आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ का जीवन परिचय । Acharya Shri Mahapragya biography in hindi.

आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ का जीवन परिचय । Acharya ShriMahapragya biography in hindi.


Acharya Shri Mahapragya biography in hindi.


Acharya Shri Mahapragya biography in hindi. भारतवर्ष एक ऐसा देश है जिसका विश्व के मानचित्र पर अनुपम स्थान है। यहां पर अनेकानेक जाति, भाषा, धर्म और दर्शन है। जैन धर्म इसमें एक है।  राग द्वेष विश्व विजेता को जिन कहते हैं और इनके द्वारा प्ररूपित धर्म जैन धर्म कहलाता है। कालांतर में इसकी दो शाखाएं हुई श्वेतांबर और दिगंबर । श्वेतांबर की एक प्रशाखा तेरापंथ है जो एक आचार, एक विचार और एक आचार्य की संयमित विचारधारा के कारण अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

तेरापंथ की स्थापना आचार्य भिक्षु के द्वारा की गई और तब से अब तक कुल ग्यारह आचार्य हुए हैं। तेरापंथ के महासूर्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ( Acharya shri mahapragya ) तेरापंथ के के दसवें अधिशास्ता हुए।

अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित तेरापंथ के दशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी न केवल तेरापंथ धर्म संघ के वरन् संपूर्ण मानव समाज के पुरोधा थे। उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। वे एक  महान् दार्शनिक एवं चलते-फिरते शब्दकोश थे। आप तेरापंथ के महासूर्य, महा तेजस्वी, महामनस्वी, कुशल दार्शनिक आचार्य थे। । Acharya Shri Mahapragya biography in hindi.


  • नाम - आचार्य श्री महाप्रज्ञ
  • वास्तविक नाम - नथमल
  • माता एवं पिता का नाम   बालूजी एवं  तोलाराम
  • जन्म - विक्रम संवत् 1977आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी टमकोर (14 जून 1920) 
  • दीक्षा - विक्रम संवत् 1687 माघ शुक्ला दशमी, सरदारशहर
  • अग्रगण्य - सन् 1944
  • साहाय्यपति - संवत् 2004 श्रावण शुक्ला त्रयोदशी, रतनगढ़
  • निकायसचिव - विक्रम संवत् 2022 माघ शुक्ला पंचमी, हिसार (सन्1966)
  • युवाचार्य मनोनयन - विक्रम संवत् 2035  माघ शुक्ला सप्तमी राजलदेसर ( 3फरवरी 1979)
  • आचार्य पद घोषणा -  विक्रम संवत् 2050  माघ शुक्ला सप्तमी, सुजानगढ़ (18 फरवरी, 1994)
  • आचार्य पदाभिषेक - विक्रम संवत् 2051माघ शुक्ला षष्ठी, दिल्ली (5 फरवरी, 1995)
  • युगप्रधान पदाभिषेक - विक्रम संवत् 2056 भाद्रव शुक्ला नवमी, दिल्ली 19  सितंबर (1999)
  • महाप्रयाण - विक्रम संवत् 2067. द्वितीय वैशाख कृष्णा एकादशी सरदारशहर (9 मई, 2010)

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श्री महाप्रज्ञ जन्म एवं नामकरण । । Acharya Shri Mahapragya biography in hindi.

आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म राजस्थान प्रांत के झुंझुनू जिले में टमकोर नामक गांव में विक्रम संवत 1977 आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी (14 जून 1920) के दिन गोधूलि बेला  में लगभग 4:40 पर हुआ।

नामकरण - सोमवार के दिन कृतिका नक्षत्र में माता बालू जी ने खुले आकाश में एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। सर्वप्रथम आपका नाम इंद्र चंद्र रखा गया लेकिन आपको इस नाम से लगभग कोई नहीं पुकारता था। फिर उसे परिवर्तित कर नथमल रखा गया। इसका एक विशेष कारण भी था। आपके  दो भाई छोटी आयु में ही काल कवलित हो गए थे । इसीलिए आपको दीर्घायु  बनाने हेतु नथ पहनाई गई । यह एक टोटका कहा जा सकता है और इसी कारण आपका नाम नथमल पड़ा।

श्री महाप्रज्ञ का पारिवारिक परिचय । Shri Mahapragy family -

राजस्थान के छोटे से ग्राम टमकोर में तोलाराम जी चोरड़िया के घर में माता बालू जी ने एक ऐसे होनहार और यशस्वी बालक को जन्म दिया जिसने मात्र 10 साल की अवस्था में दीक्षा ले ली।

आपके पिता श्री तोलाराम जी चोरड़िया थे । आप तीन भाई और दो बहनें थी । माता बल्लू जी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। आप के 2 भाई  बचपन में ही चले गए और जब आपकी उम्र मात्र ढाई महीने थी तभी आपके पिता इस दुनिया से विदा हो गए। माता बालू जी ने बालक नथमल में संस्कारों का बीजारोपण किया । साधु साध्वियों के दर्शन करना, सच बोलना, जप तप आदि सिखाया।

