चाणक्य के पिता आचार्य चणक अपने देश को लेकर हमेशा चिंतिंत रहते थे । एक ओर जहां यूनानी आक्रमण हो रहा था तो दूसरी ओर पड़ोसी राज्य मालवा, पारस, सिंधु तथा पर्वतीय प्रदेश के राजा भी मगध का शासन हथियाना चाहते थे । किंतु मगध के शासक घनानंद का लोभी व भोगी-विलासी स्वभाव देख वे मगध के राजा से असंतुष्ट थे, इसलिए किसी भी तरह महामात्य के पद पर पहुंचकर वे राज्य को विदेशी आक्रांताओं से बचाना चाहते थे ।
इसके लिए उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार से मंत्रणा कर घनानंद को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई । किंतु गुप्तचर के द्वारा महामात्य राक्षस और कात्यायन को इस षड़यंत्र का पता लग गया । उसने मगध सम्राट घनानंद को इस षड्यंत्र की जानकारी दी ।
चणक को बंदी बना लिया गया और राज्यभर में खबर फैल गई कि राजद्रोह के अपराध में एक ब्राह्मण की हत्या की जाएगी । चणक के किशोर पुत्र कौटिल्य को जब इस बात की जानकारी मिली । तब वह चिंतित और दुःखी हो गया । चणक का कटा सिर राजधानी के चौराहे पर टांग दिया गया । पिता के कटे सिर को देखकर चाणक्य की आंखों से आंसू टपक रहे थे, रात के अंधेरे में उसने बांस पर टंगे अपने पिता के सिर को नीचे उतार कर एक कपड़े में लपेटा और अकेले ही पिता का दाह-संस्कार किया और उसी दिन उसने गंगा जल हाथ में लेकर संकल्प लिया-
जब तक हत्यारे घनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकी पकाई कोई वस्तु या चीज़ नही खाऊंगा और जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंग लूंगा तब तक यह शिखा खुली ही रखूंगा । मेरे पिता का तर्पण तभी पूरा होगा, जब तक घनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढेगा ।
प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे चणक पुत्र कौटिल्य ( Kotilya ) वहां से निकल जब एक जंगल में अचेतावस्था मे पड़े थे, तब एक पंडित की नजर उन पर पड़ी । पंडित ने उनके चेहरे पर पानी का छींटा दिया, जिससे उनकी चेतना वापस लौटी । तब उस पंडित ने उनसे उनका नाम पूछा, तब चाणक्य अपनी पहचान चणक पुत्र के रूप में छुपाने के उद्देश्य से अपना नाम विष्णुगुप्त बताया और रोते हुए उसने कहा - मैं कई दिनों से भूखा हूं, अनाथ हूं, मुझ पर दया करें । उस विद्वान पंडित का नाम राधामोहन था । वे एक गांव के अध्यापक थे, उन्होंने चाणक्य को सहारा दिया और अपने साथ लेते आए ।
Chanakya biography in hindi
कुछ दिन अपने साथ रखने के बाद विष्णुगुप्त की प्रखर प्रतिभा को पहचान कर उन्हें उस समय का विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय तक्षशिला में अपने सहपाठी की सहायता से दाखिला दिलवा दिया । वहां छात्रों को धनुर्विद्या, हाथी-घोड़ों का संचालन, अठारह कलाओं के साथ-साथ न्याय-शास्त्र, चिकित्सा-शास्त्र, राजनीति - शास्त्र, सामाजिक कल्याण आदि के बारे में शिक्षा दी जाती थी । इस विद्यालय में जहां देश-विदेश के धनाढ्य लोगों के पुत्र पढ़ने आते थे, वहीं राजा-महाराज के पुत्र भी पढ़ते थे । धीरे-धीरे समय के साथ विष्णुगुप्त ने अपने ज्ञान, विनम्रता, निष्ठा, लगन और कठोर परिश्रम के बल पर आचार्यगण एवं विद्यार्थियों का दिल जीत लिया और अंत में कुलपति के अनुरोध पर विष्णुगुप्त इस विश्वविद्यालय के आचार्य पद पर आसीन हुए ।
