दादा नाथूराम वाल्मीकि का जीवन परिचय । Nathuram valmiki biography in hindi.

दादा नाथूराम वाल्मीकि का जीवन परिचय । Nathuram valmiki biography in hindi.


Nathuram valmiki biography in hindi.


Nathuram valmiki biography in hindi. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लेने और राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए संषर्घरत रहकर राष्ट्रीय मूल्यों की रक्षा व मातृ भूमि की सेवा के संकल्पों के साथ समाज उत्थान के अनेकों कार्य स्वतंत्रता सेनानियों ने जीवन पर्यन्त किये जो आज भी अविस्मरणीय है और चिरकाल तक रहेंगे। 

Nathuram valmiki भी उनमें से एक थे जिन्होंने कर्मठता, दानवीरता, योग्यता के बल अपनी पहचान कायम की । उस दौर छुआछूत अपने चरम पर था फिर भी देश की राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य से उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । जिन अमर बलिदानियों ने स्वतंत्रता हेतु अपने प्राणों की आहूति देकर माँ भारती की पावन वसुन्धरा को अंग्रेजी दास्तां के बन्धन से मुक्त कराकर गरिमामय और महिमा मण्डित करने का व्रत धारा था। वे भारत माता की शान है, आशाएं हैं। आन्दोलनों के पीछे उनकी प्रेरणा, उनकी कुर्बानी और उनकी जीत है। तो आइए जानते है  Nathuram valmiki biography in hindi.

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दादा नाथूराम वाल्मीकि का जीवन परिचय । Dada Nathuram valmiki biography in hindi.

आजादी की राह पर मशाल लेकर चलने वाले मुक्ति पथ की राह के तीर्थ यात्री स्वतंत्रता सेनानी 104 वसन्त पूरे कर वाल्मीकि समाज में अपने क्रान्तिकारी जीवन का लोहा मनवा चुके स्व. दादा नाथूराम वाल्मीकि का जन्म सन् 1901 ई. में मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड प्रान्त के जिला टीकमगढ़ में गरीब दलित परिवार में उटमालिया गोत्र में पिताश्री धिन्गे वाल्मीकि व माता श्रीमती गौरी दुलैया के घर दूसरी सन्तान के रूप में हुआ। दादा नाथूराम वाल्मीकि और इनकी बहन का लालन पालन इनकी बुआ श्रीमती कैकयी के सानिध्य में हुआ। 

देश सेवा, सामाजिक कार्य व एक अच्छे वक्ता के रूप में इनका जीवन टीकमगढ़ में एक महान व्यक्तित्व के रूप में आज भी जाना जाता है। इनके दो विवाह हुए पहली पत्नी श्रीमती मथुरा बाई व दूसरी पत्नी श्रीमती सुन्दर बाई थी। दोनों पत्नियों से चार पुत्र उदयप्रकाश, प्रकाशचन्द्र, अरविन्द कुमार, सत्येन्द्र कुमार व छः पुत्रियां तेजकुंवर, गीता, सरला, प्रभा, सविता, सन्ध्या हुई। आर्थिक तंगी व ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी के दंश से ग्रसित इनके माता-पिता का देहान्त इनके बचपन में ही हो गया था। 

दादा नाथूराम वाल्मीकि ने उस दौर की छुआछूत की नीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता का परिचय देते हुए अंग्रेजी दासता के खिलाफ आजादी का बिगुल बजा दिया । उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को हरिजन बस्ती में शरण देने के लिए साथ साथ देश की आजादी के लिए सदैव तत्पर रहते थे । अपने जीवन काल में कई बार जेल यात्रा भी कर चुके थे । Nathuram valmiki की शहादत को शत शत नमन .. ।

स्वतंत्रता आन्दोलन में दादा नाथूराम वाल्मीकि का योगदान | Swatantra Andolan me Nathuram valmiki ka yogdaan -

सन् 1925 में जब देश अंग्रेजों की गुलामी से जूझ रहा था तब प्रथमवार महात्मा गांधी द्वारा आन्दोलन के आहृान पर बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सेनानियों का नेतृत्व करते हुए दादा नाथूराम वाल्मीकि ने क्रान्ति की ज्वाला का बिगुल फूंक दिया। जिसके उपरान्त गांधी जी ने इन्हें आन्दोलन में भाग लेने पर प्रशस्ति पत्र, ताम्रपत्र व एक चरखा भी पुरस्कार स्वरूप दिया। मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड प्रांत के स्वतंत्रता संग्राम में Nathuram valmiki की पहचान दलित स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अलग ही थी।

