सरदार उधम सिंह जीवन परिचय । Sardar Udham singh biography in hindi.

सरदार उधम सिंह जीवन परिचय । Sardar Udham singh biography in hindi.


Sardar Udham singh biography in hindi.


Sardar Udham singh biography in hindi. भारत माता के सौभाग्य, पंजाब की मिट्टी के बहादुर शेर सरदार उधम सिंह पर लोग सदियों  तक  नाज करेंगे। अपने आप को राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से परिचित करवाने वाले उधम सिंह वह दहकता अंगार थे, जो आतताई अंग्रेजों के घर में घुसकर  हुंकार करने वाले बहादुर पंजाबी योद्धा थे । वे शेर - ए - पंजाब थे । 

उन्होंने सन 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ( Jaliyanvala bag hatyakand - 1919 ) का बदला लेने के लिए सन 1940 में अफगानिस्तान में जनरल डायर की हत्या कर दी । देशभक्ति की भावना के ओतप्रोत विचार धारा वाले Sardar Udham singh ने कई देशों की यात्रा की । 

विदेशो वे Fighter for freedom कहा जाता था । वे महान देशभक्त थे । आज भारत में उनके सम्मान में उत्तरप्रदेश एवं राजस्थान में Udham singh nagar नाम से गांव बनाया गया । वही फ़िल्म इंडस्ट्री में उनके जीवन को फिल्मी पर्दे पर उतारा था । तो चलिए जानते है - Sardar Udham singh biography in hindi.

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सरदार उधम सिंह जीवन परिचय । Sardar Udham singh biography in hindi.

सरदार उधम सिंह ( Sardar Udham singh ) का जन्म सिख समुदाय में 26 दिसंबर 1899  को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ। उनके माता एवं पिता का नाम  नारायण कौर उफ्र नरेन कौर एवं श्रद्धा टेहल सिंह जम्मू  था । उनके पिता रेलवे क्रॉसिंग पर वॉचमैन थे एवं माँ गृहिणी थी । 

सरदार उधम सिंह ने बचपन में अपने माता पिता को खो दिया। परिवार से किसी भी प्रकार का सहयोग ना मिलने के कारण अपने छोटे भाई मुक्ता सिंह को साथ लेकर गांव - गांव में भटकने को विवश एक दिन यह दोनों बालक अमृतसर के पुतलीघर के अनाथ आश्रम में पहुंच गए । 

आपने अपनी शिक्षा दीक्षा और बढ़ई गिरी कार्य की शुरूआत वहीं से की। सन 1917 में अपने छोटे भाई मुक्ता सिंह की मौत से गहरा सदमा पहुँचा । उन्होंने सन 1918 में मेट्रिक की परीक्षा पास करके 1919 में खालसा अनाथालय को छोड़ दिया । सरदार उधम सिंह का वास्तविक नाम शेर सिंह था मगर वे अनाथालय में उन्हें उधम सिंह कहा जाता था जो आगे चलकर इसी नाम से प्रसिद्ध हुए ।

सरदार उधम सिंह के  हृदय में आग के शोले उस दिन से धधकने लगे थे जब वे 1919 के जलियांवाला बाग अमृतसर के चश्मदीद गवाह बने। यह वह समय था जब पंजाब अपनी संतोषप्रद स्थिति में नहीं था किसान पंजाब सरकार के अत्यधिक कृषि करो से परेशान थे । अमृतसर स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधियों का भी गढ़ बन गया।


सरदार उधम सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां । Sahid udham singh krantikari gatividhiyan -

द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी थी। युद्ध खत्म हुआ पर भारत को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ।  इंडियन ला एक्ट जिसे रौलट एक्ट के नाम से जाना जाता है भारत में लागू किया गया। जिसका पुरजोर विरोध हुआ महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाते हुए सत्याग्रह करने का तरीका ढूंढ निकाला।

बैसाखी का दिन 13 अप्रैल 1919 फसल कटकर घर आने के चाव में मनाया जाने वाला त्यौहार जिसमें अमृतसर के निकटवर्ती गांव तथा शहर के लोग एक मेले के रूप में इकट्ठे हुए। हर धर्म जाति के लोगों का उत्साह देखते ही बनता था । इसी समय लोगों के हरमन प्रिय नेता महात्मा गांधी, डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू तथा डॉक्टर सत्यपाल जेल में बंद थे। लोग इस गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे। 

