भगत सिंह का जीवन परिचय । Bhagat singh Biography in hindi.
Bhagat singh biography in hindi. हमारे देश में ऐसे कई महान स्वतंत्रता सेनानी हुए जिन्होंने अपनी मातृभूमि के अपना सब कुछ त्याग दिया । अपनी युवा अवस्था में ही अपनी माँ भारती के लिए शहीद हो गए । वे हसते हसते फाँसी चढ़ गए । जी हां आप सही समझे हम बात कर रहे शहीद ए आजम भगतसिंह की ।
Bhagat singh एक ऐसे क्रांतिकारी हुए थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड व लाला लाजपतराय की मौत का बदला के लिए अंग्रेजी अधिकारी को मारने के उद्देश्य से असेम्बली में बम फेंका था । फलस्वरूप उन्हें गिरफ्तार करके उन पर मुकदमा चलाकर फाँसी की सजा सुनाई ।
भगतसिंह को फाँसी देने के बाद देशभर में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आक्रोश फैल गया । भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी थे । चंद्रशेखर आजाद पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया । उन्होंने Mahatma Gandhi का भी सहयोग दिया । तो चलिए जानते है क्रांतिकारी भगतसिंह का जीवन परिचय । Bhagat singh biography in hindi. -
Also read
◆ मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय । Madan mohan malviya biography in hindi.
◆ सुभाष चंद्र बोस की जीवनी । Subhash chandra bose biography in hindi.
भगत सिंह का जीवन परिचय । Bhagat singh Biography in hindi.
Bhagat singh का जन्म पंजाब के जरंवाला तहसील में 28 सितंबर 1907 में सिख समुदाय में हुआ । उनके माता पिता का नाम विद्यावती एवं सरदार किशन सिंह सिन्धु था । वे आठ भाई बहन थे जिनके नाम रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर एवं शकुंतला कौर ।
भगतसिंह का पूरा परिवार देश के लिए गदर पार्टी को समर्पित था । इनके जन्म के समय पिता किशन सिंह सहित 3 भाई जेल में थे । भगतसिंह के चाचा अजीत सिंह अंग्रेजी शासन से आक्रोशित थे । वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे । उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों की एसोसिएशन का निर्माण किया था । उन पर 22 से अधिक मुकदमे दर्ज होने कारण उनसे बचने के लिए ईरान जाना पड़ा ।
भगतसिंह का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा । Bhagat singh earliest life, education.
बचपन से ही भगतसिंह पर उनके चाचा अजीत सिंह का बहुत प्रभाव था । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल से हुई थी । उस समय भगत सिंह करीब 12 वर्ष के थे जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था । इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल में 12 मील पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे । इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं के क्रांतिकारी किताबें पढ़कर सोचते थे । देश की आजादी के लिए क्या किया जा सकता है, तथा समय के साथ-साथ उनका स्वभाव क्रांतिकारी बनता गया ।
उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया । उन्ही कॉलेज के दिनों में उनका परिचय भगवती चरण, सुखदेव थापर के साथ साथ कुछ अन्य क्रांतिकारी लोगो से हुआ था । उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़कर मातृभूमि की रक्षा के लिए आजादी की लड़ाई में कूद गये । उन दिनों वे नुक्कड़ नाटको का आयोजन करते है । वे एक अच्छे एक्टर व लेखक थे । घरवालों ने शादी की बात चलाई तो उन्होंने इनकार कर दिया ।
उन्हें फ़िक्र हैं हर दम नयी तर्ज-ए-जफ़ा क्या है,
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है |
दहर से क्या खफा रहें, चर्ख का क्या गिला करें,
सारा जहाँ अदु सही, आओ ! मुकाबला करें ।
भगतसिंह की स्वतंत्रता की लड़ाई । Bhagat singh ka itihas kya hai.