 जब इन्होंनेे युवावस्था में कदम रखा तभी देश में आजादी की आग फैली हुई थी वहीं दूसरी ओर दलित समाज अपने हक-अधिकारों के लिए जूझ रहा था इन्होंनेे अपने स्वयं के निर्णय पर महात्मा गांधी जी के सानिध्य में गांधीवादी विचारधारा को अपनाकर दलितों के अधिकारों के साथ देश की आजादी में अपने बलिदान को न्यौछावर करने के लिए कूद पड़े। आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी को देखते हुए महात्मा गांधी ने इनको पत्र भेजा जिसमें इनकी सक्रिय भागीदारी के लिए कहा गया था। 

1932 में पुनः गांधी जी द्वारा शोषित, वंचित एवं दलित वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए इनको हरिजन सेवक संघ में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में सम्मानित किया गया। वर्ष 1942 में दलित वर्ग विशेषतः वाल्मीकि समाज की हड़ताल में विशेष रूप से इन्होंने बढ़-चढ़ कर सहयोग भी किया। वर्ष 1942-1947 तक Dada Nathuram valmiki ने क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभा रहे थे इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने सेनानियों को पकड़ने के लिए फरमान जारी किया जो भी क्रान्तिकारी मिले उसे पकड़ कर जेल में बंद कर दिया जाये। 

Freedom fighter nathuram valmiki death day.


हरिजन बस्ती में आंदोलनकारी नेताओ (Freedom fighter ) को देते थे शरण -

अंग्रेजों से बचने के लिए विभिन्न शहरों से आये बड़े-बड़े स्वतंत्रता सेनानियों ने इनके घर वाल्मीकि बस्ती में शरण ली क्योंकि अंग्रेजी सरकार का ध्यान छोटी बस्ती में नहीं जाता था। सभी सेनानियों के भोजन की व्यवस्था व रूकने की सारी व्यवस्था Dada Nathuram valmiki के घर में इनके परिवार के निर्देशन में हुई। इनके परिवार ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में इनके साथ पूरा सहयोग किया। स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न स्तरों पर हमेशा नाथूराम वाल्मीकि सक्रिय रहे इस दौरान क्षेत्र के सभी सेनानियों के साथ इनने कंधे से कंधा मिलाकर आन्दोलन में भाग लिया। 

आजादी मिलने के बाद भारत एवं मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इनको अपने पूरे जीवन को दाव पर लगाकर पूरी ईमानदारी के साथ देश की आजादी में अपना योगदान देने के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया जो आज भी इनके परिवार के पास एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में सुरक्षित है। कई बार इन्होंने वीर सेनानी के साथ अंग्रेजी हुकूमत की लाठीचार्ज का भी सामना करते हुए अनेकों आन्दोलनकारियों के साथ यें खुद भी जेल भरो आंदोलनों में जेल भी गये। 

भारत एवं मध्य प्रदेश सरकार ने इनको सम्मानित करते हुए निधि से भी सम्मानित किया जो पेंशन स्वरूप आपको आजीवन मिलती रही और इनकेे निधन के बाद इनकी पत्नी श्रीमती सुन्दर बाई को भी आजीवन मिलती रही। इसके अतिरिक्त इनके सम्मान में रेलगाड़ी सेवा, बस सेवा, यहां तक की अगर एक माह पहले सूचना देने पर इन्हें हवाई जहाज सेवा भी बिल्कुल मुफ्त दी जाती थी। जिला प्रशासन द्वारा इन्हें प्रत्येक वर्ष स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस व राष्ट्रीय पर्व पर शाॅल एवं श्रीफल के साथ भी सम्मानित किया जाता था। 