जलियांवाला बाग में  हजारों लोगों की भीड़ थी लोग अपने नेताओं के भाषण सुन रहे थे कि उसी वक्त जलियांवाला बाग के अंदर जाने वाली एक छोटी सी गली जो भीतर जाने का एकमात्र रास्ता थी में से उस समय के सिपाहियों की एक टुकड़ी ने प्रवेश किया तोप बीड़ दी गई ताकि लोग बाहर ना आने पाए गोलियां चली भगदड़ मची, कोहराम मच गया । संध्या रक्त रंजित हो चली थी सरदार उधम सिंह ने ब्रिगेडियर जनरल ई एच डायर को चिल्लाकर लोगों पर गोलियों की बौछार करने का निर्देश देते हुए सुना। 

अपनी आंखों के सामने मौत का तांडव होते भी देखा । लोगों को वहां से ना तो हिलने की पूर्व चेतावनी दी  गई ,ना ऐसा मौका ही दिया कि वह संभल पाए । सैकड़ों निर्दोष लोगों के प्राणों को लेते हुए भी आतताई को जरा दया ना आई। उस समय के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओडवायर ने टेलीग्राम देकर जनरल डायर के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा," योर एक्शन करेक्ट, लेफ्टिनेंट गवर्नर अप्रूव्ज।"

 हत्याकांड की खबर देश विदेश में आग की तरह फैल गई। आदरणीय सुभाष चंद्र बोस ने एक बड़ी सभा में हाथ में पिस्तौल लेकर शपथ ली कि ब्रिटिशों को भारत भूमि से बाहर किया जाएगा। हंटर कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार कुल 1650 गोरिया चली और 1516 लोग मारे गए। जलियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान  उस नृशंस हत्याकांड की गवाही आज भी दे रहे हैं। 

Jaliyanvala bag hatyakand.


जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला । Jaliyanvala bag hatyakand -

जलियांवाला बाग के अंदर बना हुआ कुआं उस दर्दनाक स्याह रात का चश्मदीद आज भी वहीं है जो उस सायं लोगों की लाशों से भर गया था। यह सारे दृश्य सरदार उधम सिंह की आंखों में कैद हो गए और मन  चीत्कार कर उठा। उस दिन यह बालक केवल 19 वर्ष का युवक था और उसका मित्र भगत सिंह केवल 12 वर्ष का जिन्होंने ये भयानक और क्रूर दृश्य अपनी आंखों से देखें।

यह वह घटना थी जिसके साथ दमन प्रक्रिया शुरू हुई और पंजाब के छैल छबीले नौजवानों के होठों पर पगड़ी संभाल जट्टा जैसे गीत तैरने लगे थे। यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि पंजाब सरकार ने इसे गंभीरता से बंद करने पर विचार किया।

Sardar udham singh ने उसी दिन बदला लेने की ठान ली और इसी शपथ को हर साल बैसाखी के दिन तब तक दोहराते रहे जब तक अपना कार्य पूरा नहीं कर पाए। इस घटना ने भारत को सरदार उधम सिंह, सरदार भगत सिंह जैसे वीरों की जननी बना दिया। रविंद्र नाथ टैगोर जैसे महाकवि ने सर की उपाधि ठुकरा दी।

सर माइकल ओड वायर, गवर्नर पंजाब, ब्रिगेडियर जनरल डायर, ब्रिटिश सेना अधिकारी जिसने गोली चलाने का हुक्म दिया तथा लॉर्ड जेटलैंड, भारत के स्टेट सचिव, इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी थे। सरदार उधम सिंह के मन में जिस पीड़ा के बीज बोए गए। वह धीरे-धीरे बृहद आकार वृक्ष का रूप ले रहे थे। मुजरिम का पीछा करते-करते ऊधम सिंह ने कई विदेश यात्राएं की कभी दक्षिण अफ्रीका, कभी अमेरिका तो कभी इंग्लैंड । लाहौर में आर्म्स एक्ट के तहत जेल में भी रहे। 

सरदार भगत सिंह की फांसी के समय भी वे जेल में ही बंद थे। कुछ समय तक सरदार उधम सिंह ने अमृतसर में दुकान भी चलाई। सन 1933 में  सरदार उधम सिंह जर्मनी पहुंचे और फिर बर्लिन से लंदन। अपने संकल्प पूर्ति के लिए  इंजीनियरिंग डिप्लोमा में भी प्रवेश लिया। इस दौरान उन्हें कई नाम बदलने पड़े। उदे सिंह, शेर सिंह, फ्रैंक ब्राजील, राम मोहम्मद सिंह आजाद।  वे दृश्य जो कभी उनके मन व आंखों में गढ़ गए थे, कभी धूमिल नहीं हुए। उनके लिए हर रात हत्याकांड की रात होती थी। आंखों के सामने विफरते चेहरे, रक्तरंजित लाशों के अंबार। जनरल डायर की सामान्य मौत  हो गई। सर माइकल ओड वायर, लॉर्ड जेटलैंड  जिंदा थे और उनका पीछा कर रही थी । 

शहीद उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कब और कहा की ?

