दुर्गावती देवी / दुर्गा भाभी का जीवन परिचय । Durga Bhabhi biography in hindi.

दुर्गावती देवी / दुर्गा भाभी का जीवन परिचय । Durga Bhabhi  biography in hindi.


Durga Bhabhi  biography in hindi.


Durga Bhabhi  biography in hindi. देश आज जब अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है तो कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि समय के बहाव के साथ-साथ लोगों की स्मृति से वे नाम फीके पड़ने लग गए हैं जिन नायक-नायिकाओं ने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी। 

आज बात उस जीवंत महिला की जिसने अपने देश को औपनिवेशक शासन से स्वतंत्रत करवाने के लिए खतरनाक क्रांति का रास्ता चुना और स्वतंत्रता के बाद उसने अपनी मृत्यु तक गुमनामी भरा जीवन काटा और भारत की भावी पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए शिक्षा की ज्योति जलाई। ऐसी ही एक नायिका जिसको प्यार से दुर्गा भाभी ( Durga Bhabhi ) के नाम से जाना जाता है। जो सचमुच क्रांतिकारियों के लिए शक्ति का प्रतीक थी। तो चलिए जानते है - Durga Bhabhi  biography in hindi.

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दुर्गा भाभी का जीवन परिचय । Durga Bhabhi  biography in hindi.

वह एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थी। जिनका असली नाम दुर्गावती देवी था।  वह उन साहसी महिला क्रांतिकारियों में से एक थी जिन्होंने सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश राज को चुनौती दी। आपने कई बार क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सरकार के चुगल से अपनी जान की भी परवाह न करते हुए छुड़ाया और उनकी सहायता की। आप हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' (HSRA ) के सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी। इसलिए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' ( HSRA ) के सदस्यों ने उन्हें भाभी के नाम से संबोधित किया और दुर्गा भाभी के नाम से लोकप्रिय हुई। दुर्गा भाभी सबसे प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थी। दुर्गा भाभी को भारत की आयरन लेडी भी कहा जाता है।

सचमुच वो माँ दुर्गा का ही अवतार थी। जिन्होंने पहले माँ दुर्गा की तरह ही ब्रिटिश नामक दैत्यों के साथ युद्ध किया और बाद में माँ सरस्वती की तरह शिक्षा के प्रचार प्रसार में अपना योगदान दिया।

दुर्गा भाभी का जन्म कब और कहा हुआ । Durgavati devi biography in in hindi.

दुर्गा भाभी का जन्म सात अक्टूबर 1907 को शहजादपुर ग्राम (अब कौशाम्बी जिला में) इलाहाबाद में (अब के प्रयागराज में) गुजराती ब्राह्मण पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। बचपन में ही जब वो छोटी थी तो उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उनके पिता पंडित बांके बिहारी इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में एक अदालत अधिकारी थे, और उनके दादा महेश प्रसाद भट्ट एक पुलिस अधिकारी थे। दोनों ब्रिटिश साम्राज्य की सेवा कर रहे थे। 11 वर्ष की आयु में, उनका विवाह एक सम्पन्न परिवार में श्री शिवचरण दास वोहरा के 15 वर्षीय पुत्र श्री भगवती चरण वोहरा से हुआ। 

परिवार मूल रूप से आगरा का रहने वाला था। लेकिन बाद में वे  आगरा से लाहौर में बस गए थे। दूर्गा भाभी के ससुर रेलवे के उच्च अधिकारी थे साम्राज्य के प्रति उनकी भक्ति के लिए, शिवचरण दास वोहरा को राय साहब की उपाधि से सम्मानित किया गया था। शादी के बाद आप के ससुर श्री शिवचरण दास वोहरा ने आपको 40,000 रुपये और आप के पिता श्री पंडित बांके बिहारी जी ने 5,000 रुपये संकट के समय काम आने के लिए दिए थे। दुर्गा भाभी ने अपने रुपये से कई बार क्रांतिकारियों की सहायता भी की। इस प्रकार अपने संगठन के लिए उन्होंने तन, मन और धन से सेवा की।

दुर्गा भाभी के पति का क्या नाम था ?

