टोशिको बोस का जीवन परिचय । Toshiko bose biography in hindi.
Toshiko bose biography in hindi. आज तक हमने अनगिनत भारतीय नारियों की महानता, त्याग, समर्पण, पतिव्रता धर्म, साहस, वीरता के क़िस्से-कहानियाँ बहुत सुने होंगे। यूं तो भारत में हजारों ऐसी महिलाएं हुई हैं जिनकी पवित्रता और पतिव्रता धर्म पालन करने की आज भी मिसाल दी जाती है और इन नारियों में कुछ ऐसी हैं जो इतिहास का अमिट हिस्सा बन गई। इन पवित्र नारियों में माता सती, माता अनुसूया, माता सीता, माता सुलक्षणा (सुलोचना माता), माता द्रोपदी, सावित्री बाई फुले, माता मंदोदरी को भारतीय संस्कृति और इतिहास में महान स्थान प्राप्त हैं।
प्रस्तुत लेख के माध्यम से एक ऐसी विदेशी सावित्री तुल्य उस सती नारी के बारे में बताने जा रहा है जो जीते जी कभी भी भारत तो नहीं आ पाई पर उन्होंने एक सच्ची भारतीय नारी की तरह से अपने पति और पति के देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाया और वो बीमारी से चल बसी।
टोशिको बोस ( Toshiko bose ) आम भारतीयों के लिए एक अनजाना नाम है। अपनी मातृभूमि जापान में मात्र 28 वर्ष की आयु तक ही जीवित रही। सावित्री तुल्य इस सती का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने में ऐसा योगदान बुनियादी था जो नींव का पत्थर बन कर अदृश्य व अज्ञात ही रह गया।
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क्रांतिकारी रासबिहारी बोस का जापान में पलायन । Rasabihari bose.
ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ सोच रखने वाले पंजाब और बंगाल में मौजूद मित्रों के संपर्क में क्रांतिकारी रास बिहारी बोस थे। महान क्रांतिकारी देशभक्त रास बिहारी बोस 23 दिसंबर 1912 को भारत के भूतपूर्व वाइसरॉय लार्ड हॉर्डिंग पर बम-प्रहार के साहसिक प्रहार तथा 1915 के आरंभ में ब्रिटिश फ़ौज के भारतीय सैनिकों से सहयोग प्राप्त कर देश में व्यापक सशस्त्र क्रांति की योजना में सफल न हो सके थे। उन प्रयासों से संबंधित मुकदमों में उन्हें मृत्युदंड देना अवश्यंभावी था।
असफलताओं और खतरों के बाबजूद पुनः सशस्त्र संघर्ष की तैयारी करने एवं देश के क्रांतिकारियों को विदेश से शस्त्र उपलब्ध करवाने के लिए वे 1915 के मई माह में (नाम और वेष बदल कर) राजा पी. एन. टेगौर के छद्म नाम से जापान चले गए थे। देश में उन्हें बंधी बनाने के लिए एक लाख रुपये के ईनाम की घोषणा की गई थी।
उन दिनों जापान और ब्रिटेन के बीच एक संधि के तहत जापान में उन्हें बंधी बना कर उन पर भारत में मुकदमा चलाने और मृत्युदंड दिए जाने का खतरा था। उनकी देशभक्ति और विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध साहसिक कार्यों से प्रभावित हो कर कुछ महत्वपूर्ण जापानी नेताओं और नागरिकों ने उन्हें इस खतरे से बचाने के लिए जापान में ही छिपाकर रहने की व्यवस्था कर दी थी।
रासबिहारी बोस की मानव कवच पत्नी टोशिकी बोस का जीवन परिचय । Toshiko bose biography in hindi.
इन जापानी नेताओं में राष्ट्रवादी जापानी नेता टोयामा मित्सुरु शामिल थे और उन्होंने ही रास बिहारी बोस की सहायता की थी उनको छिपाने में। उन्हें इस के खतरे से बचाने के लिए ये अति आवश्यक था कि उन्हें जापान की नागरिकता प्रदान करवा दी जाए ताकि ब्रिटिश सरकार का कानून उन पर लागू न हो सके।
इसके लिए टोयामा मित्सुरु ने ही 'आइजो सोमा' व 'कोककोउ सोमा' से रास बिहारी बोस के लिए उनकी सबसे बड़ी बेटी 'टोशिको सोमा' ( Toshiko soma ) का हाथ मांगा था। उस समय किसी को भी विदेशी जापानी नागरिकता दिलाने के लिए तीन शर्तें पूरी करना आवश्यक था, वे थीं -
1. जापान में सात वर्षों तक निवास करना।
2. जापानी भाषा व आचार-व्यवहार का ज्ञान रखना।
3. जापानी कन्या से विवाह करना।
Toshiko soma के साथ रासबिहारी बोस की शादी | Rasabihari bose marriage.
