रानी लक्ष्मीबाई की कहानी । Rani Lakshmi bai biography and story in hindi.
Rani lakshmi bai biography and story in hindi. भारतीय इतिहास में आदर्शवादी, वीरता, त्याग व बलिदान की एक बेमिसाल व अदभुत कहानी है । जिसमें न केवल पुरुष बल्कि महिलाओं की भी बेमिसाल कहानियां हैं । जैसे रानी पद्यमनी, रानी कमलापति, हाड़ी की रानी, पन्नाधाय आदि अनेको महिलाओं ने अपने माँ भारती की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया ।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भी उनमें से एक है जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए, अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी क्रुबानी दे दी । Jhansi ki Rani Lakshmi bai अपने अंतिम क्षणों तक अंग्रेजों से लड़ती रही । वह दयालु एवं सरल स्वभाव की थी मगर जब जब दुश्मनों ने उसे ललकारा तब वह टूट पड़ी झांसी वाली रानी थी । तो चलिए जानते है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय । Rani Lakshmi bai biography in hindi.
Also read
◆ भगतसिंह का जीवन परिचय । Bhagat singh biography in hindi.
◆ शुगनचन्द मजदूर की जीवनी । Shugan Chand Majdoor biography in hindi.
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय । Lakshmi bai biography in hindi.
अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोहा लेने वाली रानी लक्ष्मीबाई की वीरता बेमिसाल थी । Rani lakshmi bai बचपन से वीर थी । वह अस्त्र शस्त्र की कला से निपुण थी । उनकी शादी कम उम्र में ही हो गई थी । तो चलिए जानते है झांसी की रानी का परिचय -
◆ नाम - लक्ष्मीबाई
◆ बचपन का नाम - मनु, मणिकर्णिका
◆ जन्म - 19 नवंबर 1828
◆ जन्म स्थान - वाराणसी
◆ पिता का नाम - मोरोंपत
◆ माता का नाम - भागीरथी बाई
◆ पति का नाम - राजा गंगाधर राव
◆ दत्तक पुत्र का नाम - दामोदर राव
◆ मृत्यु - 18 जून 1857 ।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी । Rani Lakshmi bai story in hindi.
रानी लक्ष्मीबाई मराठी शासित झांसी राज्य की रानी और 1857 की राज्य क्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना थी । इन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई । बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी । 19 नवम्बर 1828 के दिन रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में हुआ था । बचपन में इसे मणिकर्णिका कहा जाता था । लेकिन प्यार से कुछ इन्हें मनु भी कहते थे । इनकी मां का नाम भागीरथी बाई और पिता का नाम मोरोंपत था जो एक मराठी सैनिक थे ।
उनके पिता मराठा बाजीराव की सेवा मे थे । माता भाग्य भागीरथी भाई एक संस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिरपेक्ष स्वभाव की थी । इनकी मां की मृत्यु हो गई थी । घर में मन्नू की देखभाल के लिए कोई नहीं था । इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे जहां चंचल और सुंदर मनु को सब लोग प्यार से छबीली कहकर बुलाने लगे । मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी ।
शादी के बाद Rani lakshmi bai ने सितंबर 1851 में एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन 4 महीने की उम्र में बीमारी के कारण उसकी मृत्यु हो गई । सन 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई । पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई । दस्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया । झांसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया । जहां जहाँ हिंसा भड़क उठी थी तो रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को मजबूत करना शुरू कर दिया । रानी ने सेवक सेना का गठन प्रारंभ किया । इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गई और इन्हें युद्ध का परीक्षण किया गया । इस सेना एक सौ सेवक थे । साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया ।
झलकारी बाई एक बहादुर योद्धा थी जो लक्ष्मी बाई की हमशक्ल थी । उनकी बहादुरी को देखकर झांसी की रानी नें उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया । सितंबर तथा अक्टूबर 1857 के महीने में पड़ोसी राज्यो ने झांसी आक्रमण करना शुरू कर दिया जिसमें ओरछा तथा दतिया मुख्य था ।
रानी ने सफलतापूर्वक इससे विफल कर दिया । 1858 की जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झांसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया । और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया । 2 हफ्ते की लड़ाई के बाद बितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया । परंतु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बचकर भाग निकलने में सफल हो गई । रानी कापली पहुंचकर तात्या टोपे से जा मिली ।
झांसी की रानी की शादी कब हुई थी | Rani lakshmi marriage.