स्वतंत्रता संग्राम के बाद दादा Dada Nathuram valmiki ने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी जिसमें टीकमगढ़ के दलितों के कोई बाल नहीं काटता था, ना ही कोई इन्हें चाय पिलाता था, बच्चों को स्कूल पढ़ने नहीं दिया जाता था, कुआं - तालाबों से पानी नहीं लेने दिया जाता था, पिछड़ों की ऐसी दुर्दशा देख दलितों को एक साथ लेकर इस मानवीय कुरीतियों का कड़ा विरोध किया। वाल्मीकि समाज में समाज सुधार के लिए काफी काम किया जिसमें वाल्मीकि समाज के बहुत से लोगों की सरकारी नौकरी भी लगवायी, वाल्मीकि समाज के रहने के लिए वाल्मीकि बस्ती हेतु प्रशासन से जमीन की मांग की और वहां वाल्मीकि बस्ती की स्थापना कराई।

 समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए प्रशासन से प्राथमिक विद्यालय के लिए जमीन की मांग की ओर जमीन मिलने पर शासकीय प्राथमिक विद्यालय की नींव रख वाल्मीकि समाज के बच्चों के साथ-साथ हर गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा दिलाने का कार्य करने के साथ ही शिक्षा व स्वास्थ्य की जागरूकता के लिए पैदल चलकर अन्य जिलों में भी क्रान्ति का बिगुल फूंका।

नाथूराम वाल्मीकि का देहांत । Nathu ram valmiki death day -

टीकमगढ़ के वयोवृद्ध, दलित वीर यौद्धा दादा नाथूराम वाल्मीकि के लिए 6 नवम्बर 2004 का सूरज हमेशा के लिए असत हो गया। इनके निधन से परिवार सहित दलितवर्ग में गमगीन माहौल पैदा हो गया। इनकी शवयात्रा पूरे नगर टीकमगढ़ में निकाली गई जिसमें क्षेत्र सहित जिला प्रशासन की मौजूदगी में पूरे राजकीय सम्मान के साथ हजारों लोगों ने नम आंखों से स्वतंत्रता सेनानी को विदाई दी। 

जिला प्रशासन ने इनके परिवार के साथ मिलकर टीकमगढ़ में ढ़ोंगा टंकी के पास स्वतंत्रता सेनानी दादा नाथूराम वाल्मीकि की मूर्ति स्थापना कराई। पौत्रगण जितेन्द्र, मनीषचन्द्र, सुदर्शन, पुनीत, प्रदीप, पुष्पेन्द्र, पवन, विक्की, नीलेश, मोन्टी के साथ परपौत्रगण येदांत व दृष्यम अपने दादा श्री स्वतंत्रता सेनानी नाथूराम वाल्मीकि जी के पद्चिन्हों पर चलकर उनका अनुसरण करते हैं। यहां प्रतिवर्ष इनकी पुण्यतिथि पर मेधावी छात्र/छात्राओं एवं समाजसेवियों के सम्मान में क्षेत्र के आस-पास से मेधावी एवं समाजसेवी अधिक संख्या में पहुंचते हैं, कार्यक्रम का आयोजन दादा नाथूराम वाल्मीकि के परिवार सहित समाज के अन्य गणमान्य लोगों की मौजूदगी में किया जाता है जिसमें देशभक्ति गीत, श्रद्धांजलि सभा, अतिथियों का सम्मान, उद्बोधन, छात्रों का सम्मान समारोह किया जाता है।

 ऐसी महानुभूतियां रोज-रोज पैदा नहीं होती लम्बे अन्तराल के पश्चात ही जन्म लेती हैं। वें देश काल और परिस्थितियां के अनुसार राष्ट्र और समाज को नई दिशा और नेतृत्व प्रदान करती हैं। धन्य हैं वह माँ भारती जिसकी कोख से अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने जन्म लेकर इसकी धरा को ब्रिटिश सम्राज्य से आजाद कराकर एक नया अध्याय रचा। हमारे भारत देश में भक्तों, शहीदों, राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा रही है। हमारे विद्यालय में वर्तमान पीढि़यों के लिए देश भक्तों का सच्चा इतिहास उपलब्ध नहीं है हमारी वर्तमान पीढ़ी को राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय एकता तथा देश प्रेम की प्रेरणा प्राप्त करने की आवश्यकता है। इससे छात्रों को तथा युवक-युवतियों को प्रेरणा मिलेगी उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना उत्पन्न होगी।

लेखक - आशीष भारती (कवि/समीक्षक)

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