महादेवी वर्मा का जीवन परिचय । Mahadevi Varma Biography in hindi.

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय । Mahadevi Varma Biography in hindi.


Mahadevi Varma Biography in hindi.

Mahadevi Varma Biography in hindi.  छायावादी युग की साहित्यकार कवियत्री न निबन्धकार, वेदना व करूणा भाव की महातिर अदाकारा, आधुनिक युग की मीरा जैसा नाम पाने वाली, अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को झकझोर सकने वाली कलाकार महादेवी वर्मा जी का नाम हिन्दी भारतीय साहित्य के गगनांचल में स्वर्णीक्षरो में सदा सर्वदा अंकित रहेगा । 

हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक मीरा के नाम प्रसिद्ध लेखिका / कवियत्री Mahadevi Varma जाने माने कवियों में से एक थी । महादेवी वर्मा एक कुशल अध्यापिका के रूप में सेवा देती रही । प्रयाग महिला विद्यापीठ की उपकुलपति के पद पर भी इन्होंने सेवा दी । इनके रचनाओं पर सरकार ने ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया । तो चलिए जानते है महादेवी वर्मा का जीवन परिचय । Mahadevi Varma Biography in hindi.

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय । Mahadevi Varma Biography in hindi.

  1. नाम - महादेवी वर्मा
  2. जन्म - 24 मार्च सन् 1907 ई०
  3. जन्म स्थान - फर्रुख़ाबाद , उत्तर प्रदेश
  4. पिता का नाम - श्री गोविन्द सहाय वर्मा
  5. माता का नाम -  श्रीमती हेमरानी देवी
  6. पति का नाम - डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा
  7. भाई का नाम - जगमोहन वर्मा एवं महमोहन वर्मा
  8. बहन का नाम - श्यामा देवी
  9. सखी का नाम - श्रीमती हेमरानी देवी
  10. मृत्यु 11 सितम्बर सन् 1987 ई. ।

महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय । Mahadevi Varma Biography in hindi.

महादेवी वर्मा जी का जन्म बासन्ती हवाओं में होली पर्व के सुअवसर पर, जब लोग ऊनी कपडो़ से निजात पाने और सूती कपडो़ के आनन्दानुभूति चाहने को लालायित होते हैं उसी बेला में 26 मार्च को सन् 1907 ई. में हुआ था। जिस धरा को अलंकृत किया वह थी उत्तर प्रदेश की फर्रुखाबाद की सरजमीं, जो घर आंगन को आहलादित कर रही थी । घर में इनकी माता श्रीमती हेमरानी वर्मा व पिता श्री गोविंद वर्मा के अतिरिक्त इनके नाना श्री  ब्रजनाथ वर्मा भी थे।                       

महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन । Mahadevi varma marriage life.

महादेवी वर्मा जी बाल्यकाल से ही भग्वद्भक्त थीं, ये बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहती थीं, मगर इनके नानाजी जो स्वयम् ब्रजभाषा के सुप्रसिद्ध कवि थे, बरेली के नबाबगंज के पास रहने वाले स्वरूप  नारायण वर्मा के साथ अल्पायु में ही कर दिया। इनका विवाह जिस समय में हुआ विवाह होता क्या है, इसकी समझ इनको थी ही नही । 

विद्वानों के अनुसार अपने घर शायद एकाध बार भले गयी हों ज्यादा वृतांत नहीं मिलता। अपरंच यह कहा जाता है कि  इनके पति स्वयम् ही इन्हीं के यहाँ रहे। कुल मिलाकर अगर यह कहा जाय कि इनका वैवाहिक जीवन सुमधुर नहीं कहा जा सकता क्योंकि विचार समता नहीं थी,कहा तो यह भी जाता है कि महादेवी वर्मा की सोच ही कुछ अलग तरह की थी।                   

महादेवी वर्मा की शिक्षा |  Mahadevi varma education.