रानी लक्ष्मीबाई की शादी 1842 में हुई थी । रानी की शादी झांसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवलकर के साथ हुई । और वे झांसी की रानी बनी । विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मी बाई रखा गया । शादी के बाद रानी की तरह सजी हुई रहती थीं । समय की साथ रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सखियों के साथ मिलकर महिला सैनिकों की सेना तैयार की थी ।
वह अपनी सेना को परम्परागत कौशल बनाने का प्रयास करती थीं । यही सेना आगे चलकर बहुत काम आई । मुश्किल समय मे वीरता का परिचय दिया ।
रानी लक्ष्मीबाई का इतिहास । Rani lakshmi bai history in hindi.
19 नवंबर 1885 के दिन रानी लक्ष्मीबाई का जन्म काशी वाराणसी के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके माता पिता भागीरथी बाई एवं मोरोंपन्त ने उनका नाम मणिकर्णिका रखा था । तभी उन्हें प्यार से मनु कह कर पुकारते थे । झांसी से कपाली होते हुए । रानी लक्ष्मी बाई दूसरे विद्रोहियों के साथ ग्वालियर आ गई थी ।
लेकिन कैप्टन हूंरोज की हत्या योजना के चलते आखिरकार रानी लक्ष्मीबाई गिर गई | शहर के रामबाग चौराहे से शुरू हुई आमने- सामने की जंग में जख्मी रानी को एक गोली लगी और वह स्वर्ण रेखा नदी के किनारे शहीद हो गई राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद लिया और उसे दामोदर राव नाम दिया गया ।
राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने एक चाल चली । उन्होंने लॉर्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने के लिए झांसी की Rani lakshmi bai की बदकिस्मती का फायदा उठाने की कोशिश की अंग्रेजों ने दामोदर को झांसी के राजा का उत्तराधिकार स्वीकार करने से इंकार कर दिया । 1861 में ब्रिटिश सरकार ने झांसी किला और झांसी शहर को जीवाजी राव सिंधिया को दिया ।
तब झांसी, ग्वालियर राज्य को एक हिस्सा बन गया । सन अट्ठारह सौ छियासी में अंग्रेजों ने ग्वालियर राज्य से झांसी को वापस ले लिया । स्वतंत्र भारत में झांसी को उत्तर प्रदेश में शामिल किया गया था । भारत वासियों ने फिरंगी तथा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने की बात मन में ठान ली थी ।
रानी लक्ष्मीबाई की तलवार कितनी भारी थी । Rani lakshmi bai ki talvaar ka weight.
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एक महान योद्धा थी । वह महिला सहशक्तिकर्ण की जीती जागती मूरत थी जिन्होंने सन 1857 में अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था । वह अस्त्र शस्त्र कला से निपुण थी उनके अनेको अस्त्र शस्त्र गंगाराम के आश्रम से प्राप्त हुए जिसमें कुरची, भाले, तलवार आदि थे ।
उनके अस्त्र शस्त्र में तलवार बहुत ही महत्वपूर्ण शस्त्र था जिसका वजन 35 किलो एवं लम्बाई 4 फुट थी । यह एक ऐसी तलवार थी जिनसे अनेको अंग्रेजों के सर कलाम किए थे ।
रानी लक्ष्मीबाई की वीरता | Rani lakshmi bai ki ladai.