युवा भगवती चरण वोहरा के  अंदर देशभक्ति की भावना प्रबल थी।  वे क्रांति के कार्य में लग गए। 1920 में पिता की मृत्यु के बाद वे खुल कर क्रांतिकारियों के साथ आ गए और दुर्गा भाभी भी उनकी सक्रिय सहयोगी बन गई।

आपके पति श्री भगवती चरण वोहरा देश के लिए शहीद हो गए और दुर्गा भाभी छोटी आयु में ही विधवा हो गई। आपके पुत्र का नाम शचींद्र था। गोद में एक अबोध बालक और पति का बलिदान भी उन्हें कर्तव्य पथ से विचलित नहीं कर सका। अपने क्रांतिकारी जीवन में दुर्गा भाभी ने बड़े-बड़े काम किये।

इतिहास में दुर्गा भाभी को इस महत्वपूर्ण घटना के लिए हमेशा याद किया जाता है जिसमें सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को बचाने के लिए उन्हें लाहौर से कलकता भागने में सहायता की थी। 

दुर्गा भाभी एक सम्पन्न परिवार से थी। अंग्रेजों ने ब्रिटिश राज के विरुद्ध उनकी गतिविधियों के कारण उनके लाहौर में दो घरों को और इलाहाबाद में एक घर को जब्त कर लिया था।

दुर्गा भाभी की मृत्यु कब हुई थी । Durga bhabhi death.

दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारियों की शहादत के बाद बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया। 1935 में गाजियाबाद में प्यारे लाल कन्या विद्यालय में कुछ समय शिक्षिका की नौकरी भी की। 1937 में आप दिल्ली चली गई और कांग्रेस में काम करने लगी। बाद में कांग्रेस से उनका मोह भंग हो गया और 1937 में ही कांग्रेस को छोड़ दिया। 

बाद में 1939 में दुर्गा देवी ने मद्रास जाकर मारिया माटेंसरी पद्धति का परीक्षण लिया। 1940 में लखनऊ में एक निजी घर में केवल पाँच बच्चों के साथ माटेंसरी विद्यालय खोला और शिक्षा के लिए कार्य किया। 15 अक्टूबर 1999 को 92 वर्ष की आयु में दुर्गा भाभी का गाजियाबाद  में निधन हो गया। 

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स्वतंत्रता सेनानी महिला दुर्गा भाभी का योगदान । women freedom fighter durga bhabhi -

गुमनाम नायिका, श्री दुर्गावती देवी, जिन्हें 'दुर्गा भाभी' के नाम से भी जाना जाता है | स्वतंत्रता सेनानी महिला दुर्गा भाभी का योगदान -

1.  07 अक्टूबर 1907 में जन्मी दुर्गावती देवी का जन्म उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के निकट आधुनिक समय के कौशाम्बी जिले के एक संपन्न परिवार में हुआ था। 11 साल की उम्र में उनका विवाह लाहौर के श्री भगवती चरण वोहरा से हुआ था। वोहरा भी एक संपन्न परिवार से थे।

2.  वोहरा ने स्वतंत्रता के लिए लड़ने का फैसला किया और स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हो गए। भगत सिंह और अन्य लोगों के समर्थन के साथ, उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन  (एचएसआरए) की स्थापना की। ऐसा कहा जाता है कि संगठन की स्थापना में दुर्गा भाभी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। संगठन के सब सदस्यों में वो दुर्गा भाभी के नाम से लोकप्रिय थी।

