मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय । Munshi Premachnd biography in hindi.

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय । Munshi Premachnd biography in hindi.


Munshi Premachnd biography in hindi.

Munshi Premachnd biography in hindi. भारतीय इतिहास में अब तक कई ऐसे कवि/ लेखक हुए थे जिन्होंने कलम के बल पर अपना नाम रोशन किया । जिन्होंने साहित्य को एक नई दिशा दी । जिन्होंने ने अपने काल में साहित्य का परचम लहराया । जैसे भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा आदि इन साहित्यकारों में से मुंशी प्रेमचंद भी एक थे । 

Munshi Premachnd को उपन्यास का सम्राट कहा जाता है । उन्होंने अनेको कविता, कहानियों का सृजन किया । उनकी सबसे लोकप्रिय कृति गोदान ( Godan ) रही । ग्रामीण परिवेश से सजी धजी उनकी कहानियां आज भी बहुत लोकप्रिय है । उन्होंने लेखन के बल पर एक नए युग की शुरुआत की जिसे मुंशी प्रेमचंद युग कहा जाता है तो चलिए जानते मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय एवं रचनाएं । Munshi Premachnd biography in hindi. -

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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय एवं रचनाएं । Munshi Premachnd biography in hindi.

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31  जुलाई सन 1880 में बनारस के बेलगांव उन्नाव से चार किलोमीटर दूर लमही नामक गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम धनपतराय था। 

माता पिता - इनके पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। वह डाकखाने के मुंशी थे। इनकी माता का नाम आनंदी देवी था वह सरल स्वभाव की नारी थीं। 

मुंशी प्रेमचंद बहुत गरीब परिवार से थे। 8 वर्ष की उम्र में इनकी माता का देहांत हो गया था । और उनके पिताजी ने दूसरी शादी कर ली थी। जिससे वह मां का प्रेम नहीं पा सके थे । बहुत गरीबी में इनका जीवन यापन हुआ, पहनने को कपड़े नहीं थे, दो वक्त का खाना भी बराबर नहीं मिलता था। मां भी सौतेला व्यवहार करती थी। 

 प्रेमचंद किस नाम से मशहूर । Premachnd kis naam se mashhoor the.

सुखदेव सिंह जी का कहना है कि प्रेमचंद जी ने अपना नाम के आगे मुंशी खुद नहीं लगाया है मुंशी शब्द सम्मान सूचक शब्द है मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रमुख कारण हंस नामक पत्र प्रेमचंद एवं कन्या लाल मुंशी जी के सह संपादन से निकला था जिनके कुछ पेज पर कन्यालाल ना चक्कर केवल मुंशी छपा रहता था साथ ही प्रेमचंद जी का नाम ऐसे लिखा होता था संपादक मुंशी प्रेमचंद जबकि हंस के संपादक मुंशी कन्हैयालाल और प्रेमचंद जी थे इसीलिए लोगों ने प्रेमचंद जी को मुंशी प्रेमचंद समझ लिया आज प्रेमचंद जी के मुंशी अलंकरण इतना लोकप्रिय हो गया कि मात्र मुंशी अंलकरण से ही प्रेमचंद जी का बोध हो जाता है मुंशी ना कहने से अब प्रेमचंद जी का नाम अधूरा अधूरा सा लगता है तो दोस्तों इस प्रकार प्रेमचंद जी का नाम मुंशी प्रेमचंद पड़ा था । 

मुंशी प्रेमचंद की पत्नी का नाम । Munshi Premachnd marriage -

Munshi Premachnd का विवाह 15 वर्ष की उम्र में हो गया था। उनकी पत्नी इनसे उम्र में बड़ी थीं और सुन्दर भी नहीं थी। उनकी जबान जले पर नमक का काम करती थी । पहली बार पत्नी की सुरत देख कर वह बेहोश हो गये थे। ये विवाह ज्यादा दिन तक सफल नहीं रहा। बाद में उन्होंने  1906 में बाल विधवा प्रथा का विरोध किया और एक बाल विधवा शिवरानी देवी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। दूसरी पत्नी की संतान दो लड़के और एक लड़की थी। श्री पंत राय, अमृत राय व कमला देवी था।  इनकी 16 वर्ष की आयु में इनके पिता का देहांत हो गया था। 

शिक्षा - इनकी शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई फिर बाद में इन्होंने हिंदी में 1898 में मैट्रिक पास की।और स्थानीय विद्यालय में मास्टर बने । 1910 में इंटर पास किया। फिर 1919 में B.A. पास करने के बाद शिक्षा विभाग में स्पेक्टर  नियुक्त किए गए। 

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक सफर एवं साहित्य में योगदान । sahitya me munshi premachnd ka yogdaan.