एक शिक्षक के रूप में Chanakya की ख्याति दूर-दूर के देशों तक फैल गई थी परंतु उनके जीवन में ऐसी घटना घटी जिसने चाणक्य के जीवन की दिशा ही बदल दी जिसमें एक घटना थी सिकंदर के भारत पर आक्रमण की जबकि दूसरी घटना मगध के शासक द्वारा कौटिल्य के अपमान की । इस घटना ने विष्णुगुप्त को देश की एकता और अखंडता के बारे में सोचने को विवश कर दिया और उसने देश के राजाओं और महाराजाओं को शिक्षित करने का संकल्प ले लिया ।
सिकंदर ने जब आक्रमण किया था उस समय मातृभूमि की रक्षा के लिए विष्णु गुप्त ने सभी राजाओं से पोरस की रक्षा करने का आह्वान किया । उस समय तक्षशिला का राजा आंभी था । वह पोरस से ईर्ष्या करता था, इसलिए वह तो साथ देता ही नहीं । सिकंदर से बचाने के लिए विष्णुगुप्त घनानंद के पास भी गए और वहां उन्होंने यूनानी आक्रमण की बात भी बताई तथा शंका जाहिर की, कि यूनानी हमारे राज्य पर भी आक्रमण करने वाला है, इतना ही नहीं, भोग-विलास में डूबे राजा घनानंद को खूब खरी-खोटी भी सुनाई । विष्णुगुप्त की बात सुनकर राजा भड़क गया और उसने विष्णुगुप्त का ना सिर्फ उपहास किया बल्कि उससे कहा - पंडित हो अपनी चोटी का ध्यान रखो । युद्ध करना राजाओं का काम है इसलिए तुम अपनी पंडिताई झाड़ो ।
चन्द्रगुप्त और चाणक्य । Chandragupt aur Chanakya
राजा के उपहास उड़ाने के साथ ही सभी चाटुकार दरबारी भी जोर जोर से हंसने लगे तब विष्णु गुप्त ने अपनी शपथ राजा घनानंद के समक्ष दोहराई । इससे पूर्व के राजा चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश देता विष्णुगुप्त वहां से तेज कदमों के साथ निकल पड़े । वे जानते थे कि राजा के सैनिक विष्णुगुप्त को खोज रहे हैं, इसलिए वह वेश बदलकर जंगल की ओर चल पड़े । जहां अत्यंत सीधे-सादे लेकिन लड़ाकू प्रवृत्ति के आदिवासी और वनवासी जाति के लोग रहते थे । वहां उन्होंने देखा एक बालक जो राजा प्रजा का खेल खेल रहा था, राजा बना हुआ था । अन्य बालकों की अपेक्षा वह सुदृढ शरीर और साहसी विचारों वाला जान पड़ता था । उसमें नेतृत्व क्षमता भी गजब की थी।
विष्णुगुप्त उसमें चक्रवर्ती सम्राट बनने के लक्षण देख रहे थे । उन्होंने चंद्रगुप्त के बारे में विशेष जानकारी हासिल की और उसे अपने साथ तक्षशिला ले गए वहां उन्होने चंद्रगुप्त को वेद शास्त्रों से लेकर युद्ध और राजनीति तक की शिक्षा दी क्योंकि घनानंद साम्राज्य से टक्कर लेना कोई खेल नहीं था । राक्षस और कात्यायन जैसे कुटिल नीतिज्ञ और घनानंद जैसे क्रूर शासक के होते हुए सिकंदर जैसा योद्धा भी व्यास सतलुज से लौट गया था । इसलिए चाणक्य अपनी नीति के अनुसार लगभग 8 साल तक अपने संरक्षण में चंद्रगुप्त को शिक्षित करके उसे शूरवीर बनाया ।
Chanakya biography in hindi.