3. क्रांतिकारियों के लिए हथियार और गोला-बारूद खरीदने के लिए दुर्गा भाभी ने अपने सारे गहने और धन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) को दान कर दी। उनका मुख्य कार्य क्रांतिकारियों तक हथियार, गोला-बारूद और पत्र या सूचना पहुँचाना था। चंद्रशेखर आज़ाद ने जिस पिस्तौल से अपने आपको गोली मारी थी वो दुर्गा भाभी ने ही आजाद को दी थी।

दुर्गा भाभी एवं स्वतंत्रता सेनानी

4. दुर्गा भाभी नौजवान भारत सभा की एक सक्रिय सदस्य थी। जब सभा ने नवंबर 1926 में लाहौर में शहीद करतार सिंह सराभा की शहादत की 11वीं वर्षगांठ मनाने का फैसला किया। करतार सिंह सराभा को 11 साल पहले लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। वह स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक थे, जिन्होंने 19 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनकी शहादत की 11वीं वर्षगांठ में दुर्गा भाभी सबसे आगे थीं।

4. दुर्गा भाभी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को भी आश्रय प्रदान किया, जब वो 17 दिसंबर 1928 को जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद पुलिस से फरार थे। वे लोग दुर्गा भाभी के घर गए थे। भगत सिंह जिस नए रूप में थे, उस नए रूप में दुर्गा भाभी भगत सिंह को पहचान नहीं पाई थी। भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिए थे।

 दुर्गा भाभी को  इस बात का खेद था कि असली अपराधी जे.ए. स्कॉट किसी तरह बच गया था। दुर्गा भाभी ने ही भगत सिंह को जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद कलकत्ता जाने को कहा था और उन लोगों के लाहौर से भागने में सहायता की। इसके लिए उन्होंने पुलिस को चकमा देने के लिए अपने तीन साल के पुत्र शचींद्र के साथ अपने आप को भगत सिंह की पत्नी के रूप में प्रस्तुत किया और राजगुरु ने उनके नौकर के रूप में काम किया। दुर्गा भाभी का पुत्र शचींद्र भगत सिंह को लंबू चाचा के नाम से संबोधित करता था। 

5. Durga bhabhi भगत सिंह के साथ कई बंगाली क्रांतिकारियों से मिलीं और बम बनाना भी सीखा। उन्होंने दुर्गा भाभी के साथ अपने बंगाली समकक्षों से मुलाकात की, जिनमें अतुल गांगुली, जी.एन. दास और फ़िनिंदर घोष। उन्होंने वहां अपनी पार्टी की एक शाखा खोली और उन्होंने बम बनाने की प्रक्रिया भी सीखी।

6.  उनके पति भी एक क्रांतिकारी थे, जिन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर भगत सिंह को फांसी से पहले ही जेल पर बमबारी करके मुक्त करने की योजना बनाई थी। दुर्भाग्य से, 28 मई 1930 को लाहौर के पास रावी नदी के तट पर एक बम का परीक्षण करते समय दुर्गा भाभी के पति श्री भगवती चरण वोहरा की मृत्यु हो गई। दुर्गा भाभी बहुत कम आयु में विधवा हो गई। दुर्गा भाभी ने अपने पति की असमय मृत्यु के दर्द को सहन किया। उन्होंने अपना धीरज नहीं खोया और ब्रिटिश शासन के  विरुद्ध अपनी लड़ाई को जारी रखी।

7. भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त जब केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने जा रहे थे तो दुर्गा भाभी व सुशीला मोहन ने अपने रक्त से टीका लगाकर उन्हें विजय पथ पर भेजा था।

8. जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को मौत की सजा दी गई, तो दुर्गा भाभी ने इसका खुलकर विरोध किया। उनकी  रिहाई की मांग को लेकर रैलियों और जुलूसों के आयोजन में भी उनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान था। मुकदमे के तहत भगत सिंह और उनके साथियों को छुड़ाने के लिए, दुर्गा भाभी ने अपने गहने बेच दिए और उनकी की जान बचाने के लिए, उसने गांधी से गुहार भी लगाई, लेकिन सब व्यर्थ।

