डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस की अमर कहानी । Dr Kotnis Ki Amar Kahani.

डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस की अमर कहानी । Dr Kotnis Ki Amar Kahani.


Dr Kotnis Ki Amar Kahani.


Dr Kotnis Ki Amar Kahani. भारत के भूतपूर्व रक्षा मंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडिस ने सामरिक दृष्टि से चीन को भारत के शत्रु देश के रूप में प्रथम स्थान पर रखा था। हाल ही में भारत-चीन सीमा पर घटी घटनाएं और चीन का बढ़ता पाकिस्तानी प्रेम इस तथ्य को सही उजागर करता है। चीन भले ही भारत का शत्रु है और उसकी रणनीति हमेशा से पड़ोसियों के प्रति विस्तारवाद की रही है। परंतु आपको पता है कि चीन में एक भारतीय को एक नायक की तरह माना जाता है और उनका चीन में बहुत सन्मान किया जाता है। 

आज के लेख में आज एक ऐसे भारतीय चिकित्सक ( Dr. Kotnis ) की बात होगी जिसे चीन में एक नायक की तरह पूजा जाता है और उन्हें आजतक भारत-चीन मैत्री का प्रतीक माना जाता है। तो चलिए जानते है - Dr Kotnis Ki Amar Kahani.

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डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस की अमर कहानी । Dr Kotnis Ki Amar Kahani.

भारतीय चिकित्सक जिसने बिना किसी स्वार्थ के सन 1938 के चीन-जापान युद्ध के समय घायल चीनी सैनिकों को चिकित्सीय सहायता प्रदान की थी। उनकी कर्तव्य निष्ठा, कर्तव्य के प्रति समर्पण व दृढ़ता देख कर चीन के सैन्य अधिकारी भी हैरान थे।

 उस चिकित्सक का नाम डॉक्टर द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस है ( Dr. Dwarkanath shantaram kotnis ) जिन्हें चीन अपना नायक मानता है। जिन्हें उनके चीनी नाम दे डहुआ के नाम से भी जाना जाता है। भारत-चीन की मित्रता और सहयोग के लिए एक उदहारण रूप में डॉ. द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस को दोनों देशों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है ।

When was Dwarkanath Kotnis born ?

डॉक्टर द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में 10 अक्टूबर 1910 को हुआ। उनके परिवार में दो भाई और पाँच बहनें थी। 

डॉ. द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस ने बॉम्बे (वर्तमान नाम मुंबई) के 'सेठ जी. एस. मेडिकल कॉलेज' से चिकित्सा में स्नातक  किया था। 

डॉ. कोटनिस को चीन क्यो भेजा | Why was kotnis sent to China ?

सन 1938 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया। चीन के पास विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी थी। कम्युनिस्ट नेता जरनल माओ ज़हू दे (Mao Zhu De) ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से कुछ चिकित्सकों के दल को भेजने का अनुरोध किया। उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नेता जी सुभाष चंद्र बोस थे। उन्होंने 30 जून 1930 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के लोगों से सहायता अनुदान इकट्ठा करने का  अनुरोध किया।

 आप ने डॉक्टर विशेषज्ञों की टीम, 22,000 रुपये का अनुदान और एम्बुलेंस भेजने की व्यवस्था की थी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने मॉडर्न रिव्यु' (Modren Review) में एक लेख के माध्यम से जापान की उस समय की भूमिका को ले कर कई प्रश्न उठाए और जापान की घोर निंदा की।

 इस मिशन का मुख्य उद्देश्य यह था कि एक देश भारत जो उस समय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था उसकी और से दूसरे पड़ोसी राष्ट्र चीन की सहायता के लिए उठाया गया एक सहयोगी कदम था और चीन भी उस समय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था। सन 1939 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की चीन यात्रा से इस मिशन को और बल मिला था। तब तक नेता जी सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे चुके थे।

पाँच सदस्यीय दल के साथ चीन में जाने के डॉ. कोटनिस का चुना जाना। Dr Kotnis Ki Amar Kahani. 

डॉ. द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस उस समय   स्नातकोत्तर की तैयारी करने में व्यस्त थे। डॉ. द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस को 'पाँच सदस्यीय' दल के साथ चीन में जाने के लिए  चुना गया। उन 'पाँच सदस्यीय' दल के जो सदस्य चुने गए थे - उनमें डॉ. एम. अटल (इलाहाबाद से), एम चोलकर (नागपुर से), डॉ. द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस (सोलापुर से) बी. बसु और दिवेश मुखर्जी (दोनों कोलकत्ता से)।  डॉ. एम. अटल इस पाँच सदस्यीय टीम के 'मुखिया' थे।   

Which country is to set up a honorary statue of Indian doctor Dwarkanath Kotnis ?