अस्त्र-शस्त्र, राजनीति एवं गोपनीयता की शिक्षा देकर उसे आज्ञा दी कि वह जिस जंगल से आया था वही जाकर आदिवासियों और जनजातियों को इकट्ठा करें और उनमें से योद्धाओं को चुन एक राष्ट्रीय सेना का गठन करें । यह कार्य उसे गुप्त तरीके से करने के लिए कहा और यह कहा कि उसके बाद तुम मेरे पास आना । इधर चाणक्य अपना वेश बदलकर वात्सायन नाम से आस-पास के ग्रामीण इलाकों में घोषणा करवा दी कि धर्म और नीति के महापंडित, पंडित आचार्य विष्णुगुप्त जन- जागरण और धर्म की रक्षा का संदेश लेकर देश भर की यात्रा पर निकले हैं और मगध में भी प्रवेश कर रहे हैं ।
इस तरह वात्सायन ने युवकों में राष्ट्रीय चेतना का भाव पैदा कर एक राष्ट्रीय संगठन बना लिया अंत में मगध के पटल पर वात्सायन के ओजस्वी भाषण एवं चंद्रगुप्त के नेतृत्व क्षमता के बल पर एक राष्ट्रीय सैन्य शक्ति का उभार सभी को दिखने लगा और वह दिन भी आ गया जब चाणक्य के इशारे पर चंद्रगुप्त ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया । आसपास के राजाओं से मिलकर उसने मगध पर आक्रमण किया और घनानंद को मौत के घाट उतार मगध पर कब्जा कर, वह वहां का सम्राट बना । इस प्रकार मौर्य वंश की स्थापना आचार्य चाणक्य की एक महती उपलब्धि थी ।
Chanakya चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री, गुरु, हितैषी तथा राज्य के संस्थापक थे । चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री होते हुए भी पाटलिपुत्र से बाहर गंगा किनारे एक कुटिया में सादा-सरल जीवन जीते थे । चीन के प्रसिद्ध ऐतिहासिक यात्री फाह्यान ने भी उनसे कहा था- इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री ऐसी झोपड़ी में रहते हैं ? यह सुनकर चाणक्य ने उत्तर दिया - जहां का प्रधानमंत्री झोपड़ी में रहता है वहां का निवासी भव्य महलों में रहता है और जिस देश का प्रधानमंत्री राज महलों में रहता है वहां की सामान्य जनता झोपड़ियों में रहती है ।
चाणक्य विचार, नीति । chanakya thoughts in hindi.
Chanakya अपनी योग्यता और कर्तव्य पालन के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध थे जिस समय चंद्रगुप्त मौर्य भारत का सम्राट बना उस समय भारत जनपदों में बटा हुआ था जिस पर छोटे छोटे राजा लोग शासन करते थे । चाणक्य ने उन सबको चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन किया और पहली बार भारत को एक साम्राज्य में संगठित किया । चाणक्य ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे, जो भौतिक आनंद से आत्मिक आनंद को अधिक अहमियत देता है ।
Chanakya का कहना था कि आंतरिक शक्ति और चारित्रिक विकास के लिए आत्मिक विकास आवश्यक है । देश और समाज के आत्मिक विकास की तुलना में भौतिक आनंद और उपलब्धियां हमेशा द्वितीयक हैं । चाणक्य के कहे यह शब्द आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं । उनकी राजनीति के सिद्धांतों का थोड़ा भी पालन यदि किया जाए तो कोई भी राष्ट्र महान, अग्रदूत और अनुकरणीय बन सकता है ।
चाणक्य का साहित्य समाज में न्याय, सुशिक्षा, सर्वतोन्मुखी प्रगति सिखानेवाला ज्ञान-भंडार है । चाणक्य ने जनसेवा और जनमूल्यों को सीधे-सरल शब्दों में समझाया है । चाणक्य अनुसार- सुख का मूल धर्म है ।
राजनीति एवं अपने कार्यों का ज्ञान होना ही राजा या सरकार का धर्म है । इसी धर्म से देश सुखी रह सकता है इसलिए इस धर्म को देश के सुख का मूल अर्थात जड़ कहा गया है । धर्म का मूल अर्थ है यह धर्म तभी बना रह सकता है, जब देश की आर्थिक स्थिति सही हो । अतः राजनीति को सही प्रकार से चलाने के लिए देश में धन संपत्ति का होना आवश्यक है । अर्थ का मूल राज्य है ।