युवा अवस्था में भगतसिंह घर छोड़कर लोगों से परिचित होने लगे । उन्होंने 'कीर्ति' नामक पत्रिका में काम किया । लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से अच्छे अच्छे लेख लिखते थे । उनके इस रवैये को देखते हुए सन 1926 में नौजवान भारत सभा ने उन्हें सेक्रेटरी के रूप में नियुक्त कर दिया । 1928 में उन्होंने चन्द्र शेखर आजाद की पार्टी ( HSRA ) हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए ।
30 अक्टूबर 1928 को जब साइमन कमीशन भारत आया तो भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध किया । पंजाब में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में घोर विरोध किया । जब लाला लाजपतराय लाहौर रेलवे स्टेशन पर “साइमन वापस जाओ” का नारा लगा रहे थे ।. जिसके बाद वहां अंग्रेजों द्वारा लाठी चार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हुए और फिर लाला जी म्रत्यु हो गई ।
इस घटना से भगतसिंह क्षुब्ध रह गए । उनके मन में क्रांति की ज्वाला भड़कने लगी । उन्होंने बदला लेने के उद्देश्य से जिम्मेदार अंग्रेजी अधिकारी स्कॉट को मारने ठानी । लेकिन हुआ यूं कि सांडर्स मारा गया था जो असिस्टेंट था । इस प्रकार से अंग्रेजी पुलिस उनके पीछे पड़ गई । पुलिस ने हर तरफ जाल बिछा दिया । खुद को बचाने के लिए Bhagat singh लाहोर से भाग गए । अपना वेश बदलकर खुद को अंग्रेजी पुलिस से बचाते रहे ।
शहीद भगतसिंह की कहानी । Bhagat singh story in hindi.
अब एक तरफ पुलिस उनके पीछे थी वही दूसरी तरफ भगतसिंह ने क्रांतिकारी साथियों सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, राजदेव के साथ मिलकर एक बड़ा धमाका करने का मन बना रहे थे । उन्होंने बहरी अंग्रेजी सरकार को अपनी आवाज सुनाने का फैसला कर लिया था ।
इस धमाके के उन्होंने धन जुटाने का प्रयास किया । एक अंग्रेजी खजाने को लूटा जो इतिहास में काकोरी कांड से पथप्रदर्शक रामप्रसाद बिस्मिल भी साथ थे । अपनी समुचित व्यवस्था के साथ उन्होंने सोचा कि कमजोरो की तरह अंग्रेजी पुलिस से भागेंगे नहीं । इस धमाके के बाद स्वयं को गिरफ्तार करवाएंगे ।
आखिरकार उस जमाने में काउंसलिंग हाउस क्योंकि आज का संसद भवन है, का शुमार दिल्ली की बेहतरीन इमारतों में किया जाता था । काउंसलिंग हाउस में सेफ्टी बिल पेश करने से 2 दिन पहले यानी 6 अप्रैल 1929 को Bhagat singh और Batukeshvar datt काउंसलिंग हाउस के असेंबली हाउस गए थे । ताकि यें जायजा लिया जा सके, कि पब्लिक गैलरी किस तरफ है और किस जगह से वहां बम फेंका जाए ।
भगत सिंह ने एक विदेशी वर्ल्ड हेल्थ लगाई हुई थी जिसका उद्देश्य था कि भगत सिंह की ऊंचाई कम काठी और सुंदर व्यक्तित्व की वजह से नहीं हमें पहले से ही ना पहचान लिया जाए रिपोर्ट को लाहौर के एक दुकान से खरीदा गया था । सदन का एक भारतीय सदस्य उन्हें गेट पर पास दे कर गायब हो गया था । उस समय दर्शक लोगों से खचाखच भरी हुई थी ।
भगत सिंह नहीं चाहते थे कि इसमें किसी प्रकार से खून खराबा न हो और ब्रिटिश सरकार तक उनकी आवाज बुलन्द हो जाए हालांकि शुरुआत में उनके दल के सब लोग ऐसा नहीं सोचते थे पर अंत में सभी ने भगत सिंह एवं बहुकेश्रर दन्त का नाम चुना गया ।
इसी प्लानिंग के साथ 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश असेंबली हॉल में बम फेंक दिया । यह बम जनहानि वाला नहीं बल्कि आवाज करने वाला था । इस धमाके के बाद उन्होंने पर्चे बाटते हुए इंकलाब जिंदाबाद के नारे भी लगवाये । इस घटना के बाद अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया । और इनके साथियों सुखदेव, राजगुरु एवं बटुकेश्वर दत्त को भी पकड़ लिया ।
शहीद भगत सिंह की डायरी । Bhagat singh ki jel ki dayari.