महादेवी वर्मा जी की प्रारम्भिक शिक्षा पडो़स के विद्यालय जो कि इन्दौर में था । सन् 1921 ई. में कक्षा आठ की परीक्षा प्रान्त स्तर पर प्रथम स्थान से उत्तीर्ण की । वैसे घर पर  ही आने वाले अध्यापकों से ही संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत व चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की । ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थीं। इलाहाबाद,  प्रयागराज से सन् 1932 ई. में इन्होने संस्कृत विषय से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कीं ।                                   

महादेवी वर्मा की रचनाएँ । Mahadevi varma Chief Creations. -

महादेवी वर्मा ने यद्यपि गद्य और पद्य दोनों विधाओं से हिन्दी साहित्य की सेवा कीं, मगर विशेष रूझान पद्य की ही तरफ रहा । प्रमुख रूप से इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

1.  वेदना का स्वर और भावमय गीत का संकलन देखने हेतु रचना नीहार है।

 2. आत्मा व परमात्मा के मधुर सम्बन्धों पर आधारित रचनाएँ रश्मि काव्य में हैं। 

 3. प्रकृति प्रधान गीतों का अध्ययन आनन्द हेतु रचना नीरजा में है।

 4. परमात्मा से मिलन की अनुभूति प्राप्त करने के लिए सांध्यगीत है ।  

 5. रहस्यभावना प्रधान गीतों का संकलन दीपशिखा में है।  इसके अलावा गद्य साहित्य में अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, श्रृंखला की कड़ियाँ प्रमुख हैं ।

 महादेवी जी का विशिष्ट गीतों का संग्रह  यामा नामक  रचनाकृति में है। इनकी दो और प्रमुख कृतियाँ 1. सन्धिनी 2. आधुनिक कवि भी इन्हीं गीतों के संग्रह में ही है। 

काव्य संग्रह - हिमालय, निहार, दीपशिखा, रश्मि, नीरजा, सान्ध्यगीत एवं सप्तपर्णी आदि ।

गद्य साहित्य - मेरा परिवार, अतीत के चलचित्र, क्षणदा, स्मृति की रेखाएँ, परिक्रमा व पथ के साथी आदि ।

निबंध - साहित्यकार की आस्था, श्रृखला की कड़ियाँ, विवेचनात्मक गद्य एवं अन्य निबंध आदि रचनाएं शामिल  है।

साहित्य में स्थान । Mahadevi Varma Place In Literature -

छायावादी युग के चार प्रमुख साहित्यकारों प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी वर्मा को आधार स्तम्भ माना गया है।अनेक विद्वानों ने इन्हें युग चतुष्टय से सम्बोधित किया है। यद्यपि महादेवी वर्मा के हिन्दी साहित्य को अपना अमूल्य योगदान काव्य क्षेत्र में ही मिला है तथापि उनके द्वारा रचित गद्य साहित्य का अर्थ गाम्भीर्य एवम् चित्रात्मकता की दृष्टि से अपना भी विशिष्ट स्थान रखता है। 

महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ

हिन्दी साहित्य जगत में जब भी छायावाद की चर्चा छेड़ी जायेगी तो छायावाद चतुष्टय में जहाँ कामायनी के रचनाकार श्री जय शंकर प्रसाद, प्रकृति के सुप्रसिद्ध चतुर चितेरे कहे जाने वाले श्री सुमित्रा नन्दन पंन्त और पंडित सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला जी याद किए जायेंगे । वहीं बिना महादेवी का नाम लिए बगैर छायावाद हमेशा ही अधूरा ही रहेगा। कारण कि इन त्रिवेणियों के साथ चौथे स्तम्भ में  सुश्री महादेवी वर्मा भी आदर पूर्वक हमेशा स्मरण की जाती रहेंगी ।       

इनके पारिवारिक परिवेश में इनकी माता श्रीमती हेमरानी वर्मा जी भी तो कुशल कवियत्री थीं । इनके नाना भी सुप्रसिद्ध ब्रजभाषा के कवि रहे हैं। इनके पिताजी भी इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य थेतथा स्वयम् तो कुशाग्र बुद्धि थी हीं। अतः इनकी रचनाओं में पारिवारिक छाप जो रहनी चाहिए थी वह स्पष्ट झलकती भी है।                              