बचपन से ही संयमी जीवन उनका लक्ष्य बना। सौम्याकृति सरल स्वभाव के साथ-साथ गुरु तुलसी का वरद्हस्त आप को विरासत में मिला।  आपकी स्पष्ट वाणी, सरल मन, कोमल तन, गहन चिंतन, ठोस अध्ययन, कुशल समय प्रबंधन और इन्द्रियों का समुचित नियमन चकित कर देने वाला था। आपका दिल करूणा से भरा हुआ, मन ऋजुता से रंगा हुआ तथा तन संयम से सधा हुआ था । आपका नाम एक मौलिक चिंतक मूर्धन्य साहित्यकार, महान दार्शनिक एवं मनीषी संत पुरुष के रूप में लिया जाता रहा है |


श्री महाप्रज्ञ के जीवन के कुछ अंश एवं घटनाएं

बचपन से ही बालक नथमल को आकाश को देखने का शौक था। वे घंटों आकाश में देखते रहते। इसी प्रकार जब बहन गाय दूहती थी तो वे वहां प्याला लेकर बैठ जाते और दूध पीते जाते। आपको कभी विद्यालय जाने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। 

तेलिया की भविष्यवाणी -

जब नथमल 8 वर्ष का था, तब वह अपने साथियों के साथ घर के बाहर खेल रहा था। अचानक एक तेलियां वहां आया और तेल मांगने लगा। माता बालू जी ने एक बहन को तेल लाने रसोई घर में भेजा। अचानक तेलिया कहने लगा मां! तू बड़ी भागवान  है। बाहर जो तेरा बच्चा खेल रहा है वह एक दिन राजा बनेगा। बैठी महिलाओं के पूछने पर उसने तीन चार बातें बताई।बाद में वह सभी बातें सच घटित हुई। बाद में तेलिया को बहुत खोजा गया लेकिन वह नहीं मिला। 

कोलकाता की घटना -

नथमल जब नौ वर्ष के थे तब उनकी चचेरी बहन नानू बाई का विवाह था। विवाह में सम्मिलित होने के लिए जाते समय वह कोलकाता में अपनी बुआ के घर ठहरा। शादी के लिए कुछ सामान खरीदना था और दुकान के मुनीम सामान खरीदने के लिए बाजार गए तो नथमल भी उनके साथ हो गया। वे दोनों अपनी खरीदारी में व्यस्त हो गए और बालक नथमल जो पहली बार कोलकाता आया था पीछे अकेला रह गया । अपरिचित स्थान में वह किसी को नहीं जानते थे लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया और अपने हाथ की घड़ी और गले की चैन को खोल कर जेब में रख लिया तथा अकेले चल पड़े लेकिन न जाने कैसे हुआ लेकिन वह अपने घर पर पहुंच गए। इससे उनकी प्रत्युत्पन्न बुद्धि का आभास सहज ही होता है

वैराग्य के अंकुर -

संवत 1987 में मूनि छबील मल जी का चातुर्मास टमकोर में था। उस समय बालक नथमल लगभग 10 वर्ष के थे। मुनि श्री छबील जी और उनके सहवर्ती साधुओं के द्वारा बालक को प्रेरणा दी गई और नथमल में वैराग्य के अंकुर प्रस्फुटित हो गए। अपनी भावना मां के समक्ष रखी और मां ने कहा मैं भी साध्वी बनना चाहती थी किंतु तुम छोटे हो इसलिए मैंने दीक्षा नहीं ली। उनके बाबोसा श्री बालचंद जी ने उनकी वैराग्य की परीक्षा ली और समझ गए कि इसकी भावना सच्ची है।

विक्रम संवत 1987 में कार्तिक महीने में पूज्य कालू गणी ने माता पुत्र दोनों को दीक्षा की स्वीकृति प्रदान कर दी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुनि तुलसी के द्वारा हुई। संवत 1987 माघ शुक्ला दशमी की पावन बेला में श्री भैंरुदास जी भंसाली के बाग में पूर्ण परिषद के बीच में नौ दीक्षा हुई जिनमें आपके साथ माता बालू जी की दीक्षा भी हुई। 

प्रारंभ में आप साधारण बुद्धि के संत थे किंतु समय के साथ साथ आपकी प्रज्ञा इस प्रकार विकसित हुई कि आप मुनि नथमल से महाप्रज्ञ बन गए। आपने मात्र 36 दिनों में पूरा उत्तराध्ययन  सीख लिया। आपने 300 से भी अधिक पुस्तकों की रचना की जिसमें संस्कृत भाषा के ग्रंथ भी शामिल है। आगम संपादन के कार्य में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्कृत प्राकृत भाषा पर आपका अच्छा अधिकार था। आपको कई आगम कंठस्थ थे।

Acharya Shri Mahapragya ke vichar.