Bhagat singh जेल में करीब 2 साल रहे । इस अवधि में उन्होंने लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त किए । जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा । उनके लेख सगे संबंधियों को लिखें गये ।
भगत सिंह व उनके साथियों ने जेल में भूख हड़ताल की । उन्होंने अन्न जल त्याग दिया जिसे उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने अपने प्राण ही त्याग दिए थे ।
भगत सिंह ने माना कि उनकी आजादी घर की चार दीवारों तक ही सीमित है तो उन्हें दुख हुआ । Bhagat singh बार-बार कहते थे कि अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए हम मांगने के बजाय रण करना होगा ।
भगत सिंह जेल नोटबुक सुप्रसिद्ध विचार को और दर्शकों के विचारों को लेकर उनकी पड़ताल का एक नया माल खुलती है । एक जिज्ञासु और पढ़ने की बुक रखने वाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध भगत सिंह ने जेल के दौरान जाने-माने लेखकों की पुस्तकों को बड़ी संख्या में एकत्रित दिया था । तथा पूरी गहनता और जिज्ञासा के साथ उनका अध्ययन करने में जुट गए थे, उन्होंने फांसी के अंतिम दिन भी भगवत गीता का पाठ किया था, भगवत गीता के श्लोक अधूरे रह जाने के चलते उन्होंने कुछ समय की और मांग की थी ।
यह मेरा अहंकार नहीं हैं, मेरे दोस्त । यह मेरे सोचने का तरीका है जिसने मुझे नास्तिक बनाया है । ईश्वर ने विश्वास और रोज-रोज की प्रार्थना को मैं मनुष्य के लिए सबसे स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूं, मैंने उन नासिकओं के बारे में पढ़ा है । जिन्होंने सभी विपदाओ का बहादुरी से सामना किया ।
उनका एक लेख 27 सितंबर 1931 को लाहौर के द पीपल नामक पेपर में प्रकाशित हुआ था जिसे जेल में ही लिखा गया था I स्वतंत्रा सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930 - 31 के बीच लाहौर के सेंट्रल जेल में कैद थे । वह एक धार्मिक व्यक्ति थे । जिन्हें यह जानकर बहुत कष्ट हुआ कि भगत सिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं था ।
भगत सिंह को फांसी क्यों दी गई थी ? Bhagat singh, Rajguru, sukhdev ko fasi kyo di gayi.
भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सैंडल की गोली मारकर हत्या कर दी थी । जिस पर भारत के वायसराय लॉर्ड इवनिंग ने इस मुकदमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया जिसने तीनों को फांसी की सजा सुनाई थी । 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में ही फांसी दे दी गई । इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान साथी सुखदेव को भी दोषी माना गया ।
असेंबली में बम फेंकने के मामले में Bhagat singh को फांसी की सजा सुनाई थी । न्यायधीश जी. सी. हिल्टन ने 24 मार्च के दिन तय की थी । लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए । जिसके चलते इन तीनों क्रांतिकारियों को एक साथ तय तिथि से 11 घंटे पहले यानी 23 मार्च शाम साढ़े सात बजे को फांसी दे दी गई थी । फांसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों क्रांतिकारियों ने मस्ती से गीत गाए थे -
" मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला माए रंग दे बसंती चोला"......
2022 में भगत सिंह की जयंती । Bhagat singh ki jayanti kab manai jati hai ?
भारतीय इतिहास में 28 सितंबर 1960 का दिन कोई सामान्य दिन नहीं था । क्योंकि इस दिन भगतसिंह जैसे Freedom fighter सपूत का जन्म हुआ था । इस दिन भारतीय इतिहास में गौरव नए दिन के रूप में माना जाता है । अविभाजित भारत की जमीन पर एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जो शायद इतिहास लिखने के लिए ही पैदा हुआ था । जिला लायलपूरा ( वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है ) के गाँव बावली में क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था ।
इनके क्रांतिकारी स्वभाव के चलते उन्होंने अपनी आवाज बुलंद करने के उद्देश्य से 8 अप्रैल 1929 में केंद्रीय असेम्बली में अपने क्रांति कारी साथी सुखदेव, राजगुरु व बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर बम फेंक कर स्वयं को गिरफ्तार करवा दिया । अंग्रेजों ने लाहौर षडयंत्र नाम मुकदमा दायर करके भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव को फाँसी एवं बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई । भगतसिंह को 23 मार्च 1931 को फाँसी दी गई । इसी दिन को प्रतिवर्ष श्रद्धाजंलि दी जाती है ।
इसी प्रकार प्रतिवर्ष 28 सितंबर को भगतसिंह की जयंती के रूप में मनाई जाती है । इस दिन ( Bhagat singh jayanti ) महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी भगतसिंह को याद किया जाता है । भगत सिंह ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया तथा भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।। नैना सोढ़ी ।।