Munshi Premachnd ने अपना लेखन 1901 में नवाबराय से शुरू किया । बाद में उन्होंने अपना लेखन कार्य अंग्रेजी सरकार के उत्पीड़न से अपने मित्र जमाना पत्रिका प्रकाशक दया नारायण निगम के कहने से मुंशी प्रेमचंद के नाम से शुरू किया । 13 वर्ष की उम्र में प्रेमचंद जी ने तिलिस्म होशरूबा पढ़ लिया था । 

उन्होंने मशहूर रचनाकार रतननाथ सरसा, मिर्जा हाजी रुसवा और मौलाना शरर के उपन्यास से परिचय प्राप्त किया । प्रेमचंद जी आर्य समाज से बड़े प्रभावित हुए जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन था। इस साल की 20 साल की अवधि में उनकी कहानियों ने अनेक रंग देखने को मिले उससे पहले हिंदी में काल्पनिक, ऐतिहासिक और पौराणीक, धार्मिक रचनाऐ लिखी थी, प्रेमचंद जी ने हिंदी में यथार्थवाद की शुरुआत की ।

Munshi Premchand के लेखन की पहली रचना के अनुसारक उनकी पहली रचना उनके मामा पर लिखा व्यंग्य था । जो अब अनुपलब्ध है उनका पहला लेखन उर्दू उपन्यास असरारे मआबिद उपलब्ध है। प्रेमचंद जी का दूसरा उपन्यास हमखुरमा व हमसबाब जिस का हिंदी रूपांतरण 1907 में प्रकाशित हुआ । सोजे वतन के बाद प्रेमचंद जी नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी जमाना पत्रिका में दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई  ।

प्रेमचंद के अनुसार साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली एक कड़वी सच्चाई है। इस बात का स्पष्टीकरण उनके साहित्य में उजागर हुआ है । 1921 में उन्होंने महात्मा गांधी जी के कहने पर अपनी नौकरी छोड़ दी । कुछ समय मर्यादा पत्रिका का संपादन भार संमाला 6 साल तक माधुरी नाम पत्रिका का संपादन कार्यभार संभाला । 1930 में वे बनारस में अपना पत्र हंस शुरुआत किया और 1932 में जागरण नामक एक साप्ताहिक पत्रिका निकाली और उन्होंने लखनऊ में आयोजित अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखन संघ के राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की ।

उन्होंने मोहनदयाराम भवानानी की अजंता रिंगटोन कंपनी में कहानी लेखक की नौकरी भी की । 1934 में प्रदर्शित मजदूर नायक फिल्म की कथा लिखी । कांटेक्ट की साल भर की अवधि पूरी किए बिना ही 2 माह का वेतन छोड़कर वह बनारस आ गए क्योंकि आधुनिक मुंबई की हवा पानी उन्हें रास नहीं आई । 30 वर्ष तक लेखन कर जीवन में वह साहित्य को ऐसी विरासत सूख गई जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमित है। 

मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां एवं उपन्यास ।

कहानी संसार में अनमोल रतन 1907 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई। इन्होंने जून 1908 में सोजे वतन कहानी का प्रकाशन किया। जो 1910 में हरिपुर के जिला कलेक्टर ने जप्त कर उसे नष्ट किया। हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका दिसंबर के अंक में 1915 में सौत नाम से प्रकाशित हुआ ।