ऐसे बेघर विदेशी क्रांतिकारी से, जिसकी जान खतरे में हो, कौन सी जापानी कन्या विवाह करने को तैयार होती ? रास बिहारी बोस के आश्रयदाता व प्राणरक्षक, जापानी दंपत्ति 'आइजो सोमा' व 'कोककोउ सोमा' ने उन्हें अपनी रेस्तरां (बेकरी) से लगे अपने घर में छिपा रखा था। 'आइजो सोमा' व 'कोककोउ सोमा' टोक्यो में नाकामुराया रेस्तरां' (बेकरी) के मालिक थे।
उन्हीं की बीस वर्षीया सुशिक्षित, साहसी, सुंदर कन्या टोशिको सोमा ने अपने माता-पिता के स्नेह व संरक्षण प्राप्त कर चुके रास बिहारी बोस की पत्नी के रूप में समकालीन जापानी सामाजिक मूल्यों की अनदेखी करते हुए, मानव-कवच बन कर उनके अज्ञातवास में भी साथ देना स्वीकार कर लिया। उस ज़माने में जापानी लोग अंतरराष्ट्रीय विवाहों से घृणा करते थे, क्योंकि उस समय के जापानी लोग राष्ट्रवादी, पारंपरिक और रूढ़िवादी सोच के थे और उनमें राष्ट्रीयता तो कूट-कूट कर भरी हुई थी। 09 जुलाई 1908 को रास बिहारी बोस व टोशिको सोमा का गुपचुप विवाह करवा दिया गया।
इस प्रकार एक सावित्री तुल्य इस सती ने अपना सारा जीवन अपने पति और पति के देश के लिए न्यौछावर कर दिया। पाँच वर्ष तक तोशिको बोस ने, अपने माता-पिता की सहायता से, अपने पति का स्थान बार-बार रहने के लिए बदला व तंग छोटी कोठरियों में उनके साथ रह कर अपने पति को पुलिस व ब्रिटिश गुप्तचरों की निगाहों से बचाते हुए उन्हें सुरक्षित रखा।
इस दौरान 17 बार रास बिहारी बोस ने अपना रहने का स्थान बदला। उनके भोजन, वस्त्र, विश्राम, सुरक्षा व अध्ययन का प्रबंध कर अपने पति को जापानी भाषा समझने, बोलने, पढ़ने व लिखने के समर्थ बनाया और साथ ही श्री रास बिहारी बोस ने भी अपनी पत्नी को भी बांग्ला संस्कृति, बांग्ला भाषा से अवगत करवाया और बांग्ला साड़ी पहनना सिखाया था। श्रीमती टोशिको बोस ने ही उनके अंग्रेजी लेखों को छद्म नाम से प्रकाशित करवाया और अपने दांपत्य जीवन का निर्वाह करते हुए एक पुत्र और पुत्री को जन्म दिया।
रासबिहारी बोस के पुत्र का नाम । Name of Ras bihari son's.
उन्होंने अपने पुत्र को एक जापानी नाम माशाहीदे बोस दिया और एक भारतीय नाम भारत चंद्र बोस दिया। जिसका जन्म 1920 में हुआ था और जिसकी मृत्यु द्वितीय विश्व युद्ध के समय मात्र 24 वर्ष की अल्पायु में हुई थी। आपकी पुत्री तेत्सुकों का जन्म सन 1922 में हुआ। ये सब एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य था जो कि श्रीमति टोशिको बोस ने किया। वो अपने पति और ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसियों के बीच एक मानव ढाल के रूप में हमेशा खड़ी रही।
Rasbihari bose का कष्टों में भी साथ निभाया
इस प्रकार टोशिको ने अपने पति को गिरफ़्तारी और मृत्युदंड से बचाने और उनको जापान का सम्मानित नागरिक बना कर ब्रिटिश सरकार के कानून से मुक्त करवाने और कालांतर में उन्हें जापान में सुरक्षित रख कर भारत की स्वतंत्रता हेतु दक्षिण-पूर्व एशिया के अप्रवासी भारतीयों को संगठित करने तथा द्वितीय विश्व युद्ध जनित अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठा कर आज़ाद हिंद फ़ौज गठित करने में सहायक हुई।
तोशिको बोस के पाँच वर्ष के कष्टमय एवं संघर्षपूर्ण, गुप्त वैवाहिक जीवन की समाप्ति हुई रास बिहारी बोस के 02 जुलाई 1923 को जापान की नागरिकता प्राप्त करने पर।
श्रीमती टोशिको बोस का निधन । Toshiko bose death.
