वीर बाल दिवस क्या है । What is veer bal diwas in hindi.

वीर बाल दिवस क्या है । What is veer bal diwas in hindi.


What is veer bal diwas in hindi.


What is veer bal diwas in hindi. वीर बाल दिवस गुरु गोबिंद सिंह के उन चार साहिबजादों की शहादत के रूप में मनाया जाता है । जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शहादत का रास्ता चुना था । जिन्होंने जबर,जुल्म से लडऩे तथा अपने धर्म में अडिग रहते हुए अपने प्राणों की परवाह नही की और शहादत का जाम पी गए । 

उन्हें बाल कहना उन वीरों का अपमान ही होगा क्योंकि उर्म में भले वो बच्चे थे, पर अपने व्यक्तित्व, कार्य से किसी परिपक्व व्यकितत्व से कम नही थे।

गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे साहिब अजीत सिंह जी, साहिब जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह व साहिब बाबा फतेह सिंह की शहादत एवं अतुलनीय वीरता की स्मृति में प्रतिवर्ष 26 दिसम्बर को Veer bal diwas मनाया जाता है । हालांकि सिख धर्म तो 20 दिसम्बर से 26 दिसम्बर तक का समय तो उदासीनता से मनाते हैं ।  इस दिन इन साहिबजादों ने शहादत का जाम पीया । नवाब ने इन्हें असहनीय यातना देते हुए 26 दिसम्बर के दिन जिंदा दीवार में चुनवा दिया था । वही 14 नवम्बर के दिन बाल दिवस मनाया जाता है ।

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वीर बाल दिवस क्या है । What is veer bal diwas in hindi.

 गुरु गोबिंद सिंह ने सन 1699 को पांच सिकखों को अमृत पान कराके खालसा पंथ की स्थापना की । गुरु जी के आदेश से एक बडे पतीले में अमृत तैयार किया सभी को इसी भगोने से अमृत पीना था जिससे कई पडिंत, राजपूत राजा गुरु जी से नराज हुए क्योंकि उनका कहना था कि हमें अलग से तैयार किया अमृतपान कराया जाएं । गुरु जी के यह कहने पर कि गुरूनानक के घर में न कोई छोटा न बडा है, सब एक धर्म खालसे के वारिस है, कोई भेदभाव नही। राजपूत नराज होकर औरंगजेब से मिल गएं पडिंत भी ईष्र्या करने लगे ।

उधर 16वी व 17वी शताब्दी के मध्य मुगल शासक ओरंगजेब ने जबरन धर्म परिवर्तन की हठधर्मिता की हद कर दी । उन्होंने भारत में मुस्लिम बनाने की जिद्द छेड़ दी और अन्य धर्मों के धार्मिक क्रिया कलाप यानी पूजा अर्चना पर रोक लगा दी । जो सभी के लिए नागवार गुजरी । उधर सिख धर्म की रक्षा कर रहा खालसा पंथ ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया । जिसे ओरंगजेब सहन नहीं कर पयवे । जिनका परिणाम  मुगलों और सिखों के बीच चमकौर युद्ध हुआ ।

चमकौर का ऐतिहासिक युद्ध | Chamkor ka aitihasik yuddh.

गुरु गोबिन्द सिंह जी, दो बडे साहिबजादे साहिब अजीत सिंह जी, साहिब जुझार सिंह जी के साथ 40 सिख चमकौर की धरती पर पहुँचते, यह कच्ची गणी है जो बुद्धि चंद्र रावत का छोटा किला (गढ) है। किसी ने इसकी सूचना रोपण के पूलिस थाने में दे दी । शाम तक मुगलों की सेना ने हमला कर दिया। जंग करते करते कई सिख शहीद हो गए । गुरु जी ने पांच सिखों का जत्था बनाकर रण में भेजा। 

गुरु साहिब के बडे साहिबजादे बाबा अजीत सिंह जी ( जिनकों कभी जीता न जा सका ) जिनकी उम्र मात्र 17 वर्ष की थी । जिनका जन्म 26 जनवरी 1687 को पांऊटा साहिब में हुआ । उन्होंने विनती की कि पातशाह मुझे जंग में जाने की आज्ञा दे और इस जत्थे की कमान संभालने का सौभाग्य दे। सिखों ने मना किया पर गुरु साहिब ने साहिबजादो और सिंहों में भेदभाव न करते हुए उन्हें जाने की अनुमति दी। 