उनकी वजह कहानियों का विशाल संग्रह 8 भागों में मानसरोवर नाम से प्रकाशित है । इन्होंने अपने जीवन काल में 300 से अधिक कहानियां लिखी । 14 उपन्यास लिखें और 3 नाटक, 10 अनुवाद, 6 बाल पुस्तकें और हजारों प्रश्नों के लेख संपादकीय भाषण भूमिका पत्र आदि की रचना की लेकिन जो प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास से प्राप्त हुई । वह अन्य विधाओं से प्राप्त नहीं हुई । पग पग पर संघर्ष का सामना भी किया। प्रेमचंद जी के साहित्य में मार्मिकता और करुणा का समावेश है। प्रेमचंद्र जी की कहानी के विकास हमको तीन खंडों में  बांट सकते हैं।

1. 1916 से 1920 तक,

2. 1920 से 1930 तक, 

3. 1930 से 1936 तक ।

उपन्यास आवाज ए हक में 8 अक्टूबर 1903 से 1 फरवरी 1905 तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। प्रेमचंद जी एक सफल अनुवाद वादी भी थे । आजाद कथा उर्दू में (रतननाथ सरशार)  पिता के पत्र पुत्री के नाम (अंग्रेजी में जवाहरलाल नेहरू) उनके द्वारा रतननाय सरशार के उर्दू उपन्यास फसान ए आजाद हिन्द की हिन्दी अनुवाद, आजाद कथा बहुत मशहूर हुआ। 

Munshi premachnd के नाटक का विवरण कुछ इस प्रकार सेवा सदन 1918 में, प्रेमाश्रम 1921 वरदान 1921 रंगभूमि 1925 निर्मला 1923 प्रतिज्ञा कायाकल्प 1926 गबन 1931 कर्मभूमि 1932 गोदान 1936 मंगलसूत्र 1948 में पूरा हुआ। इनका ऐतिहासिक उपन्यास रूठी रानी था । 

बाल साहित्य में - रामकथा, कुत्ते की कहानी, जंगल की कहानी, दुर्गादास, प्रेमचंद जी ने अपने जीवन और कालखंड को पन्ने पर उतारा है । प्रेमचंद जी संप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमीदारी, कर्जखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद, पर आजीवन लिखते रहे ।

Munshi Premachnd ki Rachnayen.


मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं । Munshi Premachnd ki Best Rachnayen -

Munshi Premachnd की प्रमुख रचनाएं नवनीत प्रताप, पीयूष प्रताप, संकट हरी हम्मीर, भारत दुर्दशा, कली कोतुक क्रांति प्रभाव । नमक का दरोगा, दो बैलों की जोड़ी, पूस की रात, पंच परमेश्वर, प्रेम पच्चीसा, ईदगाह त्यागपत्र बूढ़ी काकी, बड़े घर की बेटी नशा, परीक्षा कजाकी सुजान भगत सिंह बलिदान आदि  रचनाएं थी । नाटक, कर्बला 1924, संग्राम 1923, और प्रेम की वेदी 1933 है, निबंध, विविध प्रसंग तीन भागों में, 2. कुछ विचार और 3 अनुवाद, प्रकाशित हैं। 

गोदान हिंदी का एक सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है, इनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र जो अधूरा रह गया था, उस अधूरे उपन्यास को हिंदी के साहित्यकार उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया था । उस उपन्यास को कलम के सिपाही का नाम दिया।  बंगाल के श्रेष्ठ उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने प्रेमचंद को उपन्यास का सम्राट्  कहाँ था। 

मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की विशेषताएं । Munshi Premachnd ka bhaw paksh.

मुंशी प्रेमचंद रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनकी रचनाओं में गरीब एवं शोषित का दर्द झलकता है । इनकी रचनाए ग्रामीण क्षेत्र इर्दगिर्द घूमती नजर आती है । उदाहरण के लिए उनकी मुख्य रचना, गोदान और गबन है। 