1. प्रकृति का मानवीकरण -  महादेवी वर्मा के साहित्य में प्रकृति आलम्बन, उद्दीपन, उपदेशक, पूर्व पीठिका रूप में प्रस्तुत हुई है। उन्होंने प्रकृति पर मानवीय भावनाओं का आरोप करके उसे आत्मीय बना लिया है ।

 धीरे धीरे उतर क्षितिज से आ बसन्त रजनी 
तारकमय नववेणी बन्धन। 
शीश फूल कर शशि का नूतन 
रश्मि वलयसित दान अवगुण्ठन 
 मुक्ताहल अभिराम बिछा दे चितवन से अपनी। 

वेदनाभाव - काव्य साहित्य में महादेवी वर्मा जी को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है उसका कारण यह है कि इनकी रचनाओं में वेदना स्पष्ट झलकती है। महादेवी जी को वेदना अधिक प्रिय है। इनकी कामना है कि उनके जीवन मेंसदैव अतृप्ति बनी रहेऔर उनकी आँखों से निरन्तर आँसुओं की धारा बहती रहे। 

 मेरे छोटे जीवन में न देना तृप्ति का कणभर। 
 रहने दो प्यासी आँखें, भरती आँसूँ के सागर ।   

जिस प्रियतम की प्राप्ति वेदना में हुई हैउस प्रियतम में वे पुनः वेदना को ढूँढ़ने की आकांक्षा रखती हैं। इन पंक्तियों के रूप में - तुमको पीड़ा में ढूँढ़ा, तुममें ढूँढी़ पीडा़ । 

महादेवी वर्मा की कलापक्षीय विशेषताए         

सूक्ष्म अप्रस्तुत विधान - अपने विषय को प्रभाव शाली बनाने के लिए कविगण उपमानों का सहारा लेते हैं। वैसे ये उपमान भी दो तरह के होते हैं । 1. स्थूल 2. सूक्ष्म । साँसों को सौरभ के समान बताते हुए महादेवी जी ने कहा कि -     

 इन पर सौरभ की साँसें लुट लुट जाती दीवानी।।  

इस दृष्टि से महादेवी जी का काव्य भव्य दिखाई देता है। इन्होंने थोड़े से शब्दों के माध्यम से अनेक चित्र प्रस्तुत किये हैं।                 

देखकर कोमल व्यथा को आँसुओ के सजल रथ में       
मोम सी साधें बिछादी थीं इसी अंगार पथ में ।

प्रतीक योजना - बदली, सांध्यगगन, सरिता, द्वीप आदि तमाम तत्सम शब्दों का प्रयोग इन्होंने प्रतीक के रूप में किया है । जैसे मैं नीर भरी दुःख की बदली। यहाँ पर बदली का प्रयोग करूणा से परिपूर्ण हृदयावली के लिए हुआ है, जिससे यह कहा जा सकता है कि इन्होंने प्रतीकों का प्रयोग भावगम्यता के साथ किया है। कोमलकांत पदावली में वर्णमैत्री की शब्द योजना इनके काव्य की काव्यगत विशेषता रही है। वैसे वर्मा जी का काव्य पूर्णतया गीतकाव्य है। लोकगीतों का लयात्मक संगीत इनके गीतों में मिल ही जाता है । देखें....            

जो तुम आ जाते एक बार              
हँस उठते पल में आर्द्रनयन, 
धुल जाता ओठों से विषाद।                    
छा जाता जीवन में बसन्त, 
लुट जाता चिर संचित विराग।।          
आँखें देती सर्वस्व वार । 

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि महादेवी जी जागरूक कलाकार थीं। छायावादी कवियों मेंपन्त जी को छोड़कर ऐसा कोई भी कवि नहीं है जो काव्यकला के प्रति इतना सजग रहा हो। 

महादेवी वर्मा द्वारा संपादन । Mahadevi Varma editing.