डॉ. द्वारिकानाथ शांताराम कोटनिस को जब इसकी जानकारी मिली उन्होंने अपने परिवार से चीन जाने की अपनी स्वेछा से अनुमति मांगी। उस समय उनके परिवार के सदस्यों को चीन के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। उनको बस इतना ही ज्ञान था कि चीन उस समय एक युद्ध क्षेत्र था। आपके पिता जी ने आपको जाने के लिए प्रोत्साहित किया और प्रसन्ता से उनको जाने की अनुमति दे दी। पर उनकी माँ उनके जाने से दुखी थी, क्योंकि चीन एक युद्ध क्षेत्र था। आप स्वयं भी जाने के इच्छुक थे। 

सबसे पहले भारत ने अपना चिकित्सीय  दल चीन में भेजा । Dr Kotnis Ki Amar Kahani. 

यह पहला चिकित्सकों का दल था जो किसी भी एशियाई देश से चीन में चिकित्सीय सहायता देने के लिए पहुँचा था। मिशन टीम पहले चीन की वुहान (Wuhan) की बंदरगाह 'हनकोउ (Hankou)' पहुँची।  वहाँ से उन्हें यानान' (Ya'nan) भेजा गया।  यहाँ 'जरनल माओ ज़हू दे' (Mao Zhu De) और अन्य कम्युनिस्ट नेताओं ने संपूर्ण भारतीय दल का गर्मजोशी से स्वागत किया। घायल सैनिकों के उपचार के लिए इस चिकित्सकों के दल में डॉ. कोटनिस ने पाँच वर्ष तक चीन में अपना कार्य किया। बाद में डॉ. कोटनिस चीन की सेना में भर्ती हो गए। अन्य चिकित्सकों के सदस्य तो बाद में भारत लौट गए पर डॉ. कोटनिस भारत वापस नहीं आए। उन्होंने चीन में ही रहने का निर्णय लिया।

What was Dr Kotnis contribution to the Dr Bethune International Peace Hospital in China ?

Dr. Kotnis को युद्धभूमि में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनको दवाइयों और मेडिकल समान की कमी से भी जूझना पड़ा था। डॉ. कोटनिस ने बिना किसी आराम और नींद के 72 घंटो तक घायल सैनिकों का ऑपरेशन किया। उन्होंने 800 चीनी सैनिकों का उपचार किया। उनकी कर्तव्य निष्ठा को देख कर चीनी सेना के अधिकारी हतप्रभ थे। 

डॉ. बेथ्यून इंटरनेशनल पीस हॉस्पिटल के निर्देशक के रूप में नियुक्ति

डॉ. कोटनिस के कार्य को देख कर अंततः उन्हें प्रसिद्ध कनाडाई सर्जन नॉर्मन बेथ्यून (Norman Bethune) के नाम पर बने डॉ. बेथ्यून इंटरनेशनल पीस हॉस्पिटल (Dr. Bethune Peace International Hospital) के निर्देशक के रूप में नियुक्त किया गया। आपको डॉ. बेथ्यून हिगिएने विद्यालय (Dr. Bethune Higiene School) में व्याख्यान कर्ता (Lecturer) भी नियुक्त किया गया था। 

Dr Kotnis wife and son.


डॉ. कोटनिस का विवाह और बेटे का जन्म । Dr Kotnis wife and son.

1940 में डॉ. कोटनिस की मुलाक़ात अपने ही अस्पताल की नर्स गुओ क्विंगलान ( Nurse Guo Qinglan) से डॉ. बेथ्यून (Dr. Bethune) के मकबरे के उद्धाटन पर हुई। डॉ. कोटनिस से मिल कर गुओ क्विंगलान उनके प्रति आकर्षित हो गई। क्योंकि डॉ. कोटनिस एक जो भारतीय थे और उनका चीनी भाषा पर पूरा अधिकार था। 

Dr. Kotnis चीनी भाषा पढ़ना और लिखना जानते थे। यह देख कर गुओ क्विंगलान (Guo Qinglan) उनसे बहुत प्रभावित हुई। इन दोनों ने सन 1941 में विवाह कर लिया। 23 अगस्त 1942 को इन दोनों के बेटे का जन्म हुआ। जिसका नाम यिनहुया (Yinhua) रखा गया - जिसका अर्थ है  भारत (यिन/Yin) और चीन (हुया/Hua)।

भारत में अपने परिवार से नियमित रूप से पत्र व्यवहार

डॉ. कोटनीस ने चीन से कई पत्र भारत में अपने परिवार को लिखें। जिसमें उन्होंने विस्तार से चीन के बारे में वर्णन किया। इन पत्रों को पढ़ कर उनके परिवार ने चीनी संस्कृति और चीनी जीवन के बारे में जाना। जो बहुत ही मजेदार अनुभव था उनके परिवार के लिए।

डॉ. कोटनिस की अल्पायु में मृत्यु और संस्कार | When did Dr Kotnis died ?