9. 13 सितंबर 1929 के दिन 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल में ही क्रांतिकारी श्री जतिन्द्रनाथ दास (जतिन दा) की मृत्यु हो गई। श्री जतिन्द्रनाथ दास (जतिन दा) के पार्थिव शरीर को लाहौर से कलकत्ता ट्रेन में ले जाने तक की सारी व्यवस्था और कलकत्ता में अंतिम यात्रा का नेतृत्व दुर्गा भाभी ने ही किया।

10. दुर्गा भाभी ने कुछ भारतीय क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के बाद  09 अक्टूबर 1930 को पंजाब के गवर्नर मैल्कम हैली की हत्या करने का निर्णय किया। हालाँकि, असफल प्रयास के बाद दुर्गा भाभी को गिरफ्तार कर  लिया गया था। बाद में रिहा होने पर, उसने एक बार फिर उसकी हत्या करने का प्रयास किया, लेकिन इस बार फिर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तीन साल के लिए कैद कर लिया गया।

11. साथी क्रांतिकारियों के शहीद होने के बार दुर्गा भाभी एकदम अकेली पड़ गई। पुलिस से उनकी लुकाछिपी, गिफ्तारी व रिहाई का सिलसिला 1931 से 1935 तक चलता रहा। बाद में 1939 में दुर्गा देवी ने मद्रास जाकर मारिया माटेंसरी पद्धति का परीक्षण लिया। 1940 में लखनऊ में एक निजी घर में केवल पाँच बच्चों के साथ माटेंसरी विद्यालय खोला। आज यह विद्यालय लखनऊ में माटेंसरी इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है।

12. बाद में आप गाजियाबाद में अपने पुत्र के पास रहने लगी।15 अक्टूबर 1999 को 92 वर्ष की आयु में दुर्गा भाभी का गाजियाबाद में निधन हो गया। कथित तौर पर, उन्होंने 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद गुमनामी में एक शांत जीवन व्यतीत किया।

दुर्गा भाभी पर फिल्मे । Durgavati devi par movies.

1. अभिनेता, निर्देशक मनोज कुमार की  फ़िल्म शहीद (1965)  में दूर्गा भाभी के चरित्र को अभिनेत्री निरूपा राय ने निभाया था।

2. राकेश ओमप्रकाश मेहरा की 2006 की फिल्म रंग दे बसंती में उनके चरित्र का एक छोटा सा संदर्भ देखा गया था, जिसमें  अभिनेत्री सोहा अली खान ने उनकी भूमिका निभाई थी।

4. 2014 इंडियन एपिक टीवी एंथोलॉजी टेलीविजन श्रृंखला, अधिश्या की सातवीं कड़ी, दुर्गा भाभी के बारे में है।

निष्कर्ष - Durga Bhabhi भले ही भगत सिंह, सुख देव और राजगुरू की तरह फांसी पर न चढ़ी हों लेकिन कंधें से कंधा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ती रहीं और स्वतंत्रता सेनानियों की हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनी। दुर्गा भाभी बम बनाती थीं तो अंग्रेजो से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को अपने रक्त से टीका लगाकर विजय पथ पर भी भेजती थीं। उन्होंने अपने तन, मन और धन से देश की सेवा की।

स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी ने अपने जीवन के 52 वर्ष बिताए। वो भी गुमनाम रह कर। किसी भी सरकार ने उनको सन्मानित नहीं किया। उनकी मूर्तियां नहीं बनवाई। उनको पेंशन तक नहीं दी। 

ऐसी महान निडर महिला को मेरा शत-शत प्रणाम। जिसने उन योद्धाओं के साथ भारत माता को स्वतंत्र करवाने के लिए संघर्ष और कार्य किया और स्वतंत्रता के बाद भारत को विकसित करने के लिए शिक्षा के लिए बिना किसी स्वार्थ के कार्य किया। आप भारत माता की सच्ची बेटी थी।। लोकेश कुमार जोशी ।।

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