दुर्भाग्यवश जब इन दोनों को खतरों से मुक्त हो कर स्वतंत्र व सुखी जीवन बिताने का सुयोग अवसर मिला, तब तक पिछले पाँच वर्षों के कष्टमय जीवन के परिणामस्वरूप तोशिको बोस उन दिनों की लाइलाज बीमारी तपेदिक (टी.बी) की जकड़ में आ चुकी थी। 04 मार्च 1925 को मात्र 28 वर्ष की अल्पायु में वे इस नश्वर संसार से विदा हो गई। वह एक सुखी वैवाहिक जीवन का आनंद लिए बिना, एक बेटी और बेटे को छोड़ कर इस संसार से विदा हो गई। श्री रास बिहारी बोस ने अपनी पत्नी तोशिको बोस के साथ अपने जीवन के महत्वपूर्ण आठ वर्ष बिताए।
टोशिको बोस ने भारत की आजादी के लिए सशस्त्र सेना, आज़ाद हिंद फ़ौज के जन्मदाता का मार्ग प्रशस्त करने हेतु कष्ट ही नही झेले अपितु परोक्ष रूप से भारतीय स्वतंत्रता के महायज्ञ में तिल-तिल कर अपने प्राणों और अपने सुख-सपनों की आहुति दे दी। वे पति और पति के देश के लिए शहीद हो गई। भारत की स्वतंत्रता के बाद पति के साथ उनके स्वतंत्र भारत में आने के सपने अधूरे रह गए।
निष्कर्ष
भारत और भारतवासी श्रीमती टोशिको बोस ( Toshiko bose ), सोमा परिवार और जापानी राष्ट्रवादी नेता टोयामा मित्सुरु और उनके साथियों के हमेशा ऋणी रहेंगे, जिन्होंने निस्वार्थ रूप से उस कठिन समय में श्री रास बिहारी बोस का साथ दिया जो कि भारत माता को पराधीनता की जंजीरों से मुक्ति के लिए उस समय संघर्ष कर रहें थे।
ये सचमुच में दुखद ही रहेगा कि श्री रास बिहारी बोस भी भारत को स्वतंत्र हुए जीते जी नहीं देख पाए, जिसके लिए उन्होंने और उनकी पत्नी और परिवार ने कष्ट उठाए। यह केवल कर्तव्य की पुकार ही थी जिसने Mrs Toshiko bose को एक विदेशी क्रांतिकारी के लिए मानव ढाल के रूप में कार्य करने के लिए पर्याप्त प्रतिबद्धता के साथ प्रेरित किया। एक विदेशी महिला जिसने भारतीय नारी के समान पतिव्रता धर्म ख्याति प्राप्त की वो थी श्रीमती टोशिको बोस। जब तक ये संसार रहेगा आपका नाम नारियों में सदा सम्मान के साथ लिया जाएगा।
मुझे आशा है कि भारत के युवा और युवतियां श्री रास बिहारी बोस और उनकी पत्नी श्रीमती टोशिको बोस के महान त्याग, समर्पण, साहस से प्रेरित होंगे,इस लेख के माध्यम से।
एक समर्पित महिला,जो भारतीय नहीं थी लेकिन भारत के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर गई, उसको भावपूर्ण श्रद्धांजलि है।। लोकेश कुमार जोशी ।।
संदर्भ
1. Rash Beharir Atma-katha O dushprapya Rachana, edited by Amal Kumar Mitra.
2. Saswati Sarkar, Jeck Joy, Shanmukh and Dikgaj : Rashbehari Bose and the women who saved in.
3. मानवी आर्या (दैनिक जागरण, 13 मार्च 2004) : क्रांतिकारी रासबिहारी बोस की 'मानव-कवच' पत्नी तोशिकी बोस |