चीन में एक फ्रंट लाइन डॉक्टर के रूप में तनावपूर्ण नौकरी की कठिनाइयों ने आखिरकार उनके स्वास्थ पर अपना असर डालना शुरू कर दिया और उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया। जिससे डॉ. कोटनिस की 09 दिसंबर 1942 को मिर्गी' नामक बीमारी से मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु हो गई। डॉ. कोटनिस की मृत्यु के समय उनके पुत्र  यिनहुया ( Yinhua) की आयु मात्र 03 माह थी।

डॉ. कोटनिस के डॉ. कोटनिस का अंतिम संस्कार नानक़्वान गाँव (Nanquan Village) हीरोज कोर्टयार्ड (Heroes Courtyard) के में किया गया। डॉ. कोटनिस को वहाँ  दफनाया गया था। डॉ. कोटनिस की मृत्यु पर चीनी अधिकारी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि सेना ने अपनी सहायता करने वाला हाथ खो दिया। राष्ट्र ने अपना एक मित्र खो दिया है। आइए हम हमेशा उनकी याद में अंतर राष्ट्रीय वादी भावना को ध्यान में रख कर कार्य करें। तभी उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ये भी कहा जाता है कि अपने अंतिम दिनों में डॉ. कोटनिस ने कम्युनिस्ट पार्टी' की सदस्यता ग्रहण कर ली थी, पर इसकी पुष्टि कही नहीं मिलती। 

डॉ. कोटनिस की पत्नी व बेटे का निधन | Guo Qinglan death.

Dr. Kotnis के निधन के बाद उनके बेटे यिनहु (Yinhua) ने उनकी परंपरा को  आगे बढ़ाने का फैसला किया और मेडिकल की शिक्षा ली। लेकिन वे अपने पिता के कदमों पर चल पाते, उससे पहले ही 1967 में उनका देहांत हो गया। यिनहुआ मेडिकल कॉलेज से ग्रुजेएट होने वाले थे और मेडिकल लापरवाही को उनकी मौत क कारण बताया गया। 

अपने पति और बेटे को खोने के बाद गुओक्विंगलान (Guo Qinglan) 2012 में दुनिया छोड़ने तक अकेली रहीं। 28 जून 2012 में 96 वर्ष की आयु में गुओक्विंगलान (GuoQinglan) का निधन डालियान' पूर्वोत्तर चीन/ 'Dalian' Northeastern China में हो गया। 

डॉ. कोटनिस के परिजनों से मिलने मुंबई आती थीं गुओ क्विंगलान (Guo Qinglan) 

 श्रीमती गुओ क्विंगलान (Guo Qinglan) के मन में भारत के प्रति अटूट प्रेम था। वे एक बार डॉ. कोटनिस के परिवारजनों से मिलने के लिए भारत आईं।  इसलिए डॉ. कोटनिस की याद में उन्होंने 'माई लाइफ विद कोटनिस' (My Life with Dr. Kotnis) भी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा है कि भारत और भारत के लोग बहुत अच्छे हैं शायद यह सब वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। जिसके कारण भारतीयों की अलग ही पहचान है। 

डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस पर फ़िल्म | Dr. Kotnis movies.

1. उनके जीवन की कहानी 'डॉ. कोटनिस की अमर कहानी' (1946, अंग्रेजी: द इम्मोर्टल स्टोरी ऑफ डॉ. कोटनिस/1946 English : The Immortal Story of Dr. Kotnis) शीर्षक वाली एक हिंदी फिल्म का विषय थी, जिसे ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा लिखित और वी. शांताराम द्वारा निर्देशित किया गया था,  जिन्होंने फिल्म में कोटनिस का भी किरदार निभाया था।

2. उनका जीवन 'हुआंग ज़ोंगजियांग' (Huang Zongjiang) की एक पटकथा के साथ एक चीनी फिल्म कू द हुआ दाई फू'/Di Hua Dai Fu (1982, डॉ. डी.एस. कोटनिस) का भी विषय था। 

डाक टिकटों के द्वारा भारत और चीन की और से सम्मान । Dr. Dwarkanath awards -

चीन (1982 और 1992) और भारत (1993) दोनों देशों ने डॉ. द्वारिका नाथ कोटनिस के सन्मान में डाक टिकटों को जारी कर उन्हें  सम्मानित किया।

चीन के नेता जब भी भारत की आधिकारिक यात्रा पर होते है तो डॉ कोटनिस के परिवार से जरूर मिलते है।