राज्य में स्थिरता बनी रहे, दंगे- फसाद, युद्ध, भ्रष्टाचार आदि ना हो तभी कोई राज्य या देश धन-संपत्ति वाला बनता है अर्थात देश में सुंदर व्यवस्था रहेगी तो देश स्वयं खुशहाल हो जाएगा । राज्य का मूल इंद्रियजय है .राज्य में यह स्थिरता तभी हो सकती है जब वहां का राजा या शासन को चलाने वाले लोगों की इंद्रियां उनके वश में हों ।
ये लोग अच्छे चाल चलन वाले होंगे तो देश में स्थिरता अपने आप आ जाएगी । इंद्रियजय का मूल विनय हैं ।
राज्य संचालन कैसे किया जाता है इसका ज्ञान होने पर स्वयं राजा सत्य को पहचान लेता है । सत्य को जान लेने पर उसका स्वभाव विनम्र, उदार हो जाता है उसमें किसी प्रकार की बुराई नहीं रहती है ।
वह सबसे अच्छा व्यवहार करता है इसी को विनय कहा जाता है । विनयशील होने पर ही राजा अपनी इंद्रियों को वश में कर सकता है । इस प्रकार उनके असंख्य सिद्धांत, सूत्र और वचन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे ।
मुद्राराक्षस के अनुसार चाणक्य जो कार्य करता है वह अपने स्वार्थ वश नहीं वरन चंद्रगुप्त एवं राष्ट्र -हित हेतु करता है । मुद्राराक्षस का चाणक्य अपने दूरदर्शी प्रखर बुद्धि के बल पर अपने शत्रु को अपना मित्र तथा अपने आदर्शों का पालक बनाकर शांत करता है, इस कारण कौटिल्य ने राक्षस को चंद्रगुप्त मौर्य के पक्ष में करके उसे प्रमुख अमात्य पद प्रदान किया ।
Chanakya ने यत्र -तत्र अपनी श्रुतियों का प्रयोग करके अपनी गहन चिंतन मनन का परिचय दिया हैं । उनका गहन चिंतन-मनन उन्हें दार्शनिक बना देता है । शत्रुओं की कमजोरी को पहचान उसे अपने काम में लाने की विशिष्ट प्रतिभा के चलते चाणक्य हमेशा अपने शत्रुओं पर हावी रहे । उनके शत्रु भी उनकी प्रशंसा करते हैं । सेल्यूकस के अनुसार वह बुद्धि का सागर है ।
चाणक्य के संदर्भ में जयशंकर प्रसाद साहित्य के अनुसार महत्वकांक्षी का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है । वह निष्ठुर वर्तमान के लिए है उसका प्रयास भविष्य की सुख- शांति के लिए भी है । इसके लिए वह अपना सर्वस्व त्याग देते हैं । यहां तक कि वह अपने हृदय की मधुर स्मृति सुभाषिनी को भी त्याग देते हैं ।
चाणक्य ने स्त्रियों के बारे में भी बहुत कुछ लिखा है । कुछ विद्वानों के अनुसार चाणक्य ने महिलाओं की भी एक सेना का निर्माण किया था, जिन्हें विषकन्या के नाम से जाना जाता था । विद्वानों के अनुसार "विषकन्या "जो बेहद खूबसूरत लड़कियां थी व अपने होठों से जहर छोड़ती थी । इन विषकन्याओं का प्रयोग युद्ध में किया जाता था । इन विषकन्याओं को अधिक मात्रा में जहर देकर बहुत घातक बना दिया जाता था ।
चाणक्य की मृत्यु । Acharya Chankya death -
चाणक्य का नाम, जन्म तिथि, जन्म स्थान ( Chankya biography ) और उनकी मृत्यु चारों ही विवाद के विषय रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा विवाद उनकी मृत्यु को लेकर है । कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उन्हें मगध की ही रानी हेलेना ने जहर देकर मार दिया । कई जगह कहा गया है कि वह वयोवृद्ध होकर 283 ईसा पूर्व के आसपास दिवंगत हुए । उनका अंतिम संस्कार उनके अनुयाई राधा गुप्त ने किया, जो मौर्य साम्राज्य का प्रधानमंत्री था ।
कहते हैं कि बिंदुसार के मंत्री सुबंधु के षड्यंत्र के चलते सम्राट बिंदुसार के मन में यह संदेह उत्पन्न किया गया, कि उनकी माता की मृत्यु का कारण चाणक्य थे । इस कारण धीरे-धीरे राजा और चाणक्य में दूरियां बढ़ती गई और एक दिन चाणक्य हमेशा के लिए महल छोड़कर चले गए । बाद में बिंदुसार को इसका पछतावा भी हुआ । इस प्रकार राजनीतिक षड्यंत्र के चलते एक महान व्यक्ति ( Chanakya ) के जीवन का अंत हो गया ।। रंजना सिंह, बेगूसराय ( बिहार ) ।।