बाबा अजीत सिंह गुरु पिता का थापड़ा ले रणभूमि में उतरे, जाते ही शेर की तरह दुश्मनों के ऊपर टूट पड़े। जब साहिबजादे ने तीर चलाने शुरू किये तो दुश्मन अल्लाह अल्लाह पुकार उठें। तीर खत्म होने पर उन्होंने तलवार से जौहर दिखाएं, मुगल देख हैरान हो गए । गुरु साहिब खुद गणी की छत से जंग देख रहे थे और बाबा अजीत सिंह और दूसरे सिंह बहादुरी से लड़ रहे थे। तीर खत्म होने पर तलवारों, बरछे, किरपान से जंग लडी। सैकड़ों वैरियों को मारने के बाद बाबा अजीत सिंह, बाकी चार सिंह ने शहादत का जाम पीया।

फिर जुझारू प्रवृत्ति के जुझार सिंह जो 15 वर्ष के थे, जिनका जन्म 14 मार्च 1693 को आंनदपुर साहिब में हुआ । उन्होंने जाने की इजाजत मांगी । उनकी यह पहली जंग थी जिसमें इन्हें कमान संभालना था । इसलिए सिखों ने पातशाह से मना किआ तब गुरु जी ने जबाब दिया कि "बाल उम्र में मैंने भी तो बापू का बलिदान दिया था । सृष्टि के लिए यतीम कहाना परवान कीआ था । बाबा जुझार सिंह जी " क्या हुआ गर उम्र है  ।

Essay on veer bal diwas in hindi.


वीर बाल दिवस पर निबंध । Essay on veer bal diwas in hindi.

 गुरु जी ने आर्शीवाद और अपनी किरपान देकर इजाजत दी । वो भी अपने बडे भाई की तरह बहादुरी से लडते हुए शहादत का जाम पी गए । इतिहास की ऐतिहासिक, महत्वपूर्ण लडाई जो इतिहास में दर्ज है। कवि ने सुंदर लिखा "वह देखो रण में गुरु गोबिन्द का लाल है। वह देखो रण में फौज ए अकाल है।"

माता गुजरी छोटे साहिबजादें -

दूसरी तरफ दो छोटे साहिबजादे माता गुजरी जी सरहेडी पहुंचे, कुछ देर कूमा मास्की के घर में ठहरे होगे, कोतवाल आके इन्हें मोरंडा की कोतवाली गिरफ्तार करके ले जाते । यहां उनकी याद में गुरूद्वारा कोतवाली साहिब बना है । वहाँ से इन्हें सरहंद में ले जाया जाता । उन्हें ठण्डे बुर्ज में ठहराया जाता है जो चारों तरफ से खुला हुआ है, दिसम्बर का महीना, सर्द हवाएं चल रही थी । साहिबजादो को नवाब की कचहरी में पेश किया गया, उन्हें रास्ते में डराया, धमकाया गया वहां कैसे पेश आना । झुककर नवाब को सलाम करना। उन्हें जानबूझकर छोटे दरवाजे से ले जाया गया ताकि वे झुककर निकलेगे । नवाब के सामने झुक कर पेशी होगी पर वो बाल नही बाबे थे । वे पहले अपनी जूती अंदर करते, अंदर आते ही जो बोले सोनेहाल, सत श्री अकाल के जैकारे गूंजा देते।

बच्चे के इस हौसले, हिम्मत और की गई जूर्रत ने वजीर खां को क्रोधित कर दिया । नवाब की बेईज्जती देख सूचानन्द बोला जिसे सिख जगत झूठानन्द बोलता है, यह तुम्हारे पिता का दरबार नही, नवाब की कचहरी है, यहाँ फतिह नही झुक के सलाम करना चाहिए ।