चीनी सरकार का हर उच्च स्तरीय अधिकारी या राजनेता आधिकारिक यात्रा के दौरान भारत में डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस के सगे-सम्बन्धियों, रिश्तेदारों से जरूर मिलते है और उनका सम्मान करते रहते है। चीन के नेता जो उनके रिश्तेदारों (मुख्य रूप से बहनें) से मुंबई या पूना में मिलने गए थे उनकी सूची निम्नलिखित हैं :-

  • 1950 में भूतपूर्व प्रीमियर 'झोउ एन-लाई' ( Ex Premier Zhou En-lai)।
  • 1996 में भूतपूर्व राष्ट्रपति 'जियांग जेमिन' (Jiang Zemin) ने भारत का दौरा किया, उन्होंने कोटनिस परिवार को फूल भेजे।
  •  2001 में तत्कालीन प्रीमियर 'ली पेंग' (Premier Li Peng)।
  • 2002 में तत्कालीन प्रीमियर 'झू रोंगजी' ( Premier Zhu  Rondgji)।
  • 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति 'हू जिंताओ' (Hu Jintao) ।

वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग' (Xi Jinping) - जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष का पद भी विराजमान हैं और उन्हें चीन का  सर्वोपरि नेता माना जाता है - सितंबर 2014 के दौरान डॉ द्वारिकानाथ कोटनिस की  बहन मनोरमा से मिले।

चीन में डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस का स्मारक

उत्तरी चीनी प्रांत 'हेबेई' (Hebei) के शीज़ीयाज़ूआंग' (Shijiazhuang City) शहर में शहीद स्मारक पार्क एक प्रसिद्ध आकर्षण का केंद्र है। इसी पार्क में डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस का स्मारक है। पार्क का उत्तर और दक्षिणी  भाग कोरियाई और जापानी युद्ध के दिग्गजों को समर्पित हैं। पश्चिम की ओर डॉ. नॉर्मन बेथ्यून' (Dr. Norman Bethune) को समर्पित है, जिन्होंने चीनियों के लिए लड़ाई लड़ी और दक्षिण की ओर डॉ द्वारिकानाथ कोटनिस' को समर्पित है। 

उनके सम्मान में एक बड़ी मूर्ति है। एक छोटे से संग्रहालय में शब्दावली की एक पुस्तिका है जिसे डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस ( Dr. Kotnis ) ने भारत से चीन की यात्रा पर लिखा था; कुछ उनके उपकरण हैं जो सर्जन जीवन के लिए अपनी चिकित्सा लड़ाई में उपयोग करते थे, और उनके चित्रों में - डॉक्टरों की विभिन्न तस्वीरें, कुछ माओ (Mao) सहित चीन की सबसे प्रभावशाली कम्युनिस्ट पार्टी की हस्तियों के साथ हैं।

भारत में डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस का स्मारक

डॉ. द्वारकानाथ शांताराम कोटनिस का स्मारक 01 जनवरी 2012 को उनके जन्मस्थान सोलापुर में स्थापित किया गया है। स्मारक, उनके पुराने निवास पर, सोलापुर में बनाया गया है।

2017 में, चीन ने मुंबई विश्वविद्यालय को 'माओत्से तुंग' (Mao Zedong) द्वारा 1950 में उनकी मृत्यु पर डॉ. कोटनिस के परिवार को लिखा गया एक हस्तलिखित शोक पत्र प्रस्तुत किया।

What sort of person was Dr. Kotnis ?

आज से 84 वर्ष पहले चीन के वुहान से जिस सफ़र का आरंभ हुआ था। आज एक बार फिर 'वुहान' (Wuhan)  से ही कोरोना नामक महामारी' संपूर्ण विश्व के लिए एक चुनौती के रूप में प्रकट हुई है, जिससे संपूर्ण मानव जाति के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। अट्ठाइस वर्षीय डाॅ. कोटनिस सर्वप्रथम उसी वूहान' (Wuhan City) शहर पहुंचे थे, जिसे आज हम कोरोना सिटी/Covid City (शहर) के नाम से जानते है। उन्होंने वहां रोगियों की निस्वार्थ  सेवा की थी। 

आज संपूर्ण विश्व को डॉ. कोटनिस जैसे कर्मठ, निष्ठावान, कर्तव्य के प्रति समर्पित निस्वार्थ युवा चिकित्सकों की आवश्यकता हैं, जो मानव जाति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हो। न केवल भारत और चीन बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस का जीवन एक प्रेरक प्रसंग है और संपूर्ण विश्व को मानवतावादी सोच के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए। 

भारत को Dr. Kotnis सपूत पर हमेशा गर्व रहेगा। भारत और चीन को भी आपसी मतभेद भुला कर  संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए कार्य करने चाहिए। ये ही डॉ. द्वारिकानाथ कोटनिस को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। Lokesh kumar joshi.

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