  • भाषा शैली, हिंदू और फारसी, उर्दू थी । 
  • भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता मिलती है। मुंशी जी की रचनाओं में गांधीवाद का भी प्रभाव झलकता है। 
  • साहित्य को समाज का दर्पण ही नहीं मशाल भी होना चाहिए ऐसा प्रेमचंद जी कहतें थे। 
  • प्रेमचंद जी की तुलना गॉर्की (रूस), लूसुन (चीन) से की जाती है
  • अनुवाद - टॉलस्टॉय की कहानियां गोल्सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल चांदी की डिबिया और न्याय थे। 
  • पत्र-पत्रिकाओ में संपादन - माधुरी 1922 हंस 1930 जागरण 1933 और मर्यादा। 
  • प्रेमचंद जी के विविध प्रसंग निबंध के तीन भाग अमृतराय द्वारा संपादित हुए। 
  • प्रेमचंद जी की कहानियां रचनावली  हिंदी उर्दू में डॉ कमल किशोर गोयनका, द्वारा प्रकाशित हुई। 
  • नाटकों में हमें देखने को मिलता है जैसे सेवासदन, मैं एक नारी के वेश्या बनने की कहानी का वर्णन। 
  • गोदान सबसे अधिक विदेशी भाषाओं में प्रकाशित होने वाला उपन्यास था । 
  • रगंभूमि - मैं एक अंधे भिखारी सुरदास को नायक बनाकर क्रांतिकारी बदलाव का रूप दिया। 
  • प्रेमाश्रम, हिंदी का पहला उपन्यास हे जी जिसने प्रेमचंद जी ने  किसानों के अवध आंदोलन को लेकर के लिखा गया था। 

मुंशी प्रेमचंद की विरासत । Munshi Premachnd ki virasat _

Munshi Premachnd ने जब कलम उठाई थी तब इनके पास कोई खास विरासत नहीं थी प्रेमचंद जी एक क्रांतिकारी रचनाकार भी थे सत्यजीत राय ने उनकी दो कहानियों से यादगार फिल्म बनाई । 1977 में शतरंज के खिलाड़ी 1981 में सद्गति इनके देहांत के 2 वर्ष बाद में सुब्रमण्यम ने 1938 में सेवा सदन उपन्यास पर फिल्म बनाई ।1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद जी की कहानी कफन पर आधारित ओकाऊरी कथा नाम से एक तेलुगु फिल्म बनाई, तेलुगु फिल्म को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 1966 में गोदान और गबन उपन्यास पर लोक पुरी फिल्म बनी । 1980 में उनकी उपन्यास से बना टीवी धारावाहिक निर्मला जो बहुत लोकप्रिय हुआ। 

मुंशी प्रेमचंद के पुरस्कार और सम्मान । Munshi Premachnd Awards -

Munshi Premachnd के सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई 1931 को 30 पैसे का एक डाक टिकट भी जारी किया गया ।  प्रेमचंद जी की 125 वीं सालगिरह पर सरकार की ओर से यह घोषणा की गई कि वाराणसी में लगे इस गांव में प्रेमचंद जी के नाम से एक स्मारक शोध एवं अध्ययन संस्थान बनाया जाएगा। गोरखपुर के जिस स्कूल में प्रेमचंद जी शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई । स्कूल के बरामदे में एक दीवार पर लेख लिखा है, जिसका चित्र दाहिने और भी दिया गया है। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का संग्रहालय भी है। 

यहां उनकी एक वृक्ष प्रतिमा भी है। प्रेमचंद जी की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर के नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया जिससे लोग अनजान थे। यह पुस्तक 1944 में पहली बार प्रकाशित हुई, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में इसके महत्व का अंदाजा लगाया जाता है कि इसे दोबारा 2005 में संशोधित करके प्रकाशित की गई। इस कार्य को करने के लिए उनके नाती प्रबोध कुमार ने अंजाम दिया। इनका अंग्रेजी व हसन मंजर का किया हुआ, उर्दू अनुवाद भी प्रकाशित हुआ। 

मुशी प्रेमचंद की मृत्यु । Munshi Premachnd death -

Munshi Premchand की मृत्यु एक लंबी बीमारी के चलते 8 अक्टूबर 1936 को इनका देहांत हुआ । देश के साहित्यकार उपन्यासकार इस दुनिया से अलविदा हो गए । उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले मुंशी जी इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ गए । 

अंत में यही कहना है कि इन्हीं की तरह गरीब व दलित वर्ग के लोगों के लिए हम भी चंद कदम बढ़ाते हैं तो,वह देश के लिए शिक्षा का अभियान होगा। अगर आपको आज की जानकारी Munshi Premachnd biography in hindi. अच्छी लगी ही तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताए ।। शिवा सिहंल, आबूरोड राजस्थान ।।

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