आचार्य महाप्रज्ञ के विचार एवं साहित्य और प्रेक्षाध्यान | । Acharya Shri Mahapragya ke vichar -

आपका साहित्य सृजन अत्यंत विशाल है । आपने 300 से भी अधिक पुस्तकों का सृजन किया जिसमें संस्कृत भाषा में लिखी गई संबोधि को जैन धर्म की गीता कहा जाता है तो जैन दर्शन मनन और मीमांसा में जैन दर्शन के गुढ तत्वों का समावेश किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति माननीय अब्दुल कलाम आजाद के साथ Happy and harmonious family आज के युग में अत्यंत महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। आपका संस्कृत प्राकृत का ज्ञान अद्भुत था । आप घंटों इन भाषाओं में प्रवचन कर सकते थे। आपको चलता फिरता शब्दकोश कहा गया। आगम संपादन का दुरूह कार्य करने में आपकी प्रज्ञा स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

आपके द्वारा प्रदत प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान प्रकृति के अनमोल खजाने हैं जिन्हें आपने अपनी प्रज्ञा, अनुसंधान, मेहनत एवं वर्षों की अनवरत साधना के द्वारा जन-जन तक पहुंचाया तथा विज्ञान, दर्शन और बुद्धि के बल पर उसे सिद्ध किया ।

Acharya shri Mahapragya अहिंसा पर देते थे । उनका मानना था कि हिंसा से जीता नहीं जा सकता है । अहिंसा सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ।

Acharya shri mahapragya के पुरस्कार

आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जीवन स्वयं में एक पुरस्कार है। कहा गया पुरुस्कार उनसे पुरस्कृत हो गए। आपको समय-समय पर अनेक उपाधियों और अलंकरण से अलंकृत किया गया जैसे जैन योग पुनरुद्धारक, आज का विवेकानंद, महाप्रज्ञ, युग प्रधान, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, लोक महर्षि शांति दूत अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, सांप्रदायिक सद्भावना मदर टेरेसा राष्ट्रीय शांति पुरस्कार आदि ।

Acharya Shri Mahapragya biography and Journey in hindi.

जैन दर्शन के महत्वपूर्ण अवदान | Jain Darshan ke Mahatwapurn Awadan kya hai -

Acharya Shri Mahapragya तेरापंथ धर्म संघ के एक दैदीप्यमाननक्षत्र है जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण मैनेजमेंट का सुनहरा पन्ना था। आपने अपनी योग्यता, शालीनता, सकारात्मक सोच तथा कर्तृत्व शैली के द्वारा तेरापंथ धर्म संघ को प्रगति के उच्च शिखर पर आरोहित किया और देश-विदेश में नए नए आयाम स्थापित किए।

युवाचार्य महाश्रमण एवं अपनी धवल सेना के साथ सतत प्रयत्न एवं श्रमशील रहते हुए आपने पूर्व आचार्यो के सपनों को न केवल साकार किया वरन् उन्हें नई ऊंचाई भी प्रदान की । प्रेक्षा ध्यान जीवन विज्ञान के द्वारा आपने मनुष्य को स्वयं के भीतर झांकने की प्रेरणा दी तो अहिंसा यात्रा द्वारा गांव-गांव, गली- गली में अहिंसा की अलख जगा दी।

आचार्य प्रवर की 9 दशक की जीवन यात्रा पर चिंतन मनन किया जाए तो पीढ़ियों तक संस्कारों की पौध को सुरक्षित रखा जा सकता है। उनके विराट व्यक्तित्व को शब्दों में बयान करना सूरज को दीपक दिखाना है। आप एक व्यक्ति नहीं वरन संपूर्ण संस्कृति, इतिहास, दर्शन और विज्ञान के पर्याय थे। आज के भौतिकवादी युग में आपकी वैचारिक परिपक्वता, दूरदर्शिता, जागृत प्रज्ञा युगो युगो तक अखिल विश्व का पथप्रदर्शन करती रहेगी ।

एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका भूत भविष्य वर्तमान में कोई सानी नहीं हैं जो युगों युगों तक मानवता के मसीहा के रूप में हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा और जिनकी प्रज्ञा के आलोक में संपूर्ण विश्व आलोकित रहेगा । ऐसे युग प्रवर्तक और महान दार्शनिक, शांति दूत तेरापंथ के दशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के चरणों में आस्थासिक्त नमन। ऐसे युग प्रणेता, युग प्रचेता, युग निर्माता अध्यात्म के महासूर्य Acharya Shri Mahapragya को श्रद्धापूर्ण श्रद्धांजलि, शत शत नमन ।

मीना दुगड़ कोलकाता

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