 सरदार उधम सिंह के रूप में रिवाल्वर तैयार थी, अवसर की तलाश थी। जो बरसो से मिल नहीं रहा था । सन 1940 रॉयल  सेंट्रल एशियन सोसायटी तथा ईस्ट इंडियन एसोसिएशन की तरफ से अफगानिस्तान पर सेमिनार रखा गया था। लॉर्ड जेटलैंड इस सेमिनार के अध्यक्ष थे। जिसने इसका उद्घाटन करना था। इस अवसर पर  जेटलैंड  ने लगभग 15 मिनट का भाषण दिया। उसके बाद माइकल ओडवायर ने आकर लोगों को हंसाने के लिए चुटकुले सुनाए और जलियांवाला हत्याकांड पर भी मजाकिया अंदाज में बात की। 

Sardar udham singh उस वक्त उसी ट्यूडर रूम में मौजूद थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड के सभी दृश्य उनकी आंखों के सामने तैरने लगे। उनकी आंखों से मानो खून उतरने लगा। ओड वायर अपनी कुर्सी पर आकर बैठ चुके थे । सरदार उधम सिंह ने अपनी जेब से रिवाल्वर निकाला और ओड वायर को वहीं ढेर कर दिया। दूसरी गोली जेटलैंड को लगी। फिर लॉर्ड लेमिंगटन तथा लुईस डेज भी गिरे।

ऊधम सिंह आगे बढ़े और  इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए गए। जनरल डायर सर माइकल ओड वायर की पहली गोली से ही मौत हो गई। बाकी घायल हुए। केक्स्टन हॉल के  सारे दरवाजे अंदर से बंद कर दिये गये। गवाहों की गवाहियां लेकर उनको घर जाने दिया गया । गोली चलाने वाले हिंदुस्तानी शख्स  सरदार उधम सिंह को पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया ।

अगले दिन उसे बो स्ट्रीट पुलिस कोर्ट में कत्ल के इल्जाम में पेश किया गया। भारतीय नेताओं ने हमले की निंदा की। सरदार उधम सिंह की  तरफदारी किसी ने नहीं की, भारतीयों ने भी नहीं। केवल जर्मनी ने उसे फाइटर फॉर फ्रीडम कहा। जर्मनी के अखबारों में इस भारतीय योद्धा की तारीफ की गई। जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिक्र भी किया गया महात्मा गांधी के हरिजन अखबार में भी सरदार उधम सिंह के विरुद्ध बयान छपा तो लोगों को निराशा हुई।  

सरदार उधम सिंह को फाँसी कहाँ और किस देश में दी गई थी ?

Sardar udham singh पर 1 मार्च को मजिस्ट्रेट दुम्मट की कचहरी में मुकदमा पेश हुआ। मिस्टर एवनज प्रॉसीक्यूशन की तरफ से उधम सिंह ने केक्स्टन हाल में दिए बयान को दोहराया। उधम सिंह ने कहा,"मैं जो कुछ कीता उस दा मेनू कोई पछतावा नहीं। एह मैं अपना फर्ज निभाया है। मैं जो कुछ कीता है। अपने प्यारे देश लई कीता है"

 तारीखें पड़ती रही। उधम सिंह को चाहने वालों ने  पौंड इकट्ठा करके अपील करनी चाही पर उधम सिंह फांसी के फंदे को चूमने के लिए तैयार बैठा था। अपील करने के सी उसने मना कर दिया। 31 जुलाई 1940 की सुबह फांसी का पैगाम लेकर आई। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए वह भारत मां का बहादुर लाल अपने देशवासियों के लिए सदा की नींद सो गया। सो क्या गया । वह सदियों के लिए अमर हो गया। 

भारत सरकार तथा पंजाब सरकार के निरंतर प्रयासों से सरदार उधम सिंह ( Shahid udham singh ) के अवशेष 19 जुलाई  सन 1974 में पालम हवाई अड्डे पर भारतीय राष्ट्रीय नेताओं ने प्राप्त किए। 23 जुलाई तक दिल्ली में रखे गए, फिर सुनाम से चंडीगढ़ होते हुए  उस देशभक्त की अस्थियों को पवित्र गंगा जी में प्रवाहित कर दिया गया। हजारों लोगों ने पंक्ति बंद होकर इस भारतीय सपूत को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी। सरदार उधम सिंह भारत के विशेषकर पंजाबियों के ऐसे चमकते सितारे हैं जो सदियों तक लोगों को देश भक्ति, धार्मिक सहिष्णुता और राष्ट्र की बलिवेदी पर स्वयं को न्योछावर करने की प्रेरणा देते रहेंगे। जय हिंद।

               डॉ. रमा रानी, जालंधर, पंजाब।

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