14 मार्च, 1857 से सप्ताह तक लगातार रानी की तोपें किले से आग उगलती रहीं । अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज रानी लक्ष्मीबाई की किलेबंदी देखकर दांतो तले अंगुली दबाते रह गया । अपने दत्तक पुत्र को अपनी पीठ पर लेकर रानी साक्षात रणचंडी बनकर युद्ध लड़ती रही । जब उनके सैनिको को लगा कि अंग्रेजी सेना भारी पड़ रही है तो सैनिको ने रानी को कालपी की जाने की सलाह दी ।
उधर रानी सखी सैनिको के साथ लड़ रही है । उनकी सखी सैनिको में रानी झलकारी बाई ने उनका साथ निभाया और वह दुश्मनों पर टूट पड़ी । अंत मे अपनी भरोसेमंद सैनिकों के साथ कालपी की बढ़ने लगी । लेकिन अंग्रेजी सैनिक उनका पीछा करते हुए कैप्टन वाकर ने उन्हें घायल कर दिया ।
झांसी की रानी की मौत कैसे हुई | Rani lakshmi bai death.
क्रांतिकारी सेना को 22 मई, 1857 को कालपी को छोड़कर ग्वालियर जाना पड़ा । 17 जून 1857 को फिर युद्ध हुआ जिसमे रानी लक्ष्मीबाई के जबरदस्त प्रहारों से अंग्रेजी सेना उल्टे पाव लौटना पड़ा । मगर अगले दिन यानी 18 जून को अंग्रेजी सेनापति ह्यूरोज स्वयं युद्धभूमि में आ गया । रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को रामचंद्र देशमुख के हाथों में सौंप दिया ।
उधर युद्ध में सोनरेखा नाला जो कि गहरा था जिसे रानी लक्ष्मी बाई का घोड़ा पार नहीं कर पाया । पीछे से अंग्रेजी सेना के एक सिपाही ने रानी पर तलवार से एक ऐसा जोरदार प्रहार किया कि रानी लक्ष्मीबाई के सिर का दाहिना हिस्सा कट गया एवं उनकी आंख भी बाहर निकल आई ।
रानी ने घायल होते हुए भी अंग्रेजी सेना से लड़ती रही । उसने मूर्छित अवस्था में जाने से पहले पहले अंग्रेजी सैनिको को मौत के घाट उतारते हुए खदेड़ दिया । और रानी ने अपने प्राण त्याग दिया । 18 जून, 1857 को इसी स्थान ( बाबा गंगादास की कुटिया ) में Rani lakshmi bai का अंतिम संस्कार किया गया ।
रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े का क्या नाम था ? Rani Lakshmi bai ke ghode ke naam.
यह माना जाता है कि झांसी की रानी मुख्य टीम घोड़े प्रयोग करती थी जिसका नाम क्रमशः पवन, बादल और सारंगी था, यह भी कहा जाता है I कि जब रानी बादलों पर सवा बादल पर सवार होकर महल की ऊंची दीवार से कूदी तो बादल ने रानी को बचाने के लिए अपनी जान दे दी I उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई पवन का प्रयोग करने लगी थी I
Jhansi ki Rani lakshmi bai बहुत ही दयालु स्वभाव की थी । एक दिन वह अपनी कुलदेवी की पूजा करके लौटते हुए राज्य के कुछ गरीब लोगों ने उन्हें घेर लिया । उनकी दशा देखकर महारानी का हृदय द्रवित हो उठा । रानी ने पूरे नगर में घोषणा करा दी कि एक निश्चित दिन गरीबों में भोजन आदि का वितरण कराया जाएगा ।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती कब मनाई जाती है ? Rani lakshmi bai jayanti.
रानी लक्ष्मीबाई एक Freedom fighter थी जिन्होंने 1857 की क्रांति में अपनी मुख्य भूमिका निभाई । उन्होंने अपने जीते जी अंग्रेजी सेना को आगे बढ़ने नहीं दिया ।
Rani lakshmi bai का जन्म 19 नवम्बर 1828 के दिन ब्राहमण कुल में हुआ । यही कारण है इस दिन ( 19 november ) को रानी लक्ष्मीबाई की जयंती ( Lakshmi bai Jayanti ) के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है ।
Rani lakshmi bai Jayanti के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन करके उन्हें याद किया जाता है । उनकी कहानी को जन जन तक पहुचाया जाता है । ऐसी महान योद्धा को शत शत नमन .. ।। नैना सोढ़ी ।।