बच्चों ने उत्तर दिया हमारे पिता ने हमें किसी से मिलते वक्त फतिह गजाने को कहा, हम वहीं गजाएंगे। सिर तो हमारा केवल एक अकालपुरख के आगे झुकता है या गुरु साहिब के आगे नवाब ने बच्चों को धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूलने को कहा, बदले में उन्हें कई लालच, पद की पेशकश की, पर बच्चों ने बेखौफ जबाब दिया हमनें गुरु नानक साहिब का कलमा पड़ा है,हमें किसी और कलमे को पड़ने की जरूरत नही ।

साहिबजादो का जबाब सुनकर कचहरी में सन्नाटा छा गया । सूचानन्द ने कहा नबाब साहिब जिन्हें आप मासूम समझ रहे हो, यह साँप के बच्चे है, हमेशा बागी रहेंगे । इसी तरह सूचानन्द ने  चाल चली उसने पूछा कि अगर आप को छोड़ दिया जाएं तो कहाँ जाओगे। साहिबजादो ने निडरता से जबाब दिया - हम अपने पिताजी की तरह सिखों की फौज बनाएंगे, और जुल्म के खत्म होने तक लडेंगे । साहिबजादे अपनी जिद्द पर अडिग रहे । नबाब ने उन बच्चों को अपनी दादी से मिलने की सलाह दी ।

 बच्चों की कोतवाली में पेशी -

आज दूसरी तरफ वजीर खां ने मलेर कोटला के नबाब शेर मुहम्मद खां को बुलाया, फिर से कचहरी लगी,फिर वही धर्म छोडने की बात, प्रलोभन दिएं गए। यह सुनकर साहिबजादा जोरावर सिंह जी ने ( जिनका जन्म 17 नवम्बर 1696 को हुआ। नाम के अनुसार बल से परिपूर्ण, ताकत के धनी थे, जो उस समय 9 वर्ष के थे) बुंलद आवाज में कहा "हम आपको अपना फैसला सुना चुके है, हमें हमारा धर्म जान से प्यारा है, इस लिए आप यह सोचने की गुस्ताखी कैसे कर सकते कि हम अपना धर्म त्याग देंगे जब की आप के दीन की सरार में साफ लिखा है कि जोर जबरदस्तीसे किसी का धर्म परिवर्तन कराना जायज नही है ।

बाबा फतिह जी (जो उस समय 7 वर्ष के थे जिनका जन्म 26 फरवरी 1699 को आंनदपुर में हुआ वे बोले "आप को याद होना चाहिये औरंगजेब ने हमारे दादा जी के सामने भी कई शर्तें रखी । उन्होंने जूती की नोक में ठुकराकर शहादत प्राप्त की । हम उसी दादे के पोते है । हम दूनियादारी के लालच में आकर अपना फैसला नही बदल सकते ।

मलेर कोटला का नारा - 

सूचानन्द को आग लग गई उसने मलेर कोटला के नबाब से कहा इन्हें मारकर गुरु गोबिन्द सिंह से अपने भाई, भतीजे को मारने का बदला ले लो । मलेर कोटला ने मना कर दिया और कहा मुझे बदला गोबिन्द सिंह से लेना है, इन बच्चों का कोई कसूर नही, मै बदला लूंगा । जंग के मैदान में गोबिन्द सिंह से लूंगा, इसलिए इन बच्चों को छोड़ दिया जाएं । हा का नारा मार के वो दरबार से चला जाता है। सूचानन्द के बार-बार भड़काने पर सूबा गुस्से में आया, उसने काजी को फतवा जारी करने को कहा।काजी ने उन्हें दीवारों में जिंदा चुनने का फतवा जारी किया।

साहिबजादो की शहादत | Guru Govind singh ke sahibjado ki shahadat.

साहिबजादो को चिनवाने से पहले कई असहनीय कष्ट दिएं गए । उन्हें भूखा रखा गया । चलती सर्द हवाओं में उन्हें बिन कपडे रखा गया । उनकी ऊँगली के ऊपरी भाग को आग से जलाया। कोड़े मारे गए उनके हाथों को पीपल से बाँधकर गूलेल मारी। इन सब कष्टों के बाबजूद बच्चे निडर रहे। कमाल की बात है साहिबजादो के चेहरों पर कोई खौफ नही, कोई डर नही, यह बात उन लोगों को बर्दाश्त नही हो रही थी।

दिल्ली के दो शाही जल्लाद शासल बेग और बासल बेग को बुलाया गया उन्हें कहा गया हम तुम दोनों का मुकदमा वापस ले लेंगे । अगर तुम इन दोनों को दीवारों में चुन दोगे, ज्ञातव्य हो उस समय कोई जल्लाद तैयार नही थे।

सबर, सिदक की एक बात समझने को है साहिबजादे मौत कबूल करने को तत्पर थे । नीहों में अडोल खडे होकर पाठ करते रहे। दीवारे ऊँची उठने लगी जब उन बच्चों के ऊपर पहुंची, बच्चे बेहोश हो गए, अब शासल बेग और बासल बेग ने उनके ऊपर बैठकर 12 दिसम्बर 1705 को उनकी नस काट दी । इस तरह वो सूरमे शहादत का जाम पी गए। एक कवि " कौम धर्म की राह के ऊपर मर सकते है, मुक नही सकते। सूरमाओं की गर्दन कट तो सकती, झुक नही सकती ।।

यह बच्चे हौसले, बहादुरी, समझदारी, अणख, दलेरी, सब्र के नाते बच्चे नही बाबे कहलाएं। असल में साहिबजादे कहलाने का हक गुरु गोबिन्द सिंह के बच्चों को जाता । इनकी शहादत से सुनहरी, लाशानी इतिहास की परिकल्पना हुई ।सिकखी की नीव की ईट बनकर सिख कौम को गौरवान्वित कर गए । इनसे आने वाली पीढी सदा प्रेरणा लेंगी।

वीर बाल दिवस कब मनाया जाता है ?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा हर वर्ष 26  दिसंबर को  वीर बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की । उन्होंने शहादत सप्ताह मनाने की बात कही । जिनका पहला veer bal diwas 26 दिसम्बर 2022 को मनाया जाएगा ।

वीर शहीदी दिवस - 

  • सिख कौम 22 दिसंबर से 28 दिसंबर तक शहादत के रूप में मनाती है।
  • माता गुजर कौर को ठण्डे बुर्ज की छत से नीँचे फेककर शहीद किया गया।
  • प्रसिद्ध गुरूद्वारे - जहाँ बडे साहिबजादे शहीद हुए, वहाँ कत्लगढ (शहीदगंज), गढ़ी साहिब, दमदमा साहिब, रणजीतगढ़ ।
  • जहां छोटे साहिबजादे शहीद हुए वहां गुरूद्वारा बुर्ज माता गुजरी विमानगढ़, जोती सरूप आदि ।

वीर बाल दिवस का महत्व । Veer bal diwas ka mahatwa. 

गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादें बाल नही बाबे, साहिबजादें है उनकी वीरता, बहादुरी, सिदक, हिम्मत, समझदारी, अणख यह सिद्ध करती है कि वो समूची विश्व के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करती है कि उन बच्चों ने अपने धर्म में अडिग रहते हुए जुल्म, मानव अधिकारों की क्षति के विरुद्ध शहादत दी । यह हम सबको अपने धर्म के लिए अडिग रहने की तथा जबर, जुल्म न स्वीकार करने की प्रेरणा देते है ।

अल्लाह यार खां जोगी ने बडे साहिबजादो की उसतति में शहीद-ए गंज में लिखा " अगर भारत में कोई महान तीर्थ स्थल है । जहां किसी पिता ने परमात्मा के हुक्म में अपने बच्चों को कुरबान कर दिया, तो यकीनन वो चमकौर की धरती है । अल्लाह यार खां जोगी ने शहीदान -ऐ -वफ़ा में छोटे साहिबजादो के  लिए कहा " बस एक तीर्थ है यात्रा के लिए। कटाएं बाप ने जहां बच्चे खुदा के लिए। उन्होंने तो गुरु गोबिन्द सिंह की उसतति में कहा" करतार की सौगंध है, नानक की कसम है। जितनी भी हो गोबिन्द की तारीफ़ वो कम है ।

जगदीश कौर प्रयागराज इलाहाबाद

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