काव्य की ही भाँति गद्य में भी इन्होंने अपनी सफल लेखन कला का परिचय दिया है। गद्य के क्षेत्र में इनकी सेवाएँ दो रूपों में दिखाई पड़ती हैं । सम्पादिका के रूप में, आत्मकथा तथा स्मृति चित्रों की लेखिका के रूप में । सम्पादिका के रूप में महादेवी जी ने चाँद नामक पत्रिका का सम्पादन बड़ी योग्यता से अवैतनिक किया है। अपने संपादन काल में इस पत्रिका में नारी समस्याओं और समाज की विकृतियों पर बड़े मार्मिक निबन्धों की रचना की है। इनकी शैली अधिक कल्पनात्मक एवम् काव्यात्मक है।                             

2. आत्मकथा एवम् स्मृति चित्रों के रूप में अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं में अपने जीवन में सम्बन्ध रखने वाले अतीत के चित्रों का चित्रण बड़ी कुशलता और मार्मिकता से किया है। 

Mahadevi Varma Language.


महादेवी वर्मा की भाषा । Mahadevi Varma Language.

भाषा की दृष्टि से महादेवी जी का दृष्टिकोण उपयोगिता वादी था। इन्होंने अपने विचारों की गम्भीरता और भावुकता को व्यक्त करने के लिए शब्दों का आवश्यकनुसार चयन किया है। इन्होंने संस्कृत के शब्दों की तत्सम शब्दावली को प्रमुखता प्रदान की है तो दूसरी ओर उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के लोक प्रचलित शब्दों का भी चयन किया है। जैसे घरौंदा, बचिया, पिपहरी, अरगनी, निठल्ला, मेहरारू आदि इत्यादि । 

महादेवी वर्मा की भाषाशैली - 

लाक्षणिकता, चित्रमयता, अलंकृत वाक्यावली तथा विभिन्न भाषाओं के शब्दों पर आधारित है। इनकी रचनाओं में सूत्रात्मकता शैली, आलंकारिक शैली, चित्रात्मक शैली, भावात्मक शैली और गवेषणात्मक शैली में मिलते हैं। जिनकी छाया में हमारे युग की यात्रा आरम्भ हुई है जिनकी वाणी में हमने अपने नये जीवन की प्रथम पुकार सुनी है और जिनकी दृष्टि में अन्धकार को भेदकर हमें भविष्य का उज्जवल संकेत दिया है उसके अवश्यमभावी अभाव की कल्पना भी हमारे लिए सह्य नही होगी। 

महादेवी वर्मा के सम्मान तथा पुरस्कार | Mahadevi Varma Awards. 

  • भारत सरकार से राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण सम्मान से वर्मा को अलंकृत किया गया ( सन् 1956 ई. ) में ।        उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इन्हें भारत भारती पुरस्कार 1943 एवम् ज्ञानपीठ पुरस्कार ( 1982 ) से अलंकृत किया गया ।   
  • महादेवी वर्मा को सन 1988 में पद्य विभूषण से सम्मानित किया गया ।          
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार 1979 में सम्मानित ।

महादेवी वर्मा की मृत्यु | Mahadevi Varma death. 

साहित्य जगत की जानी मानी कवियत्री के रूप Mahadevi Varma का निरंतर चलता । उन्होंने अपनी जीवनकाल में अनेको रचना की । वे राज्य की विधानसभा की मनोनीत सदस्य भी रही । मगर  साहित्य की उपासिका, छायावादी युग की अन्तिम कडी़ महादेवी वर्मा की मृत्यु अस्सी वर्ष की उम्र में प्रयागराज में 11 सित्म्बर सन् 1980 को हुई।

उनकी रचनाएं, उनकी उपलब्धियां सदैव स्मरणीय रहेगी । आधुनिक मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा को शत शत नमन ।।  रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल. ओमनगर, सुलतानपुर, उ